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अनन्नास Pineapple

अनन्नास Pineapple

भारत में जुलाई से नवंबर के मध्य अनन्नास काफी मात्रा में मिलता है। अनन्नास मूलत: ब्राजील का फल है, जो प्रसिद्ध नाविक कोलम्बस अपने साथ यूरोप लेकर आया था। भारत में इस फल को पुर्तगाली लोग लेकर आये थे। अनन्नास के पेड़ के पत्ते केवड़े के पत्तों के समान होते हैं। यह पेड़ अधिकतर खेतों या सड़कों के एक ओर उगता है। अनन्नास के पेड़ के मध्य भाग में फल लगते हैं। इस वृक्ष पर काटें होते हैं। अनन्नास की डालियां काटकर बो देने से उग आती हैं। अनन्नास का रंग कुछ कुछ पीला और लाल होता है।

Pineapple is found in abundance in India from July to November. Pineapple is basically the fruit of Brazil, which brought the famous sailor Columbus to Europe. The Portuguese brought this fruit to India. The leaves of the pineapple tree are similar to the leaves of kevda. This tree mostly grows on one side of fields or roads. Fruits grow in the central part of the pineapple tree. There are cuts on this tree. Pineapple branches grow by cutting and sowing. The color of pineapple is slightly yellow and red.

इसका मुरब्बा बनाया जाता है। अनन्नास का फल बहुत स्वदिष्ट होता है। इसके बीच का भाग हानिकारक होता है। इसलिए उसे खाते समय निकाल देना चाहिए। यदि भूल से उसे खाने में आ गया हो तो तुरंत प्याज, दही और शक्कर खाना चाहिए। उपवास के समय अनन्नास का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे यह विष के जैसा असर करता है। गर्भवती स्त्रियों के लिए भी अनन्नास हानिकारक होता है।

Its jam is made. The fruit of pineapple is very special. Its middle part is harmful. Therefore, it should be removed while eating. If you have ingested it by mistake, onion, curd and sugar should be eaten immediately. Pineapple should not be used during fasting. This makes it look like poison. Pineapple is also harmful for pregnant women.

विभिन्न भाषाओं में नाम : Names in different languages:

संस्कृत अनन्नास या कौतुकसंज्ञक, बहुनेत्र। हिंदी. अनन्नास, सफरी। गुजराती अनन्नास। मराठी अनन्नास। कर्नाटकी अनासु या हनासु। तमिल पारोंगलतालेतु। तैलगू पारोंगलतालेतु, पारेंगी पेलकायि। मलयलम अनन्नास। बंगाली आनारस। लैटिन अननासा सेढ़िवा अग्रेजी पाइन एपल।

Sanskrit Ananas or Kautukasankhyanaka, Bahunetra. Hindi. Pineapple, traveling. Gujarati pineapple. Marathi pineapple. Karnataki Anasu or Hanasu. Tamil Parongalletu. Tailagu Parongalletu, Parengi Pelkayi. Malayalam pineapple. Bengali Anarus. Latin Ananasa cedhiva English Pine Apple.

Dr.Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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