कण्ठमाला (Tonsillitis)
कण्ठमाला रोग से पीड़ित रोगी की गर्दन में गांठें हो जाती हैं जिसके कारण उसके शरीर में मल का विष अधिक बढ़ जाता है जिसकी सफाई होना बहुत बहुत आवश्यक है।
The patient suffering from mumps gets lumps in his neck, due to which the poison of stool increases in his body, which is very important to be cleaned.
कण्ठमाला का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार Treatment of mumps with naturopathy:-
- इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी को 2 दिन के लिए उपवास रखना चाहिए और उपवास के समय में केवल फलों का रस पीना चाहिए तथा एनिमा क्रिया करके पेट को साफ करना चाहिए। इसके बाद रोगी को प्रतिदिन उदरस्नान तथा मेहनस्नान करना चाहिए।
- To cure this disease, the patient should fast for 2 days and drink only fruit juice during fasting and clean the stomach by doing enema. After this, the patient should take an abdominal bath and a hard bath every day.
- कण्ठों के पास की गांठों पर भापस्नान देकर दिन में 3 बार मिट्टी की पट्टी बांधनी चाहिए और रात के समय में इन गांठों पर हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए।
- After giving steam bath on the knots near the gorges, an earthen bandage should be tied thrice a day and in the night time, green colored bottle incense oil should be applied on these knots.
- यदि रोगी की गर्दन पर गांठ बननी शुरू हुई है तो तुलसी और अरण्डी की पत्ती बराबर मात्रा में लेकर और पीसकर फिर उनमें थोड़ा-सा नमक मिलाकर गर्म-गर्म ही गांठ पर बांध देने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है और रोगी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
- If a lump has started to form on the patient's neck, then by taking equal quantity of basil and castor leaves and grinding them, then adding a little salt to them and tying it on the lump only, the patient gets a lot of benefit and the patient gets sick soon. It just gets better.
- इस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 2 भाग तथा लाल रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 1 भाग मिलाकर लगभग 25 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से तथा गांठों पर लगभग 10 मिनट तक नीला प्रकाश डालने और सप्ताह में 1-2 बार एप्सम साल्टबाथ (गर्म पानी में हल्का नमक डालकर, उस पानी से स्नान करना) भी करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। इस उपचार को करने के साथ-साथ व्यक्ति को शरीर और सांस की हल्की कसरत भी करनी चाहिए।
- The patient suffering from this disease should mix 2 parts of incandescent water of sky colored bottle and 1 part of red colored bottle by taking about 25 ml twice a day and apply blue light on the knots for about 10 minutes. Taking Epsom saltbath (adding light salt in warm water, bathing with that water) 1-2 times a week also cures this disease soon. Along with doing this treatment, one should also do light body and breath exercises.
Dr. Manoj Bhai Rathore
Ayurveda Doctor
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा, आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।
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