जामुन रोगों की रामबाण औषिधि है Jamun is a panacea for diseases.
1. पसीना ज्यादा आना:Excessive sweating
जामुन के पत्तों को पानी में उबालकर नहाने से पसीना अधिक आना बंद हो जायेगा।
Boiling berries leaves in water and bathing will stop excessive sweating.
2. जलना: Burning
जामुन की छाल को नारियल के तेल में पीसकर जले हिस्से पर 2-3 बार लगाने से लाभ मिलता है।
Grind the bark of berries in coconut oil and apply on the burnt area 2-3 times, it provides relief.
3. पैरों के छाले: Blisters of the feet
टाईट,
नया जूता पहनने या ज्यादा चलने से पैरों में छाले और घाव बन जाते हैं। ऐसे
में जामुन की गुठली पानी में घिसकर 2-3 बार बराबर लगायें। इससे पैरों के
छाले मिट जाते हैं।
Blisters and sores are formed on the feet, wearing a new shoe or walking too much. In this case, grind the berries in water and apply it 2-3 times. Blisters of the feet disappear by this.
4. स्वप्नदोष: Dream dreams
4 जामुन की गुठली का चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ खाने से स्वप्नदोष ठीक हो जाता है।
Eating 4 pieces of jamun kernel powder with water in the morning and evening cures nightmares.
5. वीर्य का पतलापन: Dilute semen
वीर्य
का पतलापन हो, जरा सी उत्तेजना से ही वीर्य निकल जाता हो तो ऐसे में 5
ग्राम जामुन की गुठली का चूर्ण रोज शाम को गर्म दूध से लें। इससे वीर्य का
पतलापन दूर हो जाता है तथा वीर्य भी बढ़ जाता है।
If the semen is diluted, if the semen comes out with little excitement, then take 5 grams of powder of jambule seed with hot milk in the evening. It removes the thinness of semen and also increases semen.
6. पेशाब का बार-बार आना:Frequent urination
15 ग्राम जामुन की गुठली को पीसकर 1-1 ग्राम पानी से सुबह और शाम पानी से
लेने से बहुमूत्र (बार-बार पेशाब आना) के रोग में लाभ होता है।
Grind 15 grams berries of jambule with 1-1 grams of water in the morning and evening, it is beneficial in the condition of polyuria (frequent urination).
7. नपुंसकता:Impotence
जामुन की गुठली का चूर्ण रोज गर्म दूध के साथ खाने से नपुंसकता दूर होती है।
Eating powder of jambule kernels with hot milk daily is useful to cure impotence.
8. दांतों का दर्द:Toothache
जामुन,
मौलश्री अथवा कचनार की लकड़ी को जलाकर उसके कोयले को बारीक पीसकर मंजन बना
लें। इसे प्रतिदिन दांतों व मसूढ़ों पर मालिश करने से मसूढ़ों से खून का आना
बंद हो जाता है।
Burn the wood of berries, moulashri or kachanar and grind its coal finely and make a brush. Massaging it daily on the teeth and gums stops bleeding from the gums.
9. बुखार:Fever
जामुन को सिरके में भिगोकर सुबह और शाम रोजाना खाने से पित्ती शांत हो जाती है।
Soaking of jambule in vinegar and eating it daily in the morning and evening makes the hives calm.
10. दांत मजबूत करना:Strengthening teeth
जामुन की छाल को पानी में डालकर उबाल लें तथा छानकर उसके पानी से रोजाना सुबह-शाम कुल्ला करें। इससे दांत मजबूत होते हैं।
Boil the bark of berries in water and filter and rinse it daily with water. This makes teeth strong.
11. पायरिया: Pyria
जामुन
के पेड़ की छाल को आग में जलाकर तथा उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक व फिटकरी
मिलाकर बारीक पीसकर मंजन बना लें। इससे रोजाना मंजन करने से पायरिया रोग
ठीक होता है।
Burn the bark of jambule tree in a fire and mix a little rock salt and alum in it and grind it finely to make a brush. Pyridia disease is cured by brushing it daily.
12.कांच निकलना (गुदाभ्रंश):Ejaculation (anal fistula)
जामुन,
पीपल, बड़ और बहेड़ा 20-20 ग्राम की मात्रा में लेकर 500 ग्राम जल में
मिलाकर उबाल लें। रोजाना शौच के बाद मलद्वार को स्वच्छ (साफ) कर बनाये हुए
काढ़ा को छानकर मलद्वार को धोएं। इससे गुदाभ्रंश ठीक होता है।
Boil 20 grams of berries, peepal, elder and beler with 500 grams of water and boil it. After daily defecation, wash the anus by filtering the decoction made by cleaning the anus (clean). It cures analgesia.
13. मुंह के छाले:Mouth Sore
- मुंह में घाव, छाले आदि होने पर जामुन की छाल का काढ़ा बनाकर गरारे करने से लाभ होता है।
- Gargling bark of jambule bark is beneficial in the condition of wounds, blisters etc. in the mouth.
- जामुन के पत्ते 50 ग्राम को जल के साथ पीसकर 300 मिलीलीटर जल में मिला लें। फिर इसके पानी को छानकर कुल्ला करें। इससे छाले नष्ट होते हैं।
- Grind 50 grams of berries with water and mix it in 300 ml of water. Then filter and rinse its water. Blisters are destroyed by this.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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