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सीताफल cilantro

सीताफल cilantro

सीताफल की बेल होती है और इसे खेतों में लगाई जाती है। सीताफल गोला, छोटा बाहर की ओर उभरा हुआ होता है। सीताफल में काले और चिकने अनेक बीज होते हैं। इसके बीजों के इर्द-गिर्द मीठी गिरी होती है जिसका सेवन किया जाता है। सीताफल पौष्टिक और मीठा होता है। कुछ लोग सीताफल को रामफल के नाम से भी जानते हैं। सीताफल अधिक ठंडा होता है और ज्यादा सेवन करने से जुकाम हो जाता है।

There is a vine of cilantro and it is planted in the fields. The cilantro is roundish, small protruding outwards. Sitaphal has many black and smooth seeds. Its seeds are surrounded by a sweet kernel which is consumed. Sitaphal is nutritious and sweet. Some people also know Sitaphal as Ramphal. Sitaphal is very cold and if consumed in excess, it becomes cold.

गुण (Property)

सीताफल स्वाद में मीठा एवं पौष्टिक होता है। सीताफल अत्यंत ठंडा, पित्त को नष्ट करने वाला, उल्टी को रोकने वाला, प्यास को शांत करने वाला, कफ पैदा करने वाला एवं गैस बनाने वाला होता है। यह मांसपेशियां व खून को बढ़ाता है। यह ताकत को बढ़ाता है, हृदय रोग को दूर करता है और शरीर को पुष्ट करता है। 

Sitaphal is sweet and nutritious in taste. Sitaphal is very cold, destroys bile, stops vomiting, quenches thirst, produces phlegm and produces gas. It increases muscles and blood. It increases strength, removes heart disease and strengthens the body.

कच्चे सीताफल दस्त और पेट के दर्द में उपयोगी होता है। इसके बीज पशुओं के जख्म को ठीक करता है। सीताफल के बीज का चूर्ण सेवन करने से गर्भपात होता है। पके सीताफल के छिलके को पीसकर जख्म पर लगाने से कीटाणु नष्ट होते हैं। इसके पत्तों को पीसकर फोड़ो पर बांधने से फोड़े ठीक होते हैं।

Raw cilantro is useful in diarrhea and colic. Its seeds heal the wounds of animals. Consuming the powder of cilantro seeds causes abortion. Grinding the peel of ripe cilantro and applying it on the wound destroys the germs. Boils are cured by grinding its leaves and tying them on the boils.

शरीर कमजोर होने, दिल की धड़कन बढ़ जाने, बेचैनी होने, दिल की मांसपेशियां ढ़ीली होने आदि रोग में सीताफल का सेवन करना लाभदायक है। इससे भस्मक रोग (बार-बार भूख लगना) ठीक होता है।

Consuming cilantro is beneficial in diseases like weakness of the body, increased heartbeat, restlessness, laxity of heart muscles, etc. It cures Bhasmak disease (repeated hunger).

वैज्ञानिकों के अनुसार : सीताफल में लोह, थायामिन, कैल्शियम, रीबोफ्लेबिन, नियासिन और विटामिन बी1, बी2 और विटामिन `सी´ तथा शर्करा काफी मात्रा में होता है।

According to scientists, cilantro contains iron, thiamine, calcium, riboflavin, niacin and vitamin B1, B2 and vitamin 'C' and sugar in large quantities.

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

सीताफल का ज्यादा सेवन करने से ठंड लगकर बुखार हो जाता है। जिनकी पाचन क्रिया मंद हो या जुकाम हो उसे सीताफल का सेवन नहीं करना चाहिए। सीताफल के बीज आंखों में जाने पर जलन होती है।

Excessive consumption of cilantro leads to fever with chills. Those who have slow digestion or cold, they should not take cilantro. There is a burning sensation when cilantro seeds enter the eyes.

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पित्तरोग :
पके सीताफल को रात में औंस में रखकर सुबह सेवन करने से पित्त की जलन समाप्त होती है।

पागलपन :
सीताफल की जड़ का चूर्ण पागलपन में दिया जाता है। इससे दस्त लगकर पागलपन दूर होता है।

पेशाब न आना :
सीताफल की बेल की जड़ को पानी में घिसकर पीने से रुका हुआ पेशाब आना शुरू हो जाता है।

मासिकधर्म का बंद होना :
मासिकस्राव बंद हो गया हो तो सीताफल के बीज को पीसकर बत्ती बना लें और इस बत्ती को योनि में रखें। इसके प्रयोग से बंद मासिकस्राव शुरू हो जाता है।

हिस्टीरिया :
हिस्टीरिया से पीड़ित स्त्री को यदि बार-बार बेहोशी के दौरे पड़ते हो तो सीताफल के पत्तों का रस निकालकर नाक में कुछ बूंदे डालना चाहिए। इससे बेहोशी दूर होती है।

घाव में कीड़े पड़ना :
सीताफल के पत्तों को पीसकर चटनी बनाएं और इसमें सेंधानमक मिलाकर पोटली बना लें। यह पोटली घाव पर बांधने से घाव में पड़े हुए कीड़े नष्ट होते हैं।

श्वास रोग :
सीताफल की छाल का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से श्वास (दमा) रोग ठीक होता है।

जुएं अधिक होना :
सीताफल के बीजों को पीसकर सिर पर लगाने से जुएं मर जाती है।

अतिक्षुधा भस्मक रोग :
सीताफल का सेवन प्रतिदिन करने से भस्मक (बार-बार भूख लगना) रोग ठीक होता है।

गर्भपात :
सीताफल के बीजों का चूर्ण 5 से 10 ग्राम की मात्रा में या काढ़ा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में दिन में 4 बार सेवन करने से गर्भपात होता है।

पित्त पथरी :
पित्त पथरी के रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सीताफल के 25 मिलीलीटर रस में सेंधा नमक मिलाकर पीना चाहिए। इससे पथरी गलकर समाप्त होती है।

एलर्जी :
सीताफल के बीजों को पीसकर शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से एलर्जी दूर होती है।

नहरूआ :
नहरूआ रोग के रोगी को सीताफल के पत्ते को पीसकर टिकियां बनाकर घाव पर लगाएं। इससे घाव से बाल निकलकर घाव ठीक होता है।












Dr. Manoj Bhai Rathore
 
Ayurveda Doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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