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नागकेशर प्रदर रोग में उपचार Treatment in Naga Kesar leucorrhoea

नागकेशर प्रदर रोग में उपचार Treatment in Naga Kesar leucorrhoea
  • 3 ग्राम नागकेसर का चूर्ण ताजे पानी के साथ सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।
  •  Taking 3 grams powder of Nagakesar with fresh water is beneficial in white leucorrhoea.
 
  • लगभग 40 ग्राम नागकेसर, 30-30 ग्राम मुलहठी और राल, 100 ग्राम मिश्री लेकर कूट-छानकर चूर्ण बना लें। इसे 3-4 ग्राम की मात्रा में मिश्री मिले गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर रोग मिट जाते हैं।
  •  Make powder by filtering about 40 grams of Nagakesar, 30-30 grams of liquorice and resin, 100 grams of sugar candy. All the types of leucorrhoea are eradicated by taking 3-4 grams of sugar candy mixed with hot milk in the morning and evening.
 
  • लगभग 1 चम्मच नागकेसर लेकर प्रतिदिन 20 दिनों तक मठ्ठे के साथ सेवन करने से सफेद प्रदर मिट जाता है।
  • White leucorrhoea is taken by taking about one teaspoon of Naga Kesar and taking it with Matha for 20 days every day.
 
  • 10-10 ग्राम की मात्रा में नागकेशर, सफेद चन्दन, लोध्र और अशोक की छाल को लेकर सबका चूर्ण बना लें। इसमें से 1 चम्मच चूर्ण दिन में 4 बार ताजे पानी के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
  •  Make a powder by taking 10 to 10 grams of Nagarkashar, white sandalwood, Lodhra and Ashoka's bark. Taking 1 teaspoon of this powder with fresh water 4 times a day is beneficial in leucorrhoea.
 
  • नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
  • Drinking 3 grams of Nagkaeshar with buttermilk gets rid of white leucorrhoea disease.
 
  • नागकेशर का चूर्ण चावलों के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
  • Consuming Nagakeshar powder with rice is beneficial in leucorrhoea.
 
  • नागकेशर को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें। इसे आधे ग्राम की मात्रा में रोजाना मठ्ठे के साथ सेवन करने से प्रदर रोग मिट जाता है। इससे शारीरिक शक्ति भी बढ़ती है।
  • Make a fine powder by grinding Nagakeshar. Leucorrhoea is cured by taking half gram daily with it. It also increases physical strength.
 
  • आधा से 1 ग्राम पीला नागकेसर सुबह-शाम मिश्री और मक्खन के साथ खाने से सफेद प्रदर और रक्त (खूनी) प्रदर दोनों मिट जाते हैं।
  •  Eating half to 1 gram yellow cobra saffron with sugar candy and butter in the morning and evening eliminates both white leucorrhoea and blood (bloody) leucorrhoea.
 
  • नागकेसर (पीलानागकेसर) आधा से एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। यह औषधि श्वेत (सफेद) प्रदर के लिए भी लाभकारी है।
  • Taking half to one gram of Nagakesar (Peelanagakesar) in the morning and evening cures blood pressure. This drug is also beneficial for white leucorrhoea.
 
  • नागकेशर चूर्ण 1-3 ग्राम को 50 मिलीलीटर चावल धोवन (चावल का धुला हुआ पानी) के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्त (खूनी) प्रदर में आराम मिलता है।
  • Taking 1-3 grams of Nagakeshar powder with 50 ml rice dhoven (washed rice water) in the morning and evening gives relief in blood (bloody) leucorrhoea.
  Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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