लाजवंती के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Lajwanti
गुजरात के जानकार छुईमुई की जड़ और पत्तियों का पाउडर दूध में मिलाकर दो बार देने से बवासीर और भगंदर जैसे रोग में आराम मिलता है। डाँग में आदिवासी पत्तियों के रस को बवासीर के घाव पर सीधे लेपित करने की बात करते हैं। इनके अनुसार यह रस घाव को सुखाने का कार्य करता है और अक्सर होने वाले खून के बहाव को रोकने में भी मदद करता है।
Mixing the powder of root and leaves of chhimui with knowledge of Gujarat and giving it twice a day gives relief in piles and diseases like Bhagandar. In Dong, the tribals talk of coating the juice of the leaves directly on the wound of piles. According to them, this juice serves to dry the wound and also helps to stop the frequent bleeding of blood.
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क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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- पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार छुईमुई की जड़ और पत्तों का चूर्ण दूध में मिलाकर दो बार देने से बवासीर और भगंदर रोग ठीक होता है। छुईमुई के पत्तों का एक चम्मच पाउडर दूध के साथ प्रतिदिन सुबह शाम लेने से बवासीर या पाइल्स में आराम मिलता है।
- According to the tribals of Patalakot, giving powder of moss root and leaves mixed with milk twice a day cures piles and vaginal diseases. Taking one spoon of mole leaves with powdered milk every morning and evening provides relief in piles or piles.
गुजरात के जानकार छुईमुई की जड़ और पत्तियों का पाउडर दूध में मिलाकर दो बार देने से बवासीर और भगंदर जैसे रोग में आराम मिलता है। डाँग में आदिवासी पत्तियों के रस को बवासीर के घाव पर सीधे लेपित करने की बात करते हैं। इनके अनुसार यह रस घाव को सुखाने का कार्य करता है और अक्सर होने वाले खून के बहाव को रोकने में भी मदद करता है।
Mixing the powder of root and leaves of chhimui with knowledge of Gujarat and giving it twice a day gives relief in piles and diseases like Bhagandar. In Dong, the tribals talk of coating the juice of the leaves directly on the wound of piles. According to them, this juice serves to dry the wound and also helps to stop the frequent bleeding of blood.
- अगर खांसी हो तो लाजवंती के जड़ के टुकड़ों के माला बना कर गले में पहन लो . हैरानी की बात है कि जड़ के टुकड़े त्वचा को छूते रहें ; बस इतने भर से गला ठीक हो जाता है .
- If you have a cough, make a garland of Lajwanti root pieces and wear it around your neck. Surprisingly, the root pieces continue to touch the skin; The throat gets cured with just this much.
- इसके अलावा इसकी जड़ घिसकर शहद में मिलाये . इसको चाटने से , या फिर वैसे ही इसकी जड़ चूसने से खांसी ठीक होती है . इसकी पत्तियां चबाने से भी गले में आराम आता है .
- Also, grind its root and mix it with honey. Cough is cured by licking it, or else sucking its root. Chewing its leaves also brings relief in the throat.
- यदि छुईमुई की 100 ग्राम पत्तियों को 300 मिली पानी में डालकर काढ़ा बनाया जाए तो यह काढ़ा मधुमेह के रोगियों को काफी फायदा होता है।
- If the decoction is made by putting 100 grams leaves of mimosa in 300 ml water, this decoction is beneficial for the patients of diabetes.
- छुईमुई और अश्वगंधा की जड़ों की समान मात्रा लेकर पीस लिया जाए और तैयार लेप को ढीले स्तनों पर हल्के हल्के मालिश किया जाए तो स्तनों का ढीलापन दूर होता है।स्तन में गाँठ या कैंसर की सम्भावना हो तो , लाजवंती की जड़ और अश्वगंधा की जड़ घिसकर लगाएँ।
- Grind equal quantity of mole root and ashwagandha roots and massage the prepared paste lightly on loose breasts to remove the looseness of the breasts. If there is a possibility of knot or cancer in the breast, by grinding the root of Lajwanti and the root of ashwagandha Apply.
- छुईमुई की जड़ों का चूर्ण (3 ग्राम) दही के साथ खूनी दस्त से ग्रस्त रोगी को खिलाने से दस्त जल्दी बंद हो जाती है। वैसे डाँगी आदिवासी मानते है कि जड़ों का पानी में तैयार काढ़ा भी खूनी दस्त रोकने में कारगर होता है।
- The powder of moss root (3 grams) with curd is cured by feeding the patient suffering from bloody diarrhea. By the way, Dangi tribals believe that decoction prepared in roots water is also effective in preventing bloody diarrhea.
- छुईमुई की पत्तियों और जड़ों में एंटीमायक्रोबियल, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण होते हैं जिनकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है और मजे की बात ये भी है कि आदिवासी अंचलों में हर्बल जानकार आज भी त्वचा संक्रमण होने पर इसकी पत्तियों के रस को दिन में 3 से 4 बार लगाने की सलाह देते हैं।
- Mimosa leaves and roots have antimicrobial, antiviral, and antifungal properties, which are confirmed by modern science, and interestingly, herbal experts in tribal areas even today have a skin infection to prevent the juice of its leaves from 3 to 4 a day. We recommend setting the bar.
- टांसिल्स होने पर इसकी पत्तियों को पीसकर गले पर लगाने से जल्द ही समस्या में आराम मिलता है। प्रतिदिन 2 बार ऐसा करने से तुरंत राहत मिल जाती है, जिन्हें गोईटर की समस्या हो उन्हें भी इसी तरह का समाधान अपनाना चाहिए।
- Grind its leaves on the throat and apply on the throat soon after getting tonsils. Doing this twice a day gives immediate relief, those who have problems with goiter should also adopt a similar solution.
- uterus बाहर आता है तो, पत्तियां पीसकर रुई से उस स्थान को धोएँ।
- When the uterus comes out, grind the leaves and wash the place with cotton.
- डाँग गुजरात में आदिवासियों के अनुसार तीन से चार इलायची, छुईमुई की जड़ें 2 ग्राम सेमल की छाल (3 ग्राम) को आपस में मिलाकर कुचल लिया जाए और इसे एक गिलास दूध में मिलाकर प्रतिदिन रात को सोने से पहले पिया जाना चाहिए, यह नपुंसकता दूर करने के लिए एक कारगर फार्मूला है।
- According to the tribals in Dang Gujarat, three to four cardamom, the roots of chimimui should be crushed by mixing 2 grams of bark (3 grams) of semal and mixed with a glass of milk and it should be drunk every night before going to sleep, this impotence is removed. There is an effective formula to do this.
- हृदय या kidney बढ़ गए हैं, उन्हें shrink करना है , तो इस पौधे को पूरा सुखाकर , इसके पाँचों अंगों ((फूल, पत्ते, छाल, बीज और जड़) ) का 5 ग्राम 400 ग्राम पानी में उबालें . जब रह जाए एक चोथाई, तो सवेरे खाली पेट पी लें।
- If the heart or kidney has increased, they have to shrink, then after drying the plant completely, boil 5 grams of its five organs ((flowers, leaves, bark, seeds and roots)) in 400 grams of water. When there is a fourth, then drink it empty stomach in the morning.
- लाजवंती के पत्तों को पानी में पीसकर नाभि के निचले हिस्से में लेप करने से पेशाब का अधिक आना बंद हो जाता है। पत्तियों के रस की 4 चम्मच मात्रा दिन में एक बार लेने से भी फायदा होता है। यह पौधा बहुत गुणवान है और बहुत विनम्र भी ; तभी तो इतना शर्माता है. आप भी इसे लजाते हुए देख सकते है . बस अपने गमले में लगाइए और पत्तियों को छू भर दीजिये।
- Grind the leaves of Lajwanti in water and apply it on the lower part of the navel to stop excessive urination. Taking 4 teaspoons of leaves juice once a day is also beneficial. This plant is very quality and very humble; That is why we are so shy. You too can see it blushing. Just apply it in your pot and fill the leaves with it.
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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