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नींबू त्रिदोष नाशक और नींबू एक रसीला फल है Lemon Tridosha perishable and lemon is a succulent fruit

नींबू त्रिदोष नाशक और नींबू एक रसीला फल है Lemon Tridosha perishable and lemon is a succulent fruit 

परिचय (Introduction)

नींबू एक रसीला फल है। इसमें सिट्रिक अम्ल अधिक होता है। यह क्षारीय दृष्टि से एक अपरिहार्य फल है। नींबू का अचार भी डाला जाता है। नींबू के रस के बिना गाजर, मूली, खीरा, ककड़ी, प्याज आदि के सलाद को स्वाद (टेस्ट) नहीं होता हैं। 

Lemon is a succulent fruit. It contains more citric acid. It is an unavoidable alkaline fruit. Lemon pickle is also added. Salad of carrot, radish, cucumber, cucumber, onion etc. without lemon juice does not taste.

नमक आदि से निर्मित चटनी में नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से भूख लगती है और पाचन क्रिया तीव्र होती हैं। नींबू मीठे, कुछ कड़वाहट लिए हुए तथा कागजी नींबू खट्टे होते हैं। गर्मी के मौसम में नींबू के रस का शर्बत बनाकर पिया जाता है।

Taking lemon juice mixed with chutney made with salt etc. causes hunger and intensifies digestion. Lemons are sweet, some contain bitterness and paper lemons are sour. Lemon juice syrup is made and drunk in summer season.

गुण (Property)

नींबू त्रिदोष नाशक (वात, पित्त और कफ को नष्ट करने वाला), दीपक-पाचक (भोजन को पचाने वाला), क्षय (टी.बी.), हैजा (विसूचिका), गृहबाधा निवारक, रुचिकारक (भूख को बढ़ाने वाला) और दर्द में लाभ देता है। नींबू के रस को पीने से रक्तपित्त (खूनी पित्त), स्कर्वी रोग में लाभ होता हैं। 

Lemon Tridosha Nashak (destroyer of Vata, Pitta and Kapha), Deepak-Pachak (Digestor of food), Decay (TB), Cholera (Visuchika), Homemaker, Preventive (hunger enhancer) and Pain Gives benefits in Drinking lemon juice provides relief in blood disorders (bloody bile), scurvy.
 
नींबू के फल की छाल को खाने से वायु (गैस) शान्त होती है। नींबू का रस हृदय के लिए लाभकारी, ज्वर (बुखार) को कम करने वाला और मूत्रजनन (पेशाब को लाने वाला) होता है। 

Eating the bark of lemon fruit calms the air (gas). Lemon juice is beneficial for the heart, reducing fever (fever) and urination (urination).
 
नींबू के रस को चीनी के साथ सेवन करने से अफारा (गैस का बनना), बदबू, डकारें, उदर शूल (पेट में दर्द) और उल्टी आदि विकार दूर हो जाते हैं। नींबू पित्त, मलस्तम्भक (मल को रोकना), कब्ज, गांठे, जोड़ों का दर्द (आमवात), कंठशूल (गले का दर्द) और जहर में लाभकारी है। नींबू का रस आमाशय, आंतों और खून की अम्लता (एसिडिटीज) की अधिकता को कम कर देता है जिससे स्नायु का दर्द और अधिक कमजोरी दूर होती है।

 Drinking lemon juice with sugar removes disorders like Afara (gas formation), smell, belching, abdominal colic (abdominal pain) and vomiting. Lemon is beneficial in bile, stool (stop stool), constipation, lumps, joint pain (rheumatism), laryngitis (throat pain) and poison. Lemon juice reduces the excess of acidity of the stomach, intestines and blood, thereby relieving muscle pain and weakness.
  Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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