अरबी के फल में भी शक्ति है।The Arabic fruit also has power.
अरबी
अत्यंत प्रसि़द्ध और सभी की परिचित वनस्पति है। अरबी की प्रकृति ठंडी और
तर होती है। अरबी के पत्तों से बनी सब्जी बहुत स्वादिष्ट होती है। अरबी के
फल, कोमल पत्तों और पत्तों की तरकारी बनती है। अरबी वस्तुत: गर्मी के मौसम
की फसल है तथा गर्मी और वर्षा की ऋतु में होती है।
Arabic is the most popular and familiar flora of all. The nature of Arabic is cool and wet. Vegetable made from Arabic leaves is very tasty. Arabic fruit, soft leaves and leaves are produced. Arabi is virtually a summer crop and grows in summer and rainy seasons.
अरबी अनेकों किस्म की
होती है जैसे- राजाल, धावालु, काली-अलु, मंडले-अलु, गिमालु और रामालु। इन
सबमें काली अरबी उत्तम है। कुछ अरबी में बड़े और कुछ में छोटे कन्द लगते
हैं। इससे विभिन्न प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं। अरबी रक्तपित्त को
मिटाने वाली, दस्त को रोकने वाली है।
Arabic is of many varieties like Rajal, Dhavalu, Kali-Alu, Mandalay-Alu, Gimalu and Ramalu. Black Arabic is the best among them all. Some Arabic have large tubers and some have small tubers. Different types of dishes are made from this. Arabic is useful to cure blood clotting and prevent diarrhea.
गुण-a quality
अरबी
शीतल, अग्निदीपक (भूख को बढ़ाने वाली), बल की वृद्धि करने वाली और
स्त्रियों के स्तनों में दूध बढ़ाने वाली है। अरबी के सेवन से पेशाब अधिक
मात्रा में होता है एवं कफ और वायु की वृद्धि होती है।
Arabic Sheetal, Agnideepak (increases appetite), increases strength and increases milk in the breasts of women. Urine occurs in excess due to the intake of Arabic and there is increase of phlegm and air.
अरबी के फल में
धातुवृद्धि की भी शक्ति है। अरबी के पत्तों का साग वायु तथा कफ बढ़ाता है।
इसके पत्तों में बेसन लगाकर बनाया गया पकवान स्वादिष्ट और रुचिकर होता है,
फिर भी उसका अधिक मात्रा में सेवन उचित नहीं है।
The Arabic fruit also has the power of metal growth. The greens of Arabic leaves increase the air and phlegm. A dish made by adding gram flour to its leaves is tasty and delicious, yet it is not advisable to consume it in large quantities.
हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)
अरबी
की सब्जी बनाकर खायें। इसकी सब्जी में गर्म-मसाला, दालचीनी और लौंग डालें।
जिन लोगों को गैस बनती हो, घुटनों के दर्द की शिकायत और खांसी हो, उनके
लिए अरबी का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक हो सकता है।
Make and eat Arabic vegetables. Add garam masala, cinnamon and cloves to its vegetable. People who have gas, complain of knee pain and cough, excessive use of Arabic can be harmful.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा, आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।
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