अम्लवेत Acid
अम्लवेत के पेड़ फल के लिए बागों में लगाये जाते हैं। अम्लवेत के फल को गुजराती में अम्लवेद कहते हैं। इसके पेड़ बड़े, पत्तियां बड़ी और चौड़ी होती हैं।
The acid trees are planted in the gardens for the fruit. The fruit of Amkaveta is called Amvedved in Gujarati. Its trees are large, the leaves are large and wide.
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत अम्ल वेत, चुक्र, शतवेधि सहस्रनुत्। हिंदी अम्लवेत, अमलबेत। बंगाली थैकड, अम्लवेतस। मलयालम चुका। गुजराती अम्लवेद। फारसी तुर्शक। अंग्रेजी कामन सोरेल। लैटिन एसीडोजे फोलिया।
Names in different languages:
Sanskrit Acid Vet, Chukra, Shatvedhi Sahasranut. Hindi Amalwet, Amalbet. Bengali Thaked, Amvetatus. Malayalam is finished. Gujarati Acid Veda. Persian Turks. English Common Sorel. Latin Acidoje folia.
रंग :
अम्लवेत के कच्चे फल का रंग हरा और पके फल का रंग पीला होता है और फूल का रंग सफेद होता है।
Color:
The color of the raw fruit of acid is green and the color of ripe fruit is yellow and the color of the flower is white.
स्वाद :
इसका स्वाद खट्टा होता है।
Taste:
It tastes sour.
स्वरूप :
अम्लबेत के पेड़ मध्यम आकार के तथा दो प्रकार के होते हैं एक आम्ल बेत दूसरी बेती इसको माली लोग बागों में लगाते हैं। इसका फल खरबूजे के समान होता है।
Appearance:
Acid tree is of medium size and of two types, one is canned and the other is planted by gardeners. Its fruit is similar to melon.
स्वभाव :
यह रूखा और गर्म प्रकृति का होता है।
Nature:
It is rough and warm in nature.
हानिकारक :
अम्लवेत पित्तकारक होता है जो हानिकारक भी हो सकता हैं।
Harmful:
Acid is a bile, which can also be harmful.
गुण :
अम्लवेत अत्यंत खट्टा, मलभेदक (मल को खुलकर लाने वाला), हल्का, अग्निदीपक (भूख को बढ़ाने वाला), आनन्द देने वाला, बकरी के मांस तथा सुई को गलाने वाला है। यह प्लीहा (तिल्ली) के लिए लाभदायक, हृदय रोग, गांठे, श्वास, खांसी, उल्टी तथा वात् सम्बंधी रोगों को नष्ट करता है।
Properties:
Acrid is very sour, malabhadek (opener to the stool), mild, agnipitak (hunger enhancer), enjoyable, goat meat and needle melting. It is beneficial for the spleen, it cures heart disease, bumps, breathing, cough, vomiting and vata related diseases.
प्रयोग :
अम्लवेत नाशपाती की तरह होता है किन्तु नाशपाती की अपेक्षा तिगुना चौड़ा होता है। जैसे आम को सुखाकर अमचूर बनाते हैं, उसी तरह से कुछ प्रदेशों में इसको सुखाकर खटाई बनाते हैं। यह अत्यंत खट्टा होता है।
Usage:
Acid is like pear but it is three times wider than pear. Just as mango is dried and made mango powder, similarly in some regions it is dried and made sour. It is very sour.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा, आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।
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