टी.बी. पर प्रभावी नियन्त्रण के लिये राज्य सरकार कृत सकल्पित है Tb But the State Government is committed to effective control.
क्षय रोग पूरे देश में व्यापक रूप से फैला हुआ है केवल पचास प्रतशित रोगी ही सरकारी अस्पतालों से इलाज ले पाते है शेष पचास प्रतशित निजी चिकित्सकों , नर्सिग होम तथा निजी चिकित्सालयों के द्वारा उपचारित किये जाते हैं।
Tuberculosis is widespread throughout the country, only fifty percent of patients are able to receive treatment from government hospitals, the remaining fifty percent are treated by private doctors, nursing homes and private hospitals.
निजी चिकित्सक एवं नर्सिग होम जॅंहा रोगी के निकटतम तथा सुविधापूर्वक पहुंच में होते हैं, वहीं क्षय रोगियों का इनमें विश्वास भी गूढ होता है। अतः कार्यक्रम को व्यापक बनाने तथा उसकी सफलता के लिये इनका कार्यक्रम से जुडना अतिआवश्यक है।
While private doctors and nursing homes are in close and convenient access to the patient, the conviction of TB patients is also deepened. Therefore, to make the program comprehensive and its success, it is necessary to join the program.
टी.बी. एक रोग ही नहीं बल्कि हमारे देश में चुनौती भरी सामाजिक, आर्थिक समस्या भी है, इसलिये इस रोग के नियन्त्रण का कार्य केवल सरकारी प्रयासों से सफल नहीं हो सकता। हालांकि राज्य में डॉट्स कार्यक्रम के अन्तर्गत रोगी ठीक होने की दर) 85 प्रतशित से भी अधिक अर्जित करने में सफल रहा है, परन्तु कार्यक्रम को कायम रखने तथा रोगी खोज दर में वृद्वि करने हेतु सामुदायिक सहयोग आवश्यक है।
Tb Not only a disease but also a challenging social, economic problem in our country, therefore the task of controlling this disease cannot be successful only by governmental efforts. Although patient recovery rates under the DOTS program in the state have been successful in achieving more than 85%, community support is necessary to sustain the program and increase patient discovery rate.
गैर सरकारी संगठनों एवं निजी चिकित्सकों की समाज में प्रतिष्ठा सम्मान, विश्वसनियता तथा पहूंच है इसलिए कार्यक्रम में गैर सरकारी संगठनों एवं निजी चिकित्सकों की भागीदारी पर विशेष बल दिया गया है तथा उनकी भागीदारी के लिए निम्न आकर्षक योजनाऍं रखी गयी।
NGOs and private practitioners have a high degree of respect, trust and access to society, so the involvement of NGOs and private practitioners in the program has been given special emphasis and the following attractive schemes have been put in place for their participation.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctorEmail id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा, आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।
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