बड़हर Barhar
बड़हर का फल पीली लाली लिए हुए होता है तथा इसकी गिरी सफेद और लाल रंग की होती है। स्वाद : इसका स्वाद खट्टा होता है।
The fruit of Barhar has yellow redness and its kernel is white and red in color. Taste: It tastes sour.
स्वरूप :
बड़हर के पेड़ बहुत ऊंचे और लंबे होते हैं। इसके पेड़ बाग-बगीचों में होते हैं। इसके पत्ते पाखर के आकार के तथा इसके फलों में गांठे पायी जाती हैं। इसके फल गोल और कैथे के बराबर होते हैं। इसका फल कच्चा रहने की अवस्था में हरे रंग का तथा पक जाने पर पीले रंग का हो जाता है। इसके फल के अन्दर 10-12 सफेद रंग के बीज पाये जाते हैं। यह कटहल की ही जाति होती है। इसके फल को लकुच कहते हैं।
Format:
The trees of Barhar are very tall and tall. Its trees are grown in gardens. Its leaves are shaped like puddles and bales are found in its fruits. Its fruits are equal to round and cathay. Its fruit becomes green in raw condition and becomes yellow on ripening. Its fruit contains 10-12 white colored seeds. It is a caste of jackfruit. Its fruit is called lakuch.
स्वभाव :
आयुर्वेद के अनुसार कच्चा बड़हर शरीर के लिए गर्म माना जाता है तथा पका हुआ बड़हर शरीर के लिए ठंडा माना जाता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार कच्चा बड़हर ठंडा होता है और पक्का बड़हर गर्म होता है।
Nature:
According to Ayurveda, raw Barhar is considered hot for the body and cooked Barhar is considered cold for the body. According to the Unani system of medicine, raw barhar is cold and pucca bighar is hot.
हानिकारक :
बड़हर का अधिक मात्रा में सेवन धातुओं के लिए हानिकारक होता है।
Harm:
Consuming large amounts of Barhar is harmful for metals.
दोषों को दूर करने वाला :
शिकज्वीन का उपयोग बड़हर के हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
Defector Removal:
Shikzwine is used to destroy the harmful effects of Badhar.
गुण :
आयुर्वेद के अनुसार कच्चा बड़हर शरीर के लिए गर्म होता है। यह शरीर में देर से पचता है तथा शरीर के वात, कफ, और पित्त के विकारों को दूर करता है। यह खून में विकार उत्पन्न करता है, आंखों की रोशनी के लिए हानिकारक होता है तथा शरीर के वीर्य और पाचनशक्ति को खत्म करता है।
Qualities:
According to Ayurveda, raw Barhar is hot for the body. It is digested late in the body and cures disorders of vata, phlegm, and bile in the body. It causes disorder in the blood, is harmful to the eyesight and ends the body's semen and digestive power.
पका बड़हर :
यह वात और पित्त को नष्ट करता है, कफ को बढ़ाता है, पाचनशक्ति तथा शरीर में वीर्य को बढ़ाता है।
Ripe Barhar:
It destroys vata and bile, increases phlegm, increases digestion and semen in the body.
बड़हर का बीज :
यह बच्चों के स्वभाव को विनम्र रखता है, यदि मां के दूध के साथ बड़हर खिलाया जाए तो इसका दूध बच्चों के लिए जुलाब होता है। तथा यह कफ के बुखार को पैदा करता है।
Seed of Badhar:
It keeps the nature of children humble, if fed Barhar with mother's milk, its milk is lax. And it causes phlegm fever.
विभिन्न रोगों में सहायक:
1. घाव : बड़हर के पेड़ की छाल के काढे़ से घाव धोकर यदि इसी के छाल का चूर्ण छिड़ककर घाव पर पट्टी बांधे तो घाव शीघ्र ही ठीक हो जाता है।
Helpful in various diseases:
1. Wound: If you wash the wound with decoction of the bark of Barhar tree and spray the powder of its bark and tie it on the wound, the wound is cured soon.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा, आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।
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