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विभिन्न सभी कारणों से उत्पन्न रोगों में सहायक अमलतास Amlatas helpful in various diseases caused by all causes

विभिन्न सभी कारणों से उत्पन्न रोगों में सहायक अमलतास Amlatas helpful in various diseases caused by all causes

डब्बा रोग (बच्चों की पसलियों का चलना) : Bin disease (walking of children's ribs): 

अमलतास की एक फली लेकर उसे जला लें और बारीक पीसकर शीशी में भरकर रख लें। जब बच्चे की पसली चल रही हो तो उस समय 1 चुटकी चूर्ण चटा दें। जल्दी आराम मिल जायेगा।

Burn a pod of pudding pipe and grind it finely and fill it in a vial. When the child's rib is running, then lick 1 pinch of powder. You will get rest soon.

नाड़ी का घाव : Wound of pulse: 

अमलतास, हल्दी और मंजीठ बराबर मात्रा में लेकर उसे अच्छी तरह से पीस लें। उस पिसी हुई पेस्ट से बत्ती बनाकर नाड़ी के घाव पर रखने से सभी कारणों से उत्पन्न नाड़ी के घाव में लाभ होता है।

Grind it well after taking equal quantity of pudding, turmeric and starch. By making a light from that ground paste, placing it on the pulse wound, there is benefit in the wound caused by all the causes.

बालरोगों पर औषधि :Medicine on pediatricians:  

अमलतास की जड़ को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर गलगण्ड (घेंघा) तथा गण्डमाला (गले की गांठों) पर लेप करने से दोनों रोग ठीक हो जाते हैं। 74. कंठपेशियों का पक्षाघात : 10 से 20 मिलीलीटर अमलतास के पत्तों का रस सुबह और शाम पिलाने और उसी पत्तों के रस से कण्ठपेशियों (गले की नसों) पर मालिश करने से बहुत आराम आता है।

Grind the root of pudding pipe tree and mix it with water and apply it on the goiter (goiter) and goiter (throat nodes). Both diseases are cured. 74. Laryngitis paralysis: Drinking the juice of 10 to 20 ml Amlatus leaves in the morning and evening and massaging the glands (throat veins) with the juice of the same leaves provides great relief.

कान का बहना : Outer ear:

100 ग्राम अमलतास के पत्तों को पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से कान को अंदर तक धोने से कान में से मवाद बहना ठीक हो जाता है। अमलतास का काढ़ा बनाकर कान में डालने से कान में से मवाद बहना ठीक हो जाता है।

Make a decoction by boiling 100 grams of Amlatus leaves in water. Washing the ear with this decoction ends pus in the ears. Pouring decoction of pudding pipe in the ear, it cures bleeding from the ear.

रक्तपित्त : Blood bile

अमलतास और आंवले का काढ़ा बनाकर उसमें शहद तथा शक्कर मिलाकर पिलायें। इससे दस्त होकर रक्तपित्त दूर हो जाता है। अमलतास के फल मज्जा को अधिक मात्रा में लगभग 25 से 50 ग्राम में 20 ग्राम शहद और शर्करा के साथ सुबह-शाम देना रक्तपित्त में लाभकारी है

Make a decoction of pudding and gooseberry and mix honey and sugar in it and drink it. Due to this, diarrhea is cured by bleeding. Giving the fruit marrow of Amlatus in about 25 to 50 grams with 20 grams of honey and sugar in the morning and evening is beneficial in blood disorders.

विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल बनना) : Visarp (forming a group of small pimples):

अमलतास के पत्तों को पीसकर घी में मिलाकर लेप करने से विसर्प में लाभ होता है। किक्किस रोग, सद्योव्रण में अमलतास के पत्तों को स्त्री के दूध या गाय के दूध में पीसकर लगाना चाहिए।

Grind the leaves of pudding and mix it with ghee and apply it on the erysipelas. In Kikkis disease, Sadovran, the leaves of Amlatas should be ground and grinded in female milk or cow's milk.

अंडवृद्धि :Boil:  

अमलतास की फली के 1 चम्मच गूदे को 1 कप पानी में उबालकर आधा शेष रहने पर उसमें 1 चम्मच घी मिलाकर खड़े-खड़े पीने से अंडवृद्धि में लाभ होता है। 20 ग्राम अमलतास के गूदे को 100 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, 50 मिलीलीटर पानी शेष रह जाने पर 25 ग्राम घी में मिलाकर पीने से अंडकोष की सूजन कम हो जाती है।

Boil one spoon of pulp of pudding pod in one cup of water and after remaining half, mix 1 teaspoon of ghee in it and drink it while standing, it provides benefit in ovulation. Boil 20 grams pulp of pudding pipe in 100 ml of water, after remaining 50 ml of water, mix 25 grams of ghee and drink it, it reduces swelling of testicles.

सुप्रसव (आसानी से बच्चे का जन्म) होना : Suprasava (childbirth easily):

प्रसव (प्रजनन) के समय अमलतास की फली के 2 चम्मच छिलके 2 कप पानी में उबालकर उसमें शक्कर मिलाकर छानकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से बच्चा सुख से पैदा हो जाता है।

Boil 2 teaspoons peel of Amlatus pods in 2 cups of water at the time of delivery (reproduction) and mix sugar in it and give it to the pregnant woman after feeding.

बुखार : Fever:

अमलतास की फल मज्जा को पीपरामूल, हरीतकी, कुटकी, मोथा के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से दर्द, कफ, वात और बुखार में लाभ होता है। यह काढ़ा पाचक भी है। अमलतास की जड़ आधा से 10 ग्राम पीसकर पीने से कब्ज दूर हो जाती है। अमलतास की जड़ का बारीक चूर्ण बुखार नाशक और पौष्टिक औषधि के रूप में प्रयुक्त होता है।

Make a decoction by mixing equal quantity of pomegranate, Haritaki, Kutki, Motha with the fruit marrow of pudding pipe and drink it, it provides relief in pain, phlegm, vata and fever. This decoction is also digestive. Constipation is cured by drinking half to 10 grams root of amlatas. Fine powder of the root of Amlatas is used as a fever destroyer and nutritious medicine.

कामला (पीलिया) होने पर : On having Kamala (jaundice): 

अमलतास का गूदा, पीपलामूल, नागरमोथा, कुटकी तथा जंगी हरड़। सबको 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर एक कप पानी में उबालें। काढ़ा जब आधा कप बचा रह जाए, तो इसका सेवन करें। लगातार 15 दिनों तक इसका सेवन करने से पीलिया के रोग में लाभ होगा।

pulp of pudding, peepamool, nagarmotha, kutki and jangi herd. Boil everyone in a quantity of 5-5 grams in a cup of water. When half a cup of the decoction remains, consume it. Consuming it continuously for 15 days will benefit in jaundice.

Dr.Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
 yourselfhealthtips.blogspot.com

आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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