निर्गुण्डी से विभिन्न रोगों में उपचार Treatment in various diseases from Nirgundi
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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चोट, सूजन :Injury, swelling
निर्गुण्डी
के पत्तों को पीसकर लेप बना लें। इस लेप को चोट या सूजन पर लेप करने से या
चोट, सूजन वाले अंग पर इसकी पट्टी बांधने से दर्द में आराम मिलता है और
घाव जल्दी ठीक हो जाता है।
Grind the leaves of nirgundi and make a paste. Applying this paste on an injury or swelling or tying its bandage on the injury, inflamed limb provides relief in pain and the wound is cured quickly.
अपस्मार (मिर्गी) :Epilepsy
निर्गुण्डी के पत्तों के 5 से 10 बूंदों को दौरे के समय नाक में डालने से मिर्गी में आराम होता है।
Putting 5 to 10 drops of Nirgundi leaves in the nose at the time of seizures helps in epilepsy.
अरुंषिका (वराही):Arunshika (Varahi)
निर्गुण्डी के काढ़े से सिर को धोना चाहिए।
The head should be washed with a decoction of Nirgundi.
कान के रोग:Ear diseases
निर्गुण्डी के पत्तों के रस को शुद्ध तेल में, शहद के साथ मिलाकर 1 से 2 बूंद कान में डालने से कान के रोग में लाभ मिलता है।
Mixing juice of Nirgundi leaves in pure oil, mixed with honey and putting 1-2 drops in the ear provides relief in ear diseases.
खांसी :cough
12 से 24 मिलीलीटर निर्गुण्डी के पत्तों के रस को शुद्ध दूध के साथ दिन में 2 बार लेने से खांसी दूर हो जाती है।
Cough is cured by taking 12 to 24 ml juice of Nirgundi leaves with pure milk 2 times a day.
घेंघा:Goiter
14 से 28 मिलीलीटर निर्गुण्डी के पत्तों का रस दिन में 3 बार सेवन करें। निर्गुण्डी की जड़ों के पीसकर नाक में डालना चाहिए।
Drink juice of 14 to 28 ml Nirgundi leaves 3 times a day. Grind the roots of nirgundi and put it in the nose.
सूतिका बुखार :Cotton fever
निर्गुण्डी का इस्तेमाल करने से सूतिका का बुखार में लाभ मिलता है तथा गर्भाशय का संकोचन होता और आंतरिक सूजन मिट जाती है।
Using nirgundi provides benefit in sutica fever and shrinkage of the uterus and internal inflammation disappears.
सुख से प्रसव (प्रजनन) :Happy delivery (reproduction)
निर्गुण्डी को पीसकर नाभि, बस्ति (नाभि के नीचे का भाग) और योनि पर लेप करने से प्रसव आसानी से होता है।
Grinding nirgundi and applying it on the navel, basti (below the navel) and vagina makes delivery easy.
सूजाक (गिनोरिया) :Gonorrhea (ginorrhea)
निर्गुण्डी
के पत्तों का काढ़ा बनाकर सूजाक की पहली अवस्था में ले सकते हैं। यदि रोगी
का पेशाब बन्द हो गया हो तो उसमें 20 ग्राम निर्गुण्डी के पत्तों को 400
मिलीलीटर पानी में उबाल लें। जब चौथाई काढ़ा शेष बचे तो इसे उतारकर ठंड़ा कर
लें। इस काढे़ को 10-20 मिलीलीटर प्रतिदिन सुबह, दोपहर और शाम पिलाने से
पेशाब आने लगता है।
You can take the decoction of the leaves of Nirgundi in the first stage of gonorrhea. If the patient's urine has stopped, then boil 20 grams of Nirgundi leaves in 400 ml water. When quarter decoction is left, remove it and refrigerate it. Drinking 10-20 milliliters of this decoction every morning, afternoon and evening starts urinating.
श्लीपद (पीलपांव) :Shlipad (peelpawan)
धतूरा,
एरण्ड की जड़, निर्गुण्डी (सम्भालू), पुनर्नवा, सहजन की छाल और सरसों को एक
साथ मिश्रित कर लेप करने से श्लीपद में आराम मिलता है।
Mixing Dhatura, castor root, Nirgundi (Sambhalu), Punarnava, Drumstick bark and mustard together and applying it provides relief in Shlipad.
स्लिपडिस्क में :At slipdisk
सियाटिका,
स्लिपडिस्क और मांसपेशियों को झटका लगने के कारण सूजन हो तो निर्गुण्डी की
छाल का 5 ग्राम चूर्ण या पत्तों के काढ़े को धीमी आग में पकाकर 20 मिलीलीटर
की मात्रा में दिन में 3 बार देने से लाभ मिलता है।
If swollen due to jerking of sciatica, slipdisk and muscles, giving 5 ml powder of the bark of Nirgundi or decoction of leaves in slow fire, giving 20 ml 3 times a day is beneficial.
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क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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