पुरुष के शीघ्रपतन Premature ejaculation
पुरुष द्वारा स्त्री को संतुष्ट किए बिना उद्वेग के चरम क्षणों में स्खलित हो जाना, शीघ्रपतन कहलाता है| इसका मुख्य कारण हीन भावना तथा आत्मविश्वास की कमी होता है| ऐसे व्यक्ति को मन में कामुकता का विचार नहीं रखना चाहिए|
A man ejaculates in extreme moments of excitement without satisfying the woman, is called premature ejaculation. The main reason for this is lack of inferiority complex and confidence. Such a person should not keep in mind the idea of sexuality.
कारण Reason
स्त्री से अधिक सम्भोग करने, हस्तमैथुन की आदत, पुष्टिकारक भोजन की कमी, जननेन्द्रिय सम्बंधी रोग, मदिरापान तथा अन्य नशीली चीजों का सेवन शीघ्रपतन रोग के कारण बन जाते हैं|
Excessive sexual intercourse, habit of masturbation, lack of nutritious food, genitourinary diseases, drinking of alcohol and other intoxicants become the cause of premature ejaculation.
पहचान Recognise
पुरुष स्त्री से सम्भोग करने से पहले या कुछ ही समय बाद वीर्यापात कर बैठता है| शीघ्रपतन के कारण पुरुष को स्त्री के सामने लज्जित होना पड़ता है, क्योंकि स्त्री संतुष्ट नहीं हो पाती| धीरे-धीरे व्यक्ति की शारीरिक शक्ति भी क्षीण हो जाती है| वह स्त्री से प्यार करने, उसे चिपटाने या चुम्बन लेने मात्र से ही स्खलित हो जाता है| ऐसे पुरुषों की स्त्रियों को बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं| कई बार वे अन्य पुरुषों से अवैध सम्बंध स्थापित कर लेती हैं|
The man sits down before or shortly after intercourse with the woman. Due to premature ejaculation, a man has to be ashamed in front of the woman, because the woman is not satisfied. Gradually the physical strength of the person also decreases. He ejaculates just by loving, clinging or kissing the woman. Women of such men have to suffer a lot. Many times they establish illicit relations with other men.
नुस्खे Tips
- प्रतिदिन सुबह के समय दो छुहारे चबाकर ऊपर से आधा किलो गाय का दूध पीना चाहिए|
- ईसबगोल, खसखस और मिश्री - सब 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर सेवन करें| ऊपर से दूध पी जाएं|
- दो चम्मच प्याज के रस में शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह के समय खाली पेट लेना चाहिए|
- तुलसी के पौधे की जड़ का चूर्ण चौथाई चम्मच घी में मिलाकर लें|
- कौंच के बीज तथा तालमखाना - दोनों के 5-5 ग्राम चूर्ण दूध या मिश्री के साथ सेवन करें|
- प्रतिदिन चाय के साथ लहसुन की 10 बूंदें सेवन करें| ऊपर से आधा किलो दूध पिएं| लहसुन सेक्स सम्बंधी सभी प्रकार के रोगों के लिए रामबाण है|
- मूली के बीजों को तेल में मिलाकर औटा लें| फिर इस तेल से शरीर की मालिश करें|
- बबूल के चार-पांच पत्ते तथा 5 ग्राम गोंद पानी में भिगोकर मसल डालें| फिर उनको पानी सहित पी जाएं| ऊपर से दूध का सेवन करें|
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda Doctor
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क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा, आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।
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