किन महिलाओं को अण्डकोश का कैंसर होने का खतरा होता है? Which women are at risk of scrotum cancer?
अण्डकोश के कैंसर के निश्चत कारणों की जानकारी नहीं है। फिर भी, शोधकार्यों से पता चलता है कि निम्नलिखित कारण रोग की सम्भावनाओं को बढ़ा सकते हैं।
The exact cause of cancer of the scrotum is not known. Nevertheless, research shows that the following reasons may increase the chances of the disease.
(1) पारिवारिक इतिहासः जिस महिला के प्रथम सम्बन्धी (मां, बहन, बेटी) अण्डकोश के कैंसर रोग से ग्रस्त रह चुकी हो उन्हें यह रोग हो जाने का बड़ा खतरा रहता है।
Family history: Women whose first relatives (mother, sister, daughter) have suffered from cancer of scrotum are at great risk of getting this disease.
(2) आयुः आयु वृद्धि के साथ ही इसकी सम्भावनाएं बढ़ती हैं। सामान्यतः अण्डकोश के कैंसर पचास वर्ष से ऊपर की महिलाओं को होते हैं, साठ से ऊपर वालों को सबसे अधिक खतरा रहता है।
Age: Its chances increase with age increase. Generally, cancer of the scrotum occurs above the age of fifty, and those above sixty are at highest risk.
(3)जिन महिलाओं की कोई सन्तान नहीं होती उन्हें इस कैंसर की सम्भावना अधिक अधिक रहती है।
Women who have no children are more likely to get this cancer.
अण्डकोश के कैंसर के लक्षण क्या हैं? What are the symptoms of scrotum cancer?
अण्डकोश के कैंसर के लक्षण वही हैं जो कि अण्डकोश की सुसाध्य स्थितियों के होते हैं जैसे कि माहवारी में बाधा, पेट में बेआरामी। कभी-कभी लक्षण अस्पष्ट भी हो सकते हैं जैसे कि दस्त लगना या वजन घटना आदि। इसलिए डाक्टर के पास नियमित रूप से जाते रहना चाहिए।
The symptoms of scrotum cancer are the same as those caused by benign conditions of scrotum, such as obstruction of menstruation, abdominal distension. Sometimes symptoms may be unclear, such as diarrhea or weight loss. Therefore, you should go to the doctor regularly.
अण्डकोश के कैंसर के उपचार के क्या-क्या विकल्प हैं?What are the treatment options for scrotum cancer?
अण्डकोश के कैंसर वाले रोगियों के लिए उपचार के विकल्प और परिणाम इस पर निर्भर रहते हैं कि निदान से पहले वह किस प्रकार का कैंसर था और कितना फैल चुका था।
Treatment options and outcomes for patients with scrotum cancer depend on what type of cancer it was before diagnosis and how much it had spread.
अण्डकोश के कैंसर से बचाव के लिए क्या कोई स्क्रीनिंगी टैस्ट है? Is there a screening test to protect against cancer of the scrotum?
अण्डकोश के कैंसर का प्रारम्भिक स्थिति में ही निदान कर पाने वाला कोई स्क्रीनिंग टैस्ट अभी तक नहीं बना है।There is no screening test yet to be diagnosed in early stage cancer of the scrotum.
Dr. Manoj Bhai Rathore
Ayurveda Doctor
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा, आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।
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