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अमलतास से गले के रोग में सहायक Amaltas Helpful in throat diseases

अमलतास से गले के रोग में सहायक Amaltas Helpful in throat diseases

गले के रोग : 

अमलतास की जड़ की छाल 10 ग्राम की मात्रा में लेकर उसे 200 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें और पकाएं। पानी एक चौथाई बचा रहने पर छान लें। इसमें से 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से गले की सूजन, दर्द, टांसिल में शीघ्र आराम मिलता है। अमलतास की छाल (पेड़ की छाल) के काढ़े से गरारा करने पर गले की प्रदाह (जलन), ग्रंथिशोध (गले की नली में सूजन) आदि रोग ठीक हो जाते हैं।

Throat diseases: 

Boil 10 grams of bark of pudding root with 200 ml water and boil it. Sieve with one fourth of water left. Taking 1-1 spoon of this thrice a day provides quick relief in swelling, pain, and tonsils of the throat. Throat inflammation (burning sensation), glanditis (swelling of the throat), etc. are cured by gargling with the decoction of bark (tree bark).

कफरोग : 

अमलतास के गूदे में गुड़ मिलाकर और सुपारी के बराबर गोलियां बनाकर गर्म पानी के साथ देना चाहिए।

Cough: 

Mix jaggery in the pulp of pudding pipe and make tablets equal to betel nut with hot water.

खांसी : 

अमलतास की गिरी 5-10 ग्राम को पानी में घोटकर उसमें तिगुना बूरा डालकर गाढ़ी चाशनी बनाकर चटाने से सूखी खांसी मिटती है। अमलतास का 20 ग्राम गुलकन्द खाने से सूखी खांसी गीली खांसी में बदल जाती है। 10 ग्राम अमलतास के फूल तथा 20 ग्राम गुलकन्द को मिलाकर खाने से छाती (सीने) में जमा हुआ कफ निकल जाता है तथा खांसी में बहुत लाभ मिलता है। अमलतास के गूदे में गुड़ को मिलाकर सुपारी के बराबर गोलियां बनाकर पानी के साथ खाने से कफ गलकर निकल जाती है और खांसी भी नष्ट हो जाती है।

Cough: 

Dissolve 5-10 grams kernels of pudding pipe in water and add three spoons of it and make thick sugar syrup and lick dry cough. Dry cough is converted into wet cough by eating 20 grams of gulakanda of Amtalas. Eating 10 grams Amlatas flowers and 20 grams Gulkand, removes the phlegm that accumulates in the chest and provides great relief in cough. Mix jaggery in pulp of pudding pipe and make tablets equal to betel nut and eat with water, it brings out phlegm and cough is also destroyed.

कंटकरोग (पदि्मनी) : 

कंटकरोग में अमलतास और नीम का 40-60 ग्राम के काढ़ा का रोजाना प्रयोग करना अच्छा होता है।

Kantkaroga (Padmini): 

It is good to use 40-60 grams decoction of Amtalas and Neem daily in Kantkaroga.

जीभ का स्वाद ठीक करना : 

अमलतास का गूदा 20 ग्राम को गर्म दूध 250 मिलीलीटर में मिलाकर कुल्ला करें। इससे अफीम तथा कोकिन के सेवन से खराब जीभ का स्वाद फिर से ठीक हो जाता है।

To cure the taste of the tongue: 

Rinse 20 grams pulp of pudding pipe in 250 ml warm milk. By this, consumption of opium and cocaine helps to cure the bad tongue taste again.

उल्टी कराने वाली औषधियां : 

अमलतास के 5 से 7 बीज लेकर उसका चूर्ण बनाकर रोगी को खिलाने से तुरंत उल्टी हो जाती है।

Vomiting drugs: 

Taking 5 to 7 seeds of Amlatas and making powder of it, feeding the patient immediately causes vomiting.

कण्ठ रोहिणी के लिए : 

अमलतास के पेड़ की छाल या उसकी जड़ को पानी से साफ करने के बाद पानी में काफी देर तक उबालकर और छानकर बच्चे को कुल्ला कराने से बहुत आराम आता है।

For Kant Rohini: 

After cleaning the bark or root of the pudding tree with water, boiling it in water for a long time and filtering and rinse the baby provides great relief.

Dr.Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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