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पुरूषों में बांझपन के लक्षण Signs of infertility in men

पुरूषों में बांझपन के लक्षण Signs of infertility in men

  • जो पुरुष संभोग के दौरान सही तरीके से यौन क्रियाएं नहीं कर पाता या फिर बहुत जल्दी डिस्चार्ज हो जाता है तो उसमें कमी होती है। यह नपुसंकता का लक्षण भी है।
  • Men who are unable to perform sexual activity properly during sexual intercourse or are discharged too soon, then they are deficient. It is also a symptom of impotence.
  • नपुंसकता होने पर पुरुष के लिंग में कठोरता या तो आती नहीं, आती है तो बहुत जल्दी शांत हो जाती है। संभोग के दौरान अचानक लिंग में कठोरता का कम होना।
  • If there is impotence, the stiffness in the penis of the man either does not come, then he becomes very fast. Sudden decrease in penis stiffness during sexual intercourse.
  • दरअसल नपुंसकता का संबंध सीधेतौर पर ज्ञानेन्द्रियों(सेंसेज) से होता है। कुछ लोग तो संकोचवश या जागरुकता के अभाव में इस बारे में सही जानकारी नही ले पाते हैं।
  • In fact, impotence is directly related to senses. Some people are hesitant or lack of awareness, they are unable to get the right information about it.
  •  हालांकि नंपुसकता अधिक उम्र के व्यक्तियों में ज्यादा पाई जाती है। जिससे पुरुष महिलाओं के पास जाने से भी घबराने लगते हैं। उम्र बढ़ने के साथ ही यौन इच्छा में कमी होने लगती है।
  • However, impotence is more common in older people. Due to which men also get nervous from going to women. Sexual desire begins to decrease as we age.
  • जो पुरुष सेक्स क्रिया करने में रूचि नहीं रखते और जिनमें उत्तेजना नहीं होती वे पूर्ण नपुंसक होते हैं। जबकि जो पुरुष एक बार तो उत्तेजित होते हैं लेकिन घबराहट या किसी अन्य कारण से अक्‍सर जल्दी शांत हो जाते हैं उन्हें आंशिक नपुंसक कहा जाता है।
  • Men who are not interested in having sex and do not have excitement are completely impotent. Whereas men who are once excited but often calm down due to nervousness or any other reason are called partial eunuchs.
  • संभोग करने के दौरान या करने से पहले घबराहट होना। क्योंकि ऐसे लोगों में विश्वास की कमी होती है और उनके अंदर डर सा बना रहता है।
  • Nervousness during or before sexual intercourse. Because such people lack faith and there is a fear in them.
  • संभोग के दौरान जल्दी डिस्चार्ज हो जाना।
  • Early discharge during sexual intercourse.
  • संभोग के दौरान अचानक लिंग में कठोरता का कम होना।
  • Sudden decrease in penis stiffness during sexual intercourse.
  • नपुंसकता के कारण पुरुष का लिंग सामान्य से छोटा हो जाता है जिससे पुरुष ठीक तरह से संभोग करने में असमर्थ होता है।
  • Due to impotence, the penis of the male becomes smaller than normal, which makes the man unable to orgasm properly.
  • नपुंसक लोगों में आत्मभविश्वास की कमी होना। अक्सर ऐसे लोग भीड़ से घबराते हैं और महिलाओं से बात करने में दिक्कत होती है।
  • Lack of self-belief in impotent people. Often such people are afraid of crowds and have difficulty talking to women.
  1. नपुंसक व्यक्ति के अंडकोष छोटे हो जाते हैं।
  2. नपुंसकता के कारण व्यक्ति थकान महसूस करता है।
  3. आत्मभविश्वास की कमी होना।
  4. लोगों से बातचीत के दौरान घबराना।
  5. भीड़ में घबराना या महिलाओं से बात करने में झिझकना।
  • नपुंसक व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जिससे सही तरह से संभोग ना करने के कारण पीडि़त व्यक्ति बीमार रहने लगता है।
  • The immunity of the eunuch decreases, due to which the victim becomes ill due to not having sexual intercourse properly.
  • बांझपन के कारण व्यक्ति के प्रजनन अंग कमजो़र हो जाते हैं।
  • The reproductive organs of a person become weak due to infertility.

  • भागदौड़ भरी जिंदगी ने लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बना दिया है। फास्ट फूड का ज्यादा प्रयोग और खान-पान में पोषक तत्वों की कमी इसका प्रमुख कारण है।
  • The runaway life has made people mentally and physically weak. The main reason for this is the excessive use of fast food and the lack of nutritious food.



Dr.Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda Doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
 yourselfhealthtips.blogspot.com


आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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