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नीम से बुखार में उपचार Neem fever treatment

नीम से बुखार में उपचार Neem fever treatment
  • नीम के पत्ते, गिलोय, तुलसी के पत्ते, हुरहुर के पत्ते 20-20 ग्राम और कालीमिर्च 6 ग्राम को बारीक पीसकर पानी के साथ मिलाकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोली बना लें तथा 2-2 घंटे के अंतर के बाद 1-1 गोली गर्म पानी के साथ लेने से इन्फ्लुएंजा में लाभ होता है।
  •  Grind 20-20 grams of Neem leaves, Giloy, Basil leaves, Hurhur leaves and 6 grams of black pepper finely with water and make a fourth tablet of about 1 gram and after a gap of 2-2 hours, 1-1 Taking the tablet with warm water is beneficial in influenza.

  • नीम की छाल 5 ग्राम, लौंग लगभग आधा ग्राम या दालचीनी लगभग आधा ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें, 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ लेने से सामान्य बुखार में राहत मिलती है।
  •  Make a powder by grinding 5 grams of neem bark, about half a gram of cloves or about half a gram of cinnamon, taking 2 grams with water twice a day provides relief in normal fever.

  • नीम की कोमल पत्तियों को पीसकर, किसी कपड़े में बांधकर रस निकाल लें, इस रस में शहद को मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करने से बुखार कम होता है।
  • Grind the soft leaves of neem, tie it in a cloth and take out the juice, mixing honey in this juice and taking it 2-3 times a day reduces fever.

  • सोंठ, गिलोय, नीम की छाल, धनिया, लाल चंदन, पदमकाष्ठ आदि को पीसकर सेवन करने से बुखार समाप्त होता है।
  •  Grind dry ginger, gilloy, neem bark, coriander, red sandalwood, padamakastha etc. to stop fever.

  • नीम की छाल का काढ़ा पीने से लगातार आने वाले बुखार दूर होता है।
  • Drinking neem bark decoction is used to relieve persistent fever.
  • नीम की छाल, कुटकी, चिरायता, गिलोय और अतीस का अष्टमांश काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पिलाने से आराम मिलता है।
  •  Make a decoction of neem bark, ginger, saliva, gilloy and twenty-eight decoction of Atis and give it to the patient twice a day, it provides relief.
  Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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