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नागकेसर रोगों में उपचार Treatment in Nagkesar diseases

नागकेसर रोगों में उपचार Treatment in Nagkesar diseases
बवासीर (अर्श):Piles (haemorrhoids):
  • नागकेसर और सुर्मा को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। आधा ग्राम चूर्ण को 6 ग्राम शहद के साथ मिलाकर चाटने से सभी प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।
  • Make equal powder by mixing Nagakesar and Surma in equal quantity. Mix half gram powder with 6 grams honey and lick it to cure all types of piles.
 
  • नागकेशर का चूर्ण 6 ग्राम, मक्खन 10 ग्राम और मिश्री 6 ग्राम लेकर मिला लें। इस मिश्रण को 6 से 7 दिनों तक रोजाना चाटने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) से खून का गिरना बन्द हो जाता है।
  • Mix 6 grams powder of Nagakeshar, 10 grams of butter and 6 grams of sugar candy. By licking this mixture every day for 6 to 7 days, blood stops from blood piles.
खूनी अतिसार:Bloody diarrhea
3 ग्राम नागकेसर के चूर्ण को 10 ग्राम गाय के मक्खन में मिलाकर खाने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) के रोगी का रोग कम हो जाता है।
 Taking 3 grams powder of Nagakesar mixed with 10 grams cow butter reduces the disease of bloody diarrhea.
मासिक-धर्म सम्बन्धी परेशानियां:Menstrual problems:
नागकेसर, सफेद चन्दन, पठानी लोध्र, अशोक की छाल सभी को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, फिर इसमें से 1 चम्मच चूर्ण सुबह-शाम 1 चम्मच ताजे पानी के साथ सेवन करने से मासिक-धर्म के विकारों में लाभ मिलता है।
 Make a powder by taking 10-10 grams of bark of cobra saffron, white sandalwood, Pathani Lodhra, Ashoka, then taking 1 teaspoon of this powder in the morning and evening with 1 teaspoon of fresh water, benefits in menstrual disorders Get.
चोट लगने पर:Injuries:
नागकेशर का तेल शरीर की पीड़ा और जोड़ों के दर्द में बहुत उपयोगी होता है।
 Nagkashar oil is very useful in body pain and joint pain.
अन्न नली (आहार नली) में जलन:Burning in the food pipe:
नागकेसर (पीला नागकेसर) की जड़ और छाल को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे रोजाना 1 दिन में 2 से 3 बार खुराक के रूप में सेवन करने से आमाशय की जलन (गैस्ट्रिक) में लाभ होता है।
 Make a decoction by mixing the root and bark of Nagakesar (yellow Nagakesar). Taking it in the form of a dose 2 to 3 times a day daily is beneficial in gastric irritation (gastric).
घाव:wound:
नागकेसर का तेल घाव पर लगाते रहने से घाव शीघ्र भर जाता है।
By applying Nagakesar oil on the wound, the wound heals quickly.
  Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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