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अमलतास से विभिन्न त्वचा से सम्बंधित रोगों में सहायक Amlatas helpful in various skin related diseases

अमलतास से विभिन्न त्वचा से सम्बंधित रोगों में सहायक Amlatas helpful in various skin related diseases

त्वचा से सम्बंधित रोग : Skin related diseases:

अमलतास के पत्तों को सिरके में पीसकर बनाए लेप को चर्म रोगों यानी दाद, खाज-खुजली, फोड़े-फुंसी पर लगाने से रोग दूर होता है। यह प्रयोग कम से कम तीन हफ्ते तक अवश्य करें। अमलतास के पंचांग (पत्ते, छाल, फूल, बीज और जड़) को समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को लगाने से त्वचा सम्बंधी उपरोक्त रोगों में लाभ मिलता है। अमलतास, कनेर और मकोय के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर मट्ठे के साथ पीसकर लेप बनाकर लगाने से त्वचा के रोग में आराम होता है।

Grind the leaves of pudding pipe tree in vinegar and apply it on skin diseases ie ringworm, itching, boils and pimples. Do this experiment for at least three weeks. Grind equal quantity of panchang (leaves, bark, flowers, seeds and roots) of Amalatas with water and make a paste. Applying this paste provides benefits in the above skin related diseases. Grind equal quantity of leaves of Amlatas, Kaner and Makoy and grind it with whey and apply it on the skin.

कुष्ठ (कोढ़) :Leprosy (leprosy): 

अमलतास के पत्तों को पीसकर बना लेप अथवा अमलतास के अंकुरों के रस का लेप कुष्ठ, दाद, खाज-खुजली और विचर्चिका (खुजली) के चकत्तों पर लगाने से लाभ होगा। अमलतास के पत्तों को सिरके के साथ पीसकर कुष्ठ के जख्मों पर लगाने से आराम आता है। अमलतास की 15-20 पत्तियों से बना लेप कुष्ठ का नाश करता है।  

Applying a paste made from the leaves of Amtalas or the juice of Amalatus seedlings on the leprosy, ringworm, itching and itching, will be beneficial. Grind the leaves of pudding pipe with vinegar and apply it on leprosy wounds. A paste made from 15-20 leaves of Amaltas destroys leprosy.

अमलतास की जड़ का लेप कुष्ठ रोग के कारण हुई विकृत त्वचा को हटाकर जख्म वाले स्थान को ठीक कर देता है। अमलतास के पत्तों को पीसकर लेप करने से कुष्ठ, चकत्ते, दाद, खाज आदि चर्म रोगों में लाभ होता है तथा कब्ज भी दूर होती है।

The paste of the root of Amlatas removes the deformed skin caused by leprosy and cures the wound. Applying ground leaves of pudding pipe is beneficial in skin diseases like leprosy, rashes, shingles, scabies and constipation also.

शरीर में सूजन :Swelling in the body:  

लगभग 20 ग्राम की मात्रा में अमलतास के ताजे फूल और 3 ग्राम की मात्रा में भुना हुआ सुहागा लेकर उसको हल्के गर्म पानी के साथ सुबह और शाम को देने से यकृत और प्लीहा वृद्धि के कारण पैदा होने वाली सूजन दूर हो जाती है।

Taking about 20 grams of fresh flowers of pudding and 3 grams of roasted icing with lukewarm water in the morning and evening, eliminates swelling due to liver and spleen enlargement. .

चालविभ्रम (लंगड़ाकर चलना) : Chalabhrambh (walking limp): 

लुढ़ककर चलने वाले रोगी को अमलतास के पत्तों का रस 100 से 200 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन कराने से रोग दूर होता है। इसके रस से पैरों की अच्छी तरह से मालिश भी करें। इससे रोगी का रोग ठीक होता है।

Taking 100 to 200 ml juice of Amlatus leaves in the morning and evening to a patient who is rolling, ends the disease. Massage the feet thoroughly with its juice. This cures the patient's disease.

 चेहरे के लकवे के लिएFor facial paralysis: 

10 से 20 मिलीलीटर अमलतास के पत्तों का रस रोगी को सुबह और शाम पिलायें इसके साथ ही इसी रस से चेहरे की मांसपेशियों पर दिन और रात को लगातार मालिश करते रहने से जरूर लाभ होगा।

Drink 10-20 ml juice of Amlatus leaves to the patient morning and evening, along with this juice, massaging the muscles of the face continuously day and night will definitely benefit.

Dr.Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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