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काली मिर्च (Black Pepper for Health)

काली मिर्च (Black Pepper for Health)

काली मिर्च को भारतीय रसोई में मसाले के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। काली मिर्च सिर्फ हमारे भोजन को ही स्वादिष्ट बनाती बल्कि हमारे स्वास्थ्य को भी ठीक रखती है। यह औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण कई बीमारियों से बचाती है तथा विशेषकर पेट से संबंधित सभी परेशानियों को दूर करती है।

Black pepper is used as a spice in Indian kitchens. Black pepper not only makes our food tasty but also keeps our health healthy. Due to its rich medicinal properties, it prevents many diseases and removes all the troubles especially related to stomach.

काली मिर्च, लाल मिर्च के मुक़ाबले कम तीखी लेकिन अधिक गुणकारी होती है। इसीलिए मसाले में लाल मिर्च से ज्यादा काली मिर्च का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेदिक दृष्टि से काली मिर्च को सभी प्रकार के जीवाणु (बैक्टीरिया), विषाणु (वायरस) आदि का नाश करने वाली औषधि माना गया है।

Black pepper is less spicy but more effective than red pepper. That is why pepper is used more than red chili in spices. From ayurvedic point of view, black pepper is considered a drug to destroy all kinds of bacteria, viruses, etc.

काली मिर्च में पिपरीन, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज, जिंक, क्रोमियम, विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन डी, ऐसे एंटी ऑक्‍सीडेंट तथा अन्य पोषक तत्‍व पाए जाते हैं, जो पेट दर्द, बदहजमी अरुचि (भूख न लगना), बुखार, दांत दर्द, मसूड़ों की सूजन, आंखों से जुड़ी समस्या आदि रोगों में लाभकारी सिद्ध होते हैं।

Black pepper contains piperine, iron, potassium, magnesium, manganese, zinc, chromium, vitamin C, vitamin A, vitamin D, such anti-oxidants and other nutritional elements that cause stomach ache, indigestion, anorexia (loss of appetite), fever , Toothache, swelling of gums, problems related to eyes, etc. are proven beneficial in diseases.

Dr.Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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