अन्धाहुली Blind eye
अर्कपुष्पी जीवन्ती का ही एक प्रकार है। अर्कपुष्पी की बेल नागरबेल की तरह और पत्ते गिलोय की तरह छोटे होते हैं। इसका फूल सूर्यमुखी की तरह गोल होता है, इसमें से दूध निकलता है।
Arkapushpi is a type of life. The vine of Arkpushpi is small like Nagarabel and the leaves are small like Giloy. Its flower is round like a sunflower, milk comes out of it.
विभिन्न भाषाओं में नाम :Names in different languages:
संस्कृत अर्कपुष्पी, क्रूरकर्मा, पयस्या, जलकामुका हिंदी अर्कपुष्पी, अन्धाहुली। बंगाली बड़क्षीरुई। मराठी सूर्य फूलवल्ली। गुजराती सूर्यमुखी। लैटिन होलेस्टमा हिड आई गुण : अर्कपुष्पी आंखों के लिए हितकारी तथा बांझपन दूर करने वाली होती है।
Sanskrit Arkapushpi, Krukkarma, Payasya, Jalakamuka Hindi Arkapushpi, Andahuli. Bengali Badakshirui. Marathi Surya Phoolavalli. Gujarati Sunflower. Latin Holestama Hide Eye Properties: Arkapushpi is beneficial for the eyes and removes infertility.
विभिन्न रोगों में उपयोग : Use in various diseases:
1. बवासीर :
सोंठ, भिलावा शुद्ध, विधारा बीज तीनों का चूर्ण समान मात्रा लेकर उसमें दुगुनी मात्रा में गुड़ डालें। फिर इसे अच्छी तरह से पकाकर लड्डू बनाकर 2 ग्राम से 3 ग्राम तक ठंडे पानी से सेवन करें। इससे सभी प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।
1. Piles:
Take equal quantity of powder of dry ginger, Bhilava pure, Vidhara seeds, three and add jaggery in it. Then cook it well and make laddus and consume 2 grams to 3 grams of cold water. All types of piles are cured by this.
2. गर्भधारण :
अन्धाहुली और ब्रह्मबूटी 15-15 ग्राम कूट-छानकर 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध से मासिक-धर्म खत्म होने के बाद सेवन करने से गर्भधारण होता है।
2. Pregnancy:
After taking menstrual and brahmabuti, 15 grams of cod-filtered and 3 grams of 250 ml raw milk of cow in the morning and evening after the end of menstruation, leads to pregnancy.
3. गठिया रोग :
अन्धाहुली के वृक्ष की जड़ को पीसकर गठिया के दर्द में लगाने से दर्द से आराम मिलता है।
3. Arthritis:
Grinding the root of blind tree and applying it to the pain of arthritis provides relief from pain.
4. फोडे़ (सिर के फोडे़) :
अन्धाहुली (अध:पुष्पी) जिसके फूल नीचे की ओर लटकते रहते हैं, उसकी जड़ को पीसकर फोड़े पर लेप की तरह लगाने से सूजन खत्म हो जाती है।
4. Pudding (Pimples of the head):
Grind the root of the blind, whose flowers are hanging down, applying its paste on the boils as a paste ends swelling.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा, आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।
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