इमली से रोगों में उपचार Treatment in tamarind diseases
अजीर्ण (पुरानी कब्ज): Indigestion (chronic constipation):
इमली की ऊपर की छाल को जलाकर, सोते समय लगभग 6 ग्राम गर्म पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण रोग में लाभ होता है।
Burning the top bark of tamarind and taking about 6 grams of it with warm water at bedtime is beneficial in indigestion.
भूख कम लगना:Loss of appetite:
इमली के पत्तों की चटनी बनाकर खाने से भूख तेज लगने लगती है।
By eating tamarind leaves sauce, the appetite starts to intensify.
भांग के नशे पर: On cannabis addiction:
इमली को गलाकर उसका पानी पीने से भांग का नशा उतर जाता है।
Drinking tamarind and drinking its water causes the addiction of cannabis.
अरुचि और पित्त: Anorexia and Pitta:
अन्दर
से पकी हुई तथा अधिक गूदेवाली इमली को ठण्डे पानी में डालकर इसमें शक्कर
मिलाना चाहिए। इसके बाद इसमें इलायची के दाने, लौंग, कपूर और कालीमिर्च
डालकर बार-बार कुल्ला करें। इससे अरुचि और पित्त का रोग दूर होता है।
Sugary-cooked and more pulpy tamarind should be added in cold water and added sugar to it. After this, add cardamom seeds, cloves, camphor and black pepper and rinse again and again. It cures anorexia and bile disease.
कब्ज तथा पित्त: Constipation and bile:
1
किलो इमली को 2 लीटर पानी में 12 घंटे तक गर्म करें, जब आधा पानी जल जाये
तो उसमें 2 किलो चीनी मिला दें। इसे शर्बत की तरह बनाकर रोजाना 20 ग्राम से
लेकर 50 ग्राम तक कब्ज वाले रोगी को रात में और पित्त वाले को सुबह उठते
ही पीने से लाभ होता है।
Heat 1 kg tamarind in 2 liters of water for 12 hours, when half the water is burnt, add 2 kg sugar to it. By making it like sorbet, drinking 20 grams to 50 grams every day for the patient with constipation at night and bile in the morning, it is beneficial to drink.
अजीर्ण और अरुचि: Indigestion and anorexia:
सुपारी
के बराबर पुरानी इमली को लेकर 1 कलई के बर्तन में 250 मिलीलीटर पानी में
डालकर उसमें भिगोकर रख दें। जब यह खूब अच्छी तरह गल जाए तो हाथ से अच्छी
तरह मसलकर उसका पानी दूसरे कलई के बर्तन में निकाल लें और फिर उसमें काला
नमक, जीरा और शक्कर डालकर घी में हींग को बघारकर छौंक दें। यह इमली का पानी
बहुत रुचिकारक और अन्न को पकाने वाला होता है।
Take the old tamarind equal to betel nut, put it in 250 ml of water in a vessel and soak it in it. When it melts very well, mash it well by hand and take out its water in another vessel and then add black salt, cumin and sugar to it and then sprinkle asafetida in ghee and sprinkle it. This tamarind water is very beneficial and cooks food.
पित्त विकार: Biliary Disorders:
रात
के समय लगभग 1 किलो इमली लेकर एक कलई के बर्तन में पानी डालकर भिगो दें।
इसे रात भर भीगा रहने दें। दूसरे दिन पानी सहित बर्तन को चूल्हे पर चढ़ा
दें, जब यह अच्छी तरह उबल जाये तो इसे छानकर इसमें 2 किलो चीनी डालकर चाशनी
बना लें। इसे 10-10 ग्राम में मात्रा में देने से पित्त शांत होती है और
उल्टी भी बंद हो जाती है। इसे इमली का शर्बत कहा जाता है।
Take about 1 kg tamarind and soak it in a pot of water at night. Let it soak overnight. On the second day, put the pot with water on the stove, when it boils well, filter it and add 2 kg sugar to it and make sugar syrup. Giving 10 to 10 grams of this mixture calms bile and stops vomiting. This is called tamarind sorbet.
नशा (शराब, भांग आदि मादक पदार्थों का नशा): Intoxication (intoxication of alcohol, cannabis etc.):
30
ग्राम इमली तथा खजूर, 10-10 ग्राम कालीद्राक्ष, अनारदाने, फालसे और आंवले
लेकर आधा किलो पानी में डालकर भिगो दें। इसके अच्छी तरह भीग जाने पर छान
लें। यह शर्बत नशा चढ़ने पर थोड़ा-2 सा पीने से नशा उतर जाता है।
Soak 30 grams tamarind and dates, 10 grams of kalidraksh, pomegranate, phalsa and gooseberry in half a kilogram of water. Sieve it when it gets soaked. Drinking a little after getting this sorbet intoxication can cause addiction.
उल्टी और अम्लपित्त:Vomiting and Acidity:
- इमली की छाल उसके छिलके सहित जलाएं। फिर 10 ग्राम राख को पानी में डालकर पिलाएं। इससे उल्टी तुरन्त बंद हो जाती है।
- Burn the bark of tamarind along with its peel. Then drink 10 grams of ashes in water. It stops vomiting immediately.
- अम्लपित्त की जलन और उल्टी होने पर यह पानी भोजन के बाद देना चाहिए।
- This water should be given after meals in case of burning and vomiting of acidity.
Ayurveda doctor
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क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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