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गाजर से विभिन्न रोगों में उपचार Treatment of carrot in various diseases

गाजर से विभिन्न रोगों में उपचार Treatment of carrot in various diseases

गर्भावस्था: Pregnancy:

गर्भावस्था में गाजर का रस पीते रहने से सैप्टिक रोग नहीं होता तथा शरीर में कैल्शियम की भी कमी नहीं रहती है। बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को नियमित रूप से गाजर के रस का सेवन करना चाहिए। इससे उसके दूध की गुणवत्ता बढ़ती है।

Drinking carrot juice during pregnancy does not cause septic disease and there is no lack of calcium in the body. Mothers feeding milk should regularly consume carrot juice. This increases the quality of his milk.

दस्त:Diarrhea:
  • गाजर का सेवन करने से पुराने दस्त, अपच और संग्रहणी रोग ठीक हो जाते हैं। गाजर का अचार बनाकर सेवन करने से बढ़ी हुई तिल्ली कम हो जाती है।
  • आधे कप गाजर के रस में थोड़ी-सा सेंधा नमक मिलाकर 1 दिन में लगभग 4 बार चाटने से दस्त ठीक हो जाता है।
  • Chronic diarrhea, indigestion and sprue diseases are cured by consuming carrot. Increased spleen is reduced by consuming carrot pickle.
  • Mixing a little rock salt in half a cup of carrot juice and licking it about 4 times in a day can cure diarrhea.
यकृत रोग:liver disease:

यकृत के रोग से पीड़ित रोगी को गाजर का रस, गाजर का सूप या गाजर का गर्म काढ़ा सेवन कराने से लाभ मिलता है।
Carrot juice, carrot soup or hot carrot decoction is beneficial for the patient suffering from liver disease. 

कैंसर: Cancer:

गाजर का रस पीने से कैंसर नष्ट हो जाता है। ल्यूकोमिया (ब्लड कैंसर) और पेट के कैंसर में यह अधिक लाभदायक होता है।
Cancer is destroyed by drinking carrot juice. It is more beneficial in leukemia (blood cancer) and stomach cancer.

अम्लरक्त: Acidified:

अम्लरक्त के रोग में गाजर का रस पीने से लाभ मिलता है।
Drinking carrot juice is beneficial in acidosis.

हृदय अधिक धड़कना: Heart pulsation:

हृदय कमजोर होने पर रोजाना 2 बार गाजर का रस पीने से लाभ होता है। हृदय की धड़कन बढ़ना तथा शरीर का खून गाढ़ा होने पर गाजर का सेवन करने से लाभ मिलता है।
If the heart is weak, drinking carrot juice twice a day is beneficial. Taking carrot is beneficial when the heart rate increases and the blood of the body becomes thick.

नाक और गले के रोग:Diseases of the nose and throat:

250 मिलीलीटर गाजर और पालक का रस रोजाना पीने से नाक और गले के रोग ठीक हो जाते हैं।
Nose and throat diseases are cured by drinking 250 ml carrot and spinach juice daily.

दांतों के रोग:Dental diseases:
  • 70 मिलीलीटर गाजर का रस रोजाना पीने से मसूढ़ों और दांतों में रोग पैदा नहीं होते और दांतों की जड़ें मजबूत हो जाती है।
  • Drinking 70 ml carrot juice daily does not cause diseases in the gums and teeth and makes the roots of teeth strong.
 
  • दांतों को मजबूत करने के लिए गाजर का रस रोजाना पीयें। इससे दांतों की जड़े मजबूत होते हैं तथा दांत का हिलना बंद हो जाता है।
  • To strengthen teeth, drink carrot juice daily. This makes teeth roots strong and stops shaking of the teeth.
सांस में दुर्गंध आना:Bad breath:

गाजर, पालक और खीरे का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से सांस से बदबू नहीं आती है।
Mixing equal amounts of carrot, spinach and cucumber juice does not smell bad by drinking. 

पेशाब में धातु का आना:Metal ingestion in urine:

250 मिलीलीटर गाजर का रस रोजाना 3 बार पीने से पेशाब में धातु आना बंद हो जाता है।
Drinking 250 ml carrot juice 3 times daily stops the metal coming in urine.
 
खून में लाल कणों की कमी होना:Deficiency of red particles in blood:

250 मिलीलीटर गाजर का रस और पालक का रस मिलाकर पियें। इससे शरीर के खून में लाल कणों की वृद्धि होती है तथा इसके साथ ही इसके सेवन से कई प्रकार के रक्त चाप, फोड़ा, गुर्दे के रोग जैसे पेशाब बूंद-बूंद आना, पेशाब कम होना, पेशाब में सफेद पदार्थ आना, सांस की नली में सूजन, कैंसर, मोतियाबिन्द, सर्दी, जुकाम, कंठमाला (घेंघा रोग) और बवासीर आदि रोग भी दूर हो जाते हैं।

Drink 250 ml of carrot juice and spinach juice. It increases red particles in the blood of the body and in addition to this, many types of blood pressure, boils, kidney diseases like urination, drop of urine, reduced urination, white matter in the urine, in the wind pipe Inflammation, cancer, cataracts, colds, colds, scrofula (goiter disease) and piles etc. are also cured.

गुर्दे के रोग तथा सूजन: Kidney diseases and inflammation:

2 चम्मच गाजर के बीज को 1 गिलास पानी में डालकर उबालकर पीने से पेशाब ज्यादा आता है जिसके फलस्वरूप गुर्दे के कई रोग ठीक हो जाता है और सूजन भी दूर हो जाती है।
Boil 2 spoons of carrot seeds in one glass of water and drink, it makes more urine, due to which many diseases of the kidneys are cured and swelling also disappears.

रक्तस्राव: Bleeding:

गाजर किसी भी अंग से बहने वाले खून बहने से रोकती है।
Carrots prevent bleeding from any organ.

गाजर की गर्म पोटली फोड़े:Hot carrot boils of carrots:
  • फुंसियों पर बांधने से ये जल्दी ठीक होने लगते हैं। यह फोड़े- फुंसियों के जमे हुए खून को भी पिघला देती है।
  •  By tying on the pimples, they begin to heal quickly. It also melts the frozen blood of boils.
 
  • गाजर को उबालकर उसकी चटनी बना लें और फुंसियों पर लगाऐं इससे लाभ मिलेगा।
  •  Boil the carrot and make its sauce and apply it on the pimples.
 
सीने का दर्द: Chest pain:

गाजरों को उबालकर उसमें शहद मिलाकर सेवन करने से सीने का दर्द समाप्त हो जाता है।
Boil carrots and mix honey in it and take, it ends chest pain.

घुटने का दर्द:Knee pain

गाजर का रस संधिवात और गठिया के रोग को ठीक करने में लाभकारी है। गाजर, ककड़ी और चुकन्दर का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से जल्दी लाभ होता है।
Carrot juice is beneficial in curing rheumatism and arthritis. Mixing equal quantity of carrot, cucumber and beetroot juice is a quick benefit. 

दिमागी थकान: Mental fatigue:

रोजाना सुबह के समय 6-7 बादाम खाकर तथा इसके बाद 125 मिलीलीटर गाजर का रस व 500 मिलीलीटर गाय का दूध मिलाकर पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है जिसके फलस्वरूप दिमागी थकान भी दूर होती है।
Eating 6-7 almonds daily in the morning and after that mixing 125 ml carrot juice and 500 ml cow's milk increases drinking power, which also reduces mental fatigue.


Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
  क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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