नीम Azadirachta indica
नीम का पेड़ बहुत बड़ा होता है। नीम का पेड़ वातावरण को शुद्ध बनाने में विशेष भूमिका निभाता है, क्योंकि नीम की पत्तियों में गुणकारी तत्व पाये जाते हैं जो जीवाणुओं को नष्ट करते रहते हैं। नीम की इन रोग प्रतिरोधक शक्तियों के कारण इससे `एंटीसेप्टिक´ औषधियां बनाई जाती हैं।
Neem tree is very big. Neem tree plays a special role in purifying the environment, because the neem leaves have beneficial elements which keep destroying bacteria. Due to these immunity powers of neem, 'antiseptic' medicines are made from it.
प्राचीन आर्य ऋषियों ने नीम को अलौकिक गुणों से युक्त बताया है कि नीम अनेक प्रकार की बीमारियों को मानव शरीर से दूर करता है। नीम के पत्ते खाकर कई लोग कई दिनों तक जीवित रहे हैं, साथ ही साथ शक्तिशाली भी रहकर अपना सामान्य जीवन व्यतीत किया है।
The ancient Aryan rishis have described neem with supernatural properties that neem cures many diseases from the human body. Many people have lived for several days by eating neem leaves, as well as living their normal life by staying powerful.
गर्मी के दिनों में नीम के वृक्ष की छाया काफी आनन्दायक होती है। नीम के वृक्ष से गोंद प्राप्त की जाती है, जिससे औषधियां बनाई जाती है। इसका पेड़ देवालयों, धर्मशालाओं, सड़क आदि पर ठण्डी और ताजी हवाओं के लिए लगाया जाता है। गांव में जिस घर के आंगन में नीम का पेड़ होता हैं उस घर के लोग बीमार नहीं रहते हैं क्योंकि वे नीम का प्रयोग करते रहते हैं।
The shade of neem tree is quite pleasant during summer. Gum is obtained from the Neem tree, from which medicines are made. Its tree is planted in temples, dharamshalas, roads etc. for cold and fresh winds. The people of the house where there is neem tree in the courtyard of the village, do not stay ill because they keep using neem.
जब नीम का पेड़ बहुत पुराना हो जाता है तो इसकी लकड़ी से शुद्ध चंदन की सी सुगन्ध आने लगती हैं। नीम की लकड़ी इमारत आदि बनाने के काम में लाई जाती है। कड़वा होने के कारण इसमें कीड़े नहीं लगते हैं। नीम का पेड़ कई सालों तक जीवित रहता है। नीम के बारे में एक अच्छी कहावत है कि नीम खाने में कड़वा होता है परन्तु काफी गुणकारी होता है। इसलिए इसका प्रयोग करना चाहिए।
When Neem tree becomes very old, its wood starts smelling like pure sandalwood. Neem wood is used to make buildings etc. Being bitter, it does not contain insects. The neem tree survives for many years. There is a good saying about neem that neem is bitter in food but is very beneficial. Therefore, it should be used.
नीम का वृक्ष बबूल के वृक्ष से काफी अच्छा होता है, क्योंकि खेत के किनारे बबूल का वृक्ष सभी जरूरी पौष्टिक खनिज लवणों को चूस लेते हैं। लेकिन नीम का वृक्ष फसलों के लिए लाभकारी होता है। इसलिए किसानों को इसे अपने खेतों के किनारे अवश्य लगाना चाहिए।
The neem tree is much better than the acacia tree, because the acacia tree on the side of the field suckles all the necessary nutritious mineral salts. But neem tree is beneficial for crops. Therefore, farmers must plant it on the side of their fields.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
नीम का पेड़ बहुत बड़ा होता है। नीम का पेड़ वातावरण को शुद्ध बनाने में विशेष भूमिका निभाता है, क्योंकि नीम की पत्तियों में गुणकारी तत्व पाये जाते हैं जो जीवाणुओं को नष्ट करते रहते हैं। नीम की इन रोग प्रतिरोधक शक्तियों के कारण इससे `एंटीसेप्टिक´ औषधियां बनाई जाती हैं।
Neem tree is very big. Neem tree plays a special role in purifying the environment, because the neem leaves have beneficial elements which keep destroying bacteria. Due to these immunity powers of neem, 'antiseptic' medicines are made from it.
प्राचीन आर्य ऋषियों ने नीम को अलौकिक गुणों से युक्त बताया है कि नीम अनेक प्रकार की बीमारियों को मानव शरीर से दूर करता है। नीम के पत्ते खाकर कई लोग कई दिनों तक जीवित रहे हैं, साथ ही साथ शक्तिशाली भी रहकर अपना सामान्य जीवन व्यतीत किया है।
The ancient Aryan rishis have described neem with supernatural properties that neem cures many diseases from the human body. Many people have lived for several days by eating neem leaves, as well as living their normal life by staying powerful.
गर्मी के दिनों में नीम के वृक्ष की छाया काफी आनन्दायक होती है। नीम के वृक्ष से गोंद प्राप्त की जाती है, जिससे औषधियां बनाई जाती है। इसका पेड़ देवालयों, धर्मशालाओं, सड़क आदि पर ठण्डी और ताजी हवाओं के लिए लगाया जाता है। गांव में जिस घर के आंगन में नीम का पेड़ होता हैं उस घर के लोग बीमार नहीं रहते हैं क्योंकि वे नीम का प्रयोग करते रहते हैं।
The shade of neem tree is quite pleasant during summer. Gum is obtained from the Neem tree, from which medicines are made. Its tree is planted in temples, dharamshalas, roads etc. for cold and fresh winds. The people of the house where there is neem tree in the courtyard of the village, do not stay ill because they keep using neem.
जब नीम का पेड़ बहुत पुराना हो जाता है तो इसकी लकड़ी से शुद्ध चंदन की सी सुगन्ध आने लगती हैं। नीम की लकड़ी इमारत आदि बनाने के काम में लाई जाती है। कड़वा होने के कारण इसमें कीड़े नहीं लगते हैं। नीम का पेड़ कई सालों तक जीवित रहता है। नीम के बारे में एक अच्छी कहावत है कि नीम खाने में कड़वा होता है परन्तु काफी गुणकारी होता है। इसलिए इसका प्रयोग करना चाहिए।
When Neem tree becomes very old, its wood starts smelling like pure sandalwood. Neem wood is used to make buildings etc. Being bitter, it does not contain insects. The neem tree survives for many years. There is a good saying about neem that neem is bitter in food but is very beneficial. Therefore, it should be used.
नीम का वृक्ष बबूल के वृक्ष से काफी अच्छा होता है, क्योंकि खेत के किनारे बबूल का वृक्ष सभी जरूरी पौष्टिक खनिज लवणों को चूस लेते हैं। लेकिन नीम का वृक्ष फसलों के लिए लाभकारी होता है। इसलिए किसानों को इसे अपने खेतों के किनारे अवश्य लगाना चाहिए।
The neem tree is much better than the acacia tree, because the acacia tree on the side of the field suckles all the necessary nutritious mineral salts. But neem tree is beneficial for crops. Therefore, farmers must plant it on the side of their fields.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
yourselfhealthtips.blogspot.com
आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
Comments
Post a Comment