कालीसर, कालीदूधी, श्यामलता, सारिवा,रोगों में उपचार Kalisar, Kalidudhi, Shyamalata, Sariva, treatment in diseases
कालीसर, कालीदूधी, श्यामलता, सारिवा,रोगों में उपचार Kalisar, Kalidudhi, Shyamalata, Sariva, treatment in diseases
विभिन्न भाषाओं के नाम : हिंदी कालीसर, कालीदूधी, श्यामलता, सारिवा। संस्कृत
कृष्णसारिवा, कृष्णमूली, कालपेशी, चंदन बंगाली, सारिवा कालघंटिका, सुभद्रा
श्यामलता। मराठी मोठीकावड़ी, उपरसरी, कालीकावड़ी, गुजराती काली उपलसरी,
धूरीबेल। बंगला श्यामलता, दूधी, कलघंटी। पंजाबी अनन्तमूल। अंग्रेजी इंडियन
सारसापरीला (Indian Sasaprila.P.) लैटिन इकनोकार्पस फ्रटीसंस (Ichnocarpust
Frutescens) इंडिकस (Hemidesus Indicus
Names of different languages: Hindi Kalisar, Kalidudhi, Shyamalata, Sariva. Sanskrit
Krishnasariva, Krishnamuli, Kalpeshhi, Chandan Bengali, Sariva Kalghantika, Subhadra
Blackness Marathi Mothikavadi, Upasari, Kalikavadi, Gujarati Kali Upalsari,
Dhuribel Bangla Shyamlata, Dudhi, Kalaghanti. Punjabi Anantmool. English indian
Indian Sasaprila.P. Ichnocarpust
Frutescens) Hemidesus Indicus
Krishnasariva, Krishnamuli, Kalpeshhi, Chandan Bengali, Sariva Kalghantika, Subhadra
Blackness Marathi Mothikavadi, Upasari, Kalikavadi, Gujarati Kali Upalsari,
Dhuribel Bangla Shyamlata, Dudhi, Kalaghanti. Punjabi Anantmool. English indian
Indian Sasaprila.P. Ichnocarpust
Frutescens) Hemidesus Indicus
गुण: यह वात पित्त, रक्तविकार,
प्यास, अरुचि, उल्टी, बुखारनाशक, शीतल, वीर्यवर्द्धक, कफनाशक, मधुर,
धातुवर्द्धक, भारी, स्निग्ध, कड़वी, सुगन्धित, स्तनों के दूध को शुद्ध करने
वाला, जलन, मंदाग्नि और सांस-खांसी नाशक है।
Properties: This vata bile, blood disorders,
Thirst, Anorexia, Vomiting, Fever, Cold, Spermatorrhea, Antipyretic, Mellow,
Metallic, heavy, balsamic, bitter, fragrant, purifying breast milk
Vala is a destroyer of burning, retardation and breathlessness.
Dr.Manoj Bhai RathoreThirst, Anorexia, Vomiting, Fever, Cold, Spermatorrhea, Antipyretic, Mellow,
Metallic, heavy, balsamic, bitter, fragrant, purifying breast milk
Vala is a destroyer of burning, retardation and breathlessness.
Ayurveda doctor
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क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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