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नागकेसर से शीतपित्त,वीर्य,जोड़ों के,हैजा, दाग और खाज,नाक के रोग उपचार Treatment of hives, semen, joints, cholera, scars and scabies, nose diseases from Nagakesar

नागकेसर से शीतपित्त,वीर्य,जोड़ों के,हैजा, दाग और खाज,नाक के रोग उपचार Treatment of hives, semen, joints, cholera, scars and scabies, nose diseases from Nagakesar
शीतपित्त:Hives
  • नागकेसर 5 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम खाने से शीतपित्त में बहुत लाभ होता है।
  • Taking 5 grams honey of Nagakesar and eating it twice a day is very beneficial in hives.
 
  • आधा चुटकी नागकेसर को 25 ग्राम शहद में मिलाकर खाने से लाभ होता है।
  • Mixing half a pinch of Nagarkasar with 25 grams of honey is beneficial.
नाक के रोग:nose disease:
नागकेसर (पीला नागकेसर) के पत्तों का उपनाह (लेप) सिर पर लगाने से बहुत तेज जुकाम भी ठीक हो जाता है।
Applying the paste of Nagakesar (yellow Nagkasar) leaves on the head also cures very fast cold.
 
वीर्य रोग:Semen disease:
नागकेसर 2 ग्राम को पीसकर मक्खन के साथ खाना चाहिए।
 Grind 2 grams of Nagakesar and eat it with butter.
जोड़ों के (गठिया रोग) दर्द में:Joint pain (arthritis):
  • जोड़ों के दर्द के रोगी को नागकेसर के तेल की मालिश करने से आराम मिलता है।
  • Massage of Nagkasar oil provides relief to the patient of joint pain.
 
  • नागकेशर के बीजों के तेल की मालिश करने से गठिया रोग दूर हो जाता है।
  •  Massaging the oil of Nagakeshar seeds cures arthritis.
हैजा:Cholera:
बड़ी इलायची, धान की खील, लौंग, पीली नागकेसर, मेंहदी, बेर की गुठली की गिरी, नागरमोथा तथा सफेद चन्दन-इन सबको बराबर मात्रा में लेकर, कूट-पीस छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के एक भाग में पिसी हुई मिश्री मिला दें। इस चूर्ण को शहद के साथ चटाने से तीनों दोषों के कारण उत्पन्न भयंकर वमन (उल्टी) भी दूर हो जाती है।
 Make a powder by grinding equal amount of cardamom, rice pudding, cloves, yellow cobra saffron, rosemary, plum kernel, nagarmotha and white sandal - all in equal quantity. Mix powdered sugar in one part of this powder. Licking this powder with honey also removes severe vomiting (vomiting) caused by all the three doshas.
चेहरे के दाग और खाज खुजली: Facial Stains and Scabies Itching:
पीले नागकेसर के तेल को लगाने से खाज-खुजली दूर हो जाती है।
Applying yellow cobra saffron oil ends itching and scabies.


Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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