प्रसूतिपरक नासूर क्या होता है?/What is obstetric canker?
महिला के जननेन्द्रिय मार्ग और एक या एक से अधिक आन्तरिक अंगों के बीच के छिद्र को नासूर कहते हैं। कई दिन तक प्रसव के अवरोध के कारण यह छेद हो जाता है, जब बच्चे के सिर का दबाव मां की जननेन्द्रिय क्षेत्र को कोमल अणुओं/टिशुओं को जाने वाले रक्त की आपूर्ति को काट देती है। मृत टिशु गिर जाते हैं और महिला की योनि और मूत्राशय के बीच होता है। उस छिद्र से मूत्र अथवा मल का सदा बहाव होता रहता है।
A hole between a woman's genitourinary tract and one or more internal organs is called canker. This perforation occurs due to obstruction of labor for several days, when the pressure of the baby's head cuts off the blood supply to the soft molecules / tissues of the mother's genitals. Dead tissue collapses and lies between the woman's vagina and bladder. Urine or feces flow continuously from that hole.
प्रसवपरक नासूर के कारण क्या होते हैं?/What are the causes of perinatal canker sores
प्रसवपरक नासूर उस अवरूद्ध प्रसव का परिणाम होता है जिसे बिना उपचार और बिना निकाले छोड़ दिया जाता है। नासूर के पनपने में तीन प्रकार के विलम्ब कारण बन सकते हैं। प्रसव के समय चिकित्सक की देखरेख पाने में विलम्ब, मैडिकल सुविधा प्राप्ति में विलम्ब और स्वास्थ्य परक सुविधा तक पहुंचने के बाद भी देखभाल पाने में विलम्ब।
Perinatal canker is the result of obstructed labor that is left untreated and untreated. There are three types of delays in canker growth. Delays in getting medical care at delivery, delays in medical facilities and delays in getting care even after reaching health care facilities.
क्या नासूर का उपचार हो सकता है?/Can Canker Be Treated?
हां, प्रसूति नासूर को जननांगों की शल्यक्रिया द्वारा बन्द किया जा सकता है। यदि यह शल्यक्रिया किसी कौशल प्रवीण शल्यचिकित्सक द्वारा की जाए तो नासूर के रोगियों के पुनः सामान्यः जीवन जी पाने की अच्छी सम्भावनाएं रहती हैं और शरीर की गतिविधियों पर पूरा नियंत्रण भी पा सकते हैं। ऐसे ऑपरेशन की सफलता दर 93 प्रतिशत है।
Yes, obstetric canker can be closed by genital surgery. If this surgery is done by a skilled surgeon, then the patients of canker have good chances of living again and can get complete control over body movements. The success rate of such operation is 93 percent.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda Doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा, आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।
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