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प्रसव पीड़ा / pain during pregnancy

प्रत्येक विवाहित स्त्री मां बनने को लालायित रहती है, अपितु उसे प्रसव के समय अपार कष्ट एवं परेशानियां भोगनी पड़ती हैं| कभी-कभी किन्हीं कारणवश स्त्री, बच्चे अथवा दोनों की जान जोखिम में पड़ जाती है| ऐसी स्थिति में विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता रहती है|

Every married woman is eager to become a mother, but she has to suffer immense troubles and troubles at the time of delivery. Sometimes the life of a woman, child or both is put at risk due to some reason. In this situation, special attention is required.


कारण / reason

बच्चा गर्भाशय के बाहर सरलता से नहीं आता, बल्कि माता को बहुत कष्ट सहन करना पड़ता है| माता दर्द के कारण तड़प जाती है| आजकल तो स्त्रियां शारीरिक परिश्रम बहुत कम करती हैं, इसलिए वे बच्चे जनते समय अधमरी हो जाती हैं| कहा जाता है कि बच्चा जनने में स्त्री का दूसरा जन्म होता है| वर्तमान युग में ऐसी बहुत-सी दवाइयों तथा नुस्खों की खोज हो गई है जिनके सेवन से माता का प्रसव पीड़ा नहीं भोगनी पड़ती|

The baby does not come out of the uterus easily, but the mother has to bear a lot of pain. Mother suffers due to pain. Nowadays, women do very little physical work, so they become half-dead at the time of giving birth. It is said that a woman has a second birth in childbirth. In the present era, many such medicines and prescriptions have been discovered, due to which the mother's delivery does not have to suffer.

पहचान / Recognise

बच्चे को जन्म देते समय माता को बहुत घबराहट होती है| उसे उल्टी, पूरे शरीर, पेड़ व पेट में दर्द, बेचैनी, योनि से स्त्राव तथा रक्त आने लगता है| ये प्रसव पीड़ा के आम लक्षण हैं|

The mother is very nervous while giving birth to the child. He starts vomiting, pain in entire body, tree and stomach, restlessness, discharge from vagina and blood. These are common symptoms of labor pain.

नुस्खे  Tips

  • प्रसव पीड़ा के समय स्त्री को तुलसी के पत्तों का रस एक-एक चम्मच की मात्रा में थोड़ी-थोड़ी देर बाद पिलाना चाहिए|
  • चुम्बक पत्थर को रेशमी कपड़े में बांधकर स्त्री के बाएं हाथ में पकड़ा देना चाहिए| इससे बच्चा आसानी से पैदा हो जाता है|
  • तीन दाले लाल घुंघची लेकर महीन पीस लें| इसमें थोड़ा-सा पुराना गुड़ मिलाएं| फिर दोनों को अच्छी तरह खरल कर लें| इसे प्रसव के समय खिला दें| नुस्खा पेट में पहुंचने के 10 मिनट बाद बच्चा बिना दर्द के हो जाएगा|
  • अपमार्ग की जड़ को माता की कमर में डोरी में पिरोकर बांधने से प्रसव का कष्ट कम हो जाता है|
  • एरण्ड का तेल बार-बार नाभि पर लगाने से प्रसव शीघ्र हो जाता है|
  • प्रसव होने के आठ दिन पहले से माता को अंजीर का सेवन शुरू कर देना चाहिए|
  • प्रसूति के समय मकोय की जड़ पीसकर नाभि के नीचे लेप करना चाहिए| इससे प्रसव आसानी से हो जाता है|
  • प्रसव के समय स्त्री को गाजर के बीज तथा उसके पत्तों का काढ़ा पिलाना चाहिए|
  • थोड़ी-सी लौकी को उबाल लें| फिर उसका रस निचोड़कर 30 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर माता को दें| प्रसव पीड़ा कम हो जाएगी|



Dr. Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda Doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
 yourselfhealthtips.blogspot.com


आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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