निर्गुण्डी से कामशक्ति,नारू,घाव,टिटनेस,बुखार,गांठ रोगों में उपचार Treatment of Nirgundi in Kamashakti, Naru, Wounds, Tetanus, Fever, Lump diseases
निर्गुण्डी से कामशक्ति,नारू,घाव,टिटनेस,बुखार,गांठ रोगों में उपचार Treatment of Nirgundi in Kamashakti, Naru, Wounds, Tetanus, Fever, Lump diseases
कामशक्ति (सेक्स पावर) :Kamashakti (sex power)
- निर्गुण्डी 40 ग्राम और 40 ग्राम शुंठी को एक साथ पीस लें। इसकी 8 खुराक बना लें। रोजाना इसकी एक खुराक दूध के साथ सेवन करने से कामशक्ति में वृद्धि होती है।
- Grind 40 grams of Nirgundi and 40 grams of Shunthi together. Make 8 doses of it. Consuming one dose of it daily with milk increases the strength.
- निर्गुण्डी को घिसकर कामेन्द्रिय पर लगाने से कमजोरी दूर हो जाती हैं।
- Grinding the nirgundi and applying it on the senses removes weakness.
नारू (गंदा पानी पीने से होने वाला रोग) :Naru (disease caused by drinking dirty water)
निर्गुण्डी के पत्तों के 10-20 मिलीलीटर रस को सुबह-शाम पिलाने से और पत्तों से सेंक करने से लाभ होता है।
Drinking 10-20 ml juice of nirgundi leaves in the morning and evening can be beneficial.
सभी रोगों के लिए :For all diseases
निर्गुण्डी को शिलाजीत के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
Taking Nirgundi with Shilajit is beneficial.
घाव :wound
- निर्गुण्डी के पत्तों से बनाये हुए तेल को लगाने से पुराने से पुराना घाव भरने लगता है।
- Applying oil made from the leaves of Nirgundi starts healing old wounds.
- निर्गुण्डी की जड़ और पत्तों से निकाले हुए तेल को लगाने से दुष्ट घाव, पामा, खुजली और विस्फोटक (चेचक) आदि से उत्पन्न घाव ठीक हो जाता है।
- Applying oil extracted from the root and leaves of Nirgundi cures wounds caused by wicked wounds, pamas, itching and explosives (smallpox) etc.
बन्द गांठ :Closed knot
निर्गुण्डी के पत्तों को गर्म करके बन्द गांठ पर बांधने से गांठ बिखर जाती हैं।
By heating Nirgundi leaves and tying them on a closed lump, the lumps are shattered.
टिटनेस :Tetanus
निर्गुण्डी का रस 3 से 5 मिलीलीटर दिन में तीन बार शहद के साथ देने से टिटनेस में लाभ मिलता है।
Taking 3 to 5 ml juice of Nirgundi with honey thrice a day provides relief in tetanus.
बुखार :fever
- निर्गुण्डी के 20 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब 100 मिलीलीटर के लगभग शेष बचे तो इस काढ़े को उतार लें। इस काढे़ में 2 ग्राम पीपल का चूर्ण बुरककर सुबह-शाम 10-20 मिलीलीटर पिलायें। इससे जुकाम (प्रतिश्याय), बुखार और सिर के भारीपन में लाभ होता है।
- Boil 20 grams leaves of nirgundi in 400 ml water, remove this decoction when there is almost 100 ml remaining. In this decoction, drink 2 grams powder of peepal powder and drink 10-20 ml in the morning and evening. It provides relief in cold, fever and heaviness of the head.
- निर्गुण्डी के 10 ग्राम पत्तों को 100 मिलीलीटर पानी में उबालकर सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
- Boil 10 grams leaves of nirgundi in 100 ml water and drink it twice a day, it provides relief.
- 14 से 28 मिलीलीटर निर्गुण्डी के पत्तों के रस को शहद के साथ दिन में 2 बार देने से लाभ मिलता है।
- Giving the juice of 14 to 28 ml Nirgundi leaves with honey 2 times a day is beneficial.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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