गले में दर्द, सूजन, इन्फेक्शन का घरेलू उपचार Home remedies for throat pain, swelling, infection
अधिक
चटपटे, मसालेदार अथवा तले-भुने पदार्थ खाने से गला ख़राब हो जाता है। कई
बार सर्दी लगने से भी गले में दर्द तथा सूजन आ जाती है और स्वर-यन्त्र
बिगड़ जाता है,गले से आवाज़ आनी बन्द हो जाती है और गले में दर्द होता है।
टांसिल, इन्फेक्शन, वायरल बुखार, खांसी अथवा चेचक रोग में भी गले में दर्द,
सूजन, इन्फेक्शन हो जाता है। ऐसा होने पर कुछ खाते समय तकलीफ़ होती है और
यहां तक की थूक निगलने में समस्या होती है।
Eating excessively spicy, spicy or fried foods causes sore throat. Sometimes due to cold, pain and swelling in the throat also comes and the voice system worsens, the voice stops coming from the throat and there is pain in the throat. Throat pain, swelling, infection also occurs in tonsils, infections, viral fever, cough or chicken pox. In this case, there is some difficulty while eating and even there is problem in swallowing sputum.
डिप्थीरिया
रोग में झिल्ली बन जाने के कारण श्वासनली बन्द हो जाती है तथा गले में घाव
होने पर दुर्गन्धयुक्त स्राव भी निकलता है। गले में दर्द होने के कारण रात
को बहुत तकलीफ़ होती है; क्योंकि रात को बार-बार खंखारना पड़ता है। तब गले
में ख़ुश्की के कारण जख़्म बन जाता है, जिससे आवाज बन्द हो जाती है और जलन
होती है। ब्रांकाइटिस रोग में भी खांसी होने से रोगी के गले में पीड़ा
होती है।
Due to formation of membrane in diphtheria disease, the trachea is closed and if there is a wound in the throat, deodorant secretion also comes out. There is a lot of trouble at night due to sore throat; Because the night has to be eaten again and again. Then there is a wound in the throat due to the dryness, which causes the voice to stop and burn. In bronchitis disease, cough occurs due to the throat of the patient.
हरा, पीला एवं रतमिश्रित बलगम निकलता है तथा गर्दन में कन्धे तक
फैल जाने वाला दर्द होता है। अगर गले में ज्यादा गंभीर घाव हो गया हो या
लंबे समय से आप इस समस्या से पीड़ित है तो तुरंत किसी चिकित्सक से मिलकर
एंटी बायोटिक दवा का उपचार लें ऐसे में घरेलू उपाय ना आजमायें |
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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