नीम खाने में कड़वा होता है परन्तु काफी गुणकारी होता है Neem is bitter to eat but is very beneficial
गुण (Property)
आयुर्वेदिक
मतानुसार नीम कडुवी होती है। यह वात, पित्त, कफ, रक्तविकार (खून को साफ
करने वाला), त्वचा के रोग और कीटाणुनाशक होती है। नीम मलेरिया, दांतों के
रोग, कब्ज, पीलिया, बालों के रोग, कुष्ठ, दाह (जलन), रक्तपित्त (खूनी
पित्त), सिर में दर्द, वमन (उल्टी), प्रमेह (वीर्य विकार), हृदयदाह (दिल की
जलन), वायु (गैस), श्रम (थकावट), अरुचि (भूख को बढ़ाने वाला), बुखार, पेट
के कीड़ें, विष (जहर), नेत्र (आंखों) के रोग, प्रदर आदि रोगों को नष्ट करती
है।
Neem is Kaduvi according to Ayurvedic opinion. It is caused by Vata, Pitta, Kapha, Raktvikar (blood cleanser), skin diseases and disinfectants. Neem malaria, dental diseases, constipation, jaundice, hair diseases, leprosy, dah (burning sensation), hepatitis (bloody bile), headache, vomiting (vomiting), discharge (semen disorder), heartburn (heartburn), Vayu (gas), labor (tiredness), anorexia (increases appetite), fever, stomach worms, venom (poison), eye (eye) diseases, leucorrhoea are destroyed.
यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार नीम गर्म और खुश्क होती है। नीम का
गोंद खून की गति को बढ़ाने वाला और रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला) होता
है। उपदंश (गर्मी) और चर्म (त्वचा) रोग के लिए यह एक अच्छी औषधि है।
होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली के अनुसार नीम पुराने से पुराने रोगों की दवा
रखता है जैसे-त्वचा रोग, कुष्ठ, कुनैन आदि।
Neem is hot and dry according to Unani system of medicine. Neem gum increases the speed of blood and is a blood antiserum (cleanser of blood). It is a good medicine for syphilis (heat) and skin (skin) diseases. According to the homeopathic system of medicine, neem carries medicines for chronic diseases like skin diseases, leprosy, quinine etc.
वैज्ञानिक विश्लेषणों के
अनुसार नीम में विभिन्न प्रकार के तत्व पाये जाते हैं जैसे-मार्गोसीन,
सोडियम मार्गोसेट, निम्बिडिन, निम्बोस्टेरोल, निम्बिनिन, स्टियरिक एसिड,
ओलिव एसिड, पामिटिक एसिड, उड़नशील तेल और टैनिन आदि। बीजों से प्राप्त स्थिर
तेल 45 प्रतिशत निकलता है, जिसमें गंधक, राल, एल्केलाइड, ग्लूकोसाइड और
वसा अम्ल पाए जाते हैं।
According to scientific analysis, various types of ingredients are found in Neem such as Margosin, Sodium Margosate, Nimbidin, Nimbosterol, Nimbinin, Stearic Acid, Olive Acid, Palmitic Acid, Flammable Oil and Tannin etc. Stable oil obtained from seeds produces 45 percent, which contains sulfur, resin, alkaloids, glucosides and fatty acids.
इसके साथ ही थोड़ी-सी मात्रा में लौहा, कैल्शियम और
पोटैशियम आदि के लवण भी थोड़ी बहुत मात्रा में पाये जाते हैं। नीम की गोंद
में 26 प्रतिशत पेन्टोसन्स, 12 प्रतिशत गेलेक्टीन व अल्प मात्रा में
अल्बयूमिन्स और ऑक्साइडस भी होते हैं।
Along with this, small amounts of iron, calcium and potassium etc. are also found in small amounts. Neem gum also contains 26 percent pentosans, 12 percent galactin and small amounts of albumins and oxides.
हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)
नीम
उन व्यक्तियों के लिए हानिकारक होता है जिनकी प्रवृति सूखी (रूक्ष) होती
है। जिनकी कामशक्ति कमजोर हो उन्हें भी नीम अधिक उपयोग करने से बचना चाहिए।
Neem is harmful for those people whose tendency is dry (rash). Those whose work force is weak should also avoid excessive use of neem.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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