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अरबी से रोगों में उपचार Arabic treatment of diseases

अरबी से रोगों में उपचार Arabic treatment of diseases

वायुगुल्म (वायु का गोला) :Air ball (air ball):

अरबी के पत्ते डण्ठल के साथ उबालकर उसका पानी निकालकर उसमें घी मिलाकर 3 दिन तक सेवन से वायु का गोला दूर होता है।

Boil the leaves of arabica with a stem, remove its water and mix ghee in it and take it for 3 days to remove the air ball.

महिलाओं के स्तनों में दूध की वृद्धि :Growth of milk in the breasts of women:

अरबी की सब्जी खाने से दुग्धपान कराने वाली स्त्रियों के स्तनों में दूध बढ़ता है।

Milk increases in the breasts of milkers by eating Arabic vegetables.

झुर्रियां :Wrinkles:

अरबी त्वचा के सूखेपन और झुर्रियों को भी दूर करती है। सूखापन चाहे आंतों में हो या सांस-नली में अरबी खाने से लाभ होता है।

Arabic also removes dryness and wrinkles of the skin. Whether it is in the intestines or in the respiratory tract, eating arabica is beneficial.

हृदय रोग :heart disease :

हृदय रोग के रोगी को अरबी की सब्जी प्रतिदिन खाते रहने से लाभ होता है।

The patient of heart disease benefits by eating Arabic vegetables daily.

गिल्टी (ट्यूमर) :Gland (tumor):

अरुई के पत्तों के डाली को पीसकर लेप करने से रोग में लाभ होता है।

Grind castor leaves of arui and apply it on the affected part.

 पित्त प्रकोप :Bile outbreak:

अरबी के कोमल पत्तों का रस और जीरे की बुकनी मिलाकर देने से पित्त प्रकोप मिटता है।

Mixing the juice of soft leaves of arabica and powder of cumin seeds gives bile infestation.

पेशाब की जलन :Urination irritation:

अरबी के पत्तों का रस 3 दिन तक पीने से पेशाब की जलन मिट जाती है।

The burning sensation of urine disappears by drinking juice of arabica leaves for 3 days.

फोड़े-फुंसी :Abscesses:

अरबी के पत्ते के डंठल जलाकर उनकी राख तेल में मिलाकर लगाने से फोड़े मिटते हैं।

Burning the stalks of arabica leaves and mixing their ashes in oil helps to remove the boils.

 


Dr.Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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