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नीम से आंखों के रोगों में उपचार Neem treatment in eye diseases

नीम से आंखों के रोगों में उपचार Neem treatment in eye diseases
  • जिस आंख में दर्द हो उसके दूसरी ओर के कान में नीम के कोमल पत्तों का रस गर्म करके 2-2 बूंद टपकाने से आंख और कान का दर्द कम हो जाता है।
  • Heat the juice of soft leaves of neem in the other side of the eye in which there is pain, dripping 2-2 drops reduces the eye and ear pain.
 
  • नीम के पत्तों और लोध्र को बराबर लेकर पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इस चूर्ण की पोटली बनाकर पानी में भीगने दें। बाद में इस पानी को आंखों में डालने से आंखों की सूजन कम होती है।
  • Make a powder by grinding neem leaves and Lodhra equally, then make a bundle of this powder and let it soak in water. Afterwards, putting this water in the eyes reduces swelling of the eyes.
 
  • नीम के पत्तों और सौंठ को पीसकर उसमें थोड़ा सेंधानमक मिलाकर गर्म कर लें और रात के समय एक कपडे़ की पट्टी रखकर आंखों पर बांधे। इससे आंखों के ऊपर की सूजन के साथ दर्द और भीतरी खुजली समाप्त हो जाती है। ध्यान रहे कि रोगी को शीतल पानी और शीतवायु से आंखों को बचाना चाहिए।
  • Grind neem leaves and dry ginger and mix some rock salt in it and heat it and tie it on the eyes during the night. It ends pain and inner itching with swelling over the eyes. Keep in mind that the patient should avoid cold water and eyes from cold.
 
  • 500 ग्राम नीम के पत्तों को 2 मिट्टी के बर्तनों के बीच कण्डों की आग में रख दें। शीतल होने पर अन्दर की राख का 100 मिलीलीटर नींबू के रस में कुटकर सूखा लें। इसका अंजन (काजल) लगाने से आंखों के रोगों में लाभ मिलता है।
  • Put 500 grams of neem leaves in the fire of tubers between 2 earthen pots. After cooling, dry 100 ml of ashes inside lemon juice and dry. Applying it to Anjan (Kajal) provides relief in eye diseases.
 
  • 50 ग्राम नीम के पत्तों को पानी के साथ बारीक पीसकर टिकिया बनाकर सरसों के तेल में पका लें। जब यह जलकर काली हो जाए तब उसे उसी तेल में घोटकर उसमें 500 ग्राम कपूर तथा 500 ग्राम कलमीशोरा मिलाकर खूब घोटकर कांच की शीशी में भर लें। इसे रात को आंखों में काजल के समान लगाने तथा सुबह त्रिफला को पानी के साथ सेवन करने से आंखों की जलन, लालिमा, जाला, धुन्ध आदि दूर हो जाती है तथा आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।
  • Grind 50 grams of neem leaves finely with water and cook it in mustard oil. When it burns to black then dilute it with the same oil, add 500 grams of camphor and 500 grams of Kalamishora and fill it in a glass bottle after diluting it. Applying it like kajal in the eyes at night and consuming Triphala with water in the morning, removes irritation, redness, eyesight, haze, etc. and increases the eyesight.
 
  • नीम की कोपलें 20 पीस, जस्ता भस्म 20 ग्राम, लौंग के 6 पीस, छोटी इलायची के 6 पीस और मिश्री 20 ग्राम को एकत्रित करके खूब बारीक करके सुर्मा बना लें। इसे थोड़ा-थोड़ा सुबह-शाम आंखों में लगाने से धुंध ठीक होता है।
  • Make 20 pieces of neem kapalas, 20 grams of zinc consumed, 6 pieces of cloves, 6 pieces of small cardamom and 20 grams of sugar candy and make them very finely. By applying it in the eyes a little in the morning and evening, the mist is cured.
 
  • 10 ग्राम साफ रूई पर 20 नीम के सूखे पत्तों को बिछा दें, फिर नीम के पत्तों पर 1 ग्राम कपूर का चूर्ण रखकर रूई को लपेटकर बत्ती बना लें। इस बत्ती को 10 ग्राम गाय के घी में भिगोकर इसका काजल बना लें। इस बने हुए काजल को रात को लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।
  • Spread 20 dried neem leaves on 10 grams of clean cotton, then wrap 1 gram powder of camphor on neem leaves and make a light by wrapping cotton. Soak this light in 10 grams cow's ghee and make its mascara. Applying this made kajal at night increases eyesight.
 
  • नीम के पत्तों के रस को गाढ़ा कर अंजन (काजल) के रूप में लगाते रहने से आंखों की खुजली, बरौनी (आंखों की पलकों के बाल) के झड़ने में लाभ होता है।
  • Keeping the juice of neem leaves thickened and applying it as Anjan (Kajal) provides relief in itching of the eyes, loss of eyelash (hair of the eyelids).
  Dr.Manoj Bhai Rathore 
 Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
  क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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