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अमलतास से पेट के विभिन्न रोगों में सहायक Helpful in various diseases of stomach due to pudding

अमलतास से पेट के विभिन्न रोगों में सहायक Helpful in various diseases of stomach due to pudding

दस्त साफ होने के लिएTo cure diarrhea:

10 ग्राम अमलतास की फलियों का गूदा और 5 ग्राम हर्र (रंगाई के काम में आने वाली) की छाल को 500 मिलीलीटर पानी में अष्टमांश काढ़ा बनाकर उसमें शक्कर डालकर देना चाहिए।

 10 grams pulp of amalatus bean and 5 grams of bark of harra (used for dyeing) should be made after adding eightteen decoction in 500 ml water.

पेट दर्दStomachache:

पेट दर्द और गैस में अमलतास के गूदे को बच्चों की नाभि के चारों ओर लेप करने से लाभ होता है। अमलतास के 25 ग्राम गूदे में थोड़ा-सा नमक मिला लें, फिर इसे गाय के पेशाब में पीसकर पेट के ऊपर लेप करने से दर्द में लाभ होता है। थोड़ी-सी मात्रा में अमलतास के गूदे का प्रयोग करने से आराम होता है। पेट दर्द और अफारे में अमलतास की मज्जा को पीसकर बच्चों की नाभि के चारों ओर लेप करने से लाभ होता है। अमलतास के फल के गूदे को मुनक्का के साथ पीसकर लेने से पेट साफ हो जाता है।

 Applying pulp of pudding pipe in the stomach and around the navel of children is beneficial. Mix a little salt in 25 grams pulp of Amlatas, then grind it in cow's urine and apply it on the stomach, it provides relief in pain. Using a small quantity of pulp of pudding pipe provides relief. Grinding marrow of pudding pipe and applying it around the navel of children is beneficial. Grind pulp of pudding pipe tree with dry grapes and take, it clears the stomach.

अर्दित (यह एक प्रकार का वायु रोग है जिसमें रोगी का मुंह टेढ़ा हो जाता है) :Ardit (This is a type of wind disease in which the mouth of the patient becomes crooked):  

अमलतास के 10-15 पत्तों को गर्म करके उनकी पुल्टिस बांधने से सुन्नवात, गठिया (जोड़ों का दर्द) और अर्दित में फायदा होता है। वात वाहिनियों के आघात से उत्पन्न अर्दित एवं वात रोगों में अमलतास के पत्तों का रस पिलाने से लाभ होता है। अमलतास के पत्तों का रस पक्षाघात से पीड़ित स्थान पर मालिश करने से भी लाभ होता है।

By heating 10-15 leaves of Amtalas and tying their chloasma, it helps in numbness, arthritis (joint pain) and Ardit. Drinking the juice of pudding leaves is beneficial in ardent and rheumatic diseases arising from the trauma of the airways. Massaging the juice of pudding leaves at the place affected by paralysis is also beneficial.

उदावर्त (पेट की अन्तड़ियों का सही ढंग से काम करना) :Urticaria (stomach ulcers do not work properly):

 4 साल से लेकर 12 साल तक के बच्चे के पेट में यदि जलन तथा उदावर्त रोग से पीड़ित हो तो उसे अमलतास की मज्जा को 2-4 नग मुनक्का के साथ देना चाहिए।

 If a child from 4 years to 12 years is suffering from burning sensation in the stomach and due to reflux disease, he should give the marrow of pudding pipe with 2-4 pieces of dry grapes.

विरेचन (दस्त लाने वाला) : Purgation:

अमलतास के फल का गूदा सर्वश्रेष्ठ मृदु विरेचक है। यह बुखार की अवस्था में बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को दिया जाता है। अमलतास के फल का 15-20 ग्राम गूदे को मुनक्का के रस के साथ देने से उत्तम विरेचन होता है।

The pulp of the fruit of pudding is the best soft detector. It is given to children and pregnant women in the state of fever. Giving 15-20 grams of pulp of Amlatus fruit with grapefruit juice leads to better purgation.


Dr.Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
 yourselfhealthtips.blogspot.com

आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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