दशमूल, विभिन्न रोगों में उपचार Dashmul treatment in various diseases
14 से 28 मिलीलीटर दशमूल के काढ़े को 7 से 14 मिलीलीटर एरंड के तेल में मिलाकर रोजाना सुबह सेवन करने से अंडकोष की सूजन कम हो जाती है।
Swelling of the testes:
Mixing 14 to 28 ml decoction of Dashmool with 7 to 14 ml of castor oil and taking it daily in the morning reduces swelling of the testicles.
दांत मजबूत करना:
सरसों के तेल में दशमूल काढ़ा डालकर आग पर पकायें। गाढ़ा हो जाने पर इससे दाँत एवं मसूढ़ों पर मलने से मसूढ़े मजबूत होते हैं।
Strengthening teeth:
Put Dashamool decoction in mustard oil and cook on fire. When thickened, rubbing on the teeth and gums makes the gums strong.
गर्भवती स्त्री का बुखार:
दशमूल के गर्म काढ़े में शुद्ध घी को मिलाकर सेवन करने से गर्भवती स्त्री का प्रसूत ज्वर मिट जाता है।
Pregnant woman's fever:
By consuming pure ghee in a warm decoction of Dashmul, the pregnant fever is eliminated by taking it.
बहरापन:
दशमूल काढ़े को तेल में पकाकर ठंडा कर लें। फिर इस तेल को चम्मच में लेकर गुनगुना करके 2-2 बूंद करके दोनो कानों में डालने से बहरापन दूर होता है।
Deafness:
Cook Dashmool decoction in oil and cool it. Then take this oil in a spoon, lukewarm and drop 2-2 drops in both the ears and remove the deafness.
कमरदर्द:
14 से 28 मिलीलीटर दशमूल काढे़ को 7-14 मिलीलीटर एरण्ड के तेल के साथ मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से कमर दर्द से आराम मिलता है।
Kamardard:
Mix 14 to 28 ml Dashamool decoction with 7-14 ml castor oil and take it thrice a day, it provides relief from back pain.
कनफेड:
फिटकरी, माजूफल, पलाश, पापड़ी और मुर्दासंग को एक साथ लेकर खिरनी के रस में मिलाकर कनफेड पर लगाने से आराम आता है।
Conafed:
Mix alum, oak nut, palash, papdi and Murdasang together and mix in the juice of Khirni and apply it on conafed.
जनेऊ (हर्पिस) रोग:
दशमूल रस 40 से 90 ग्राम रोजाना 4 बार प्रयोग में लाने से जनेऊ रोग में लाभ मिलता है।
Janeu (herpes) disease:
Using 40 to 90 grams of Dashamool juice 4 times a day provides relief in janeu disease.
सभी प्रकार के दर्द होने पर:
दशमूल ( बेल, श्योनाक, गंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरियवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) को पकाकर काढ़ा बना लें, फिर इसमें जवाखार और सेंधानमक मिलाकर खाने से दिल के दर्द (हृदय शूल), श्वास (दमा), खाँसी, हिचकी और पेट में गैस के गोले आदि रोग समाप्त होते हैं।
For all types of pain:
Make a decoction by cooking Dashmul (Bell, Shionak, Gambhari, Padhal, Arlu, Sarivan, Pithavan, Bada Kateri, Chhoti Kateri and Giloy), then mixing it with impregnation and rock salt and heart pain (heart) Colic), breathing (asthma), cough, hiccups and stomach gas shells, etc. diseases are eliminated.
पेट में दर्द:
दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरियवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) को पीसकर काढ़ा बनाकर गाय के पेशाब में मिलाकर पीने से पित्तोदर यानी पित्त के कारण होने वाले पेट के दर्द में राहत मिलती है।
Abdominal pain:
Make a decoction by grinding decoction (bell, shionak, khambhari, padhal, arlu, sirivan, pithwan, big kateri, small kateri and giloy) into the cow's urine and drinking it. Relieved.
गठिया रोग:
घुटने के दर्द में एरण्ड के तेल को दशमूल काढ़े के साथ सेवन करना चाहिए। इससे रोगी को तुरन्त फायदा मिलता है।
Arthritis:
In castor pain, castor oil should be taken with the decoction of decoction. The patient gets immediate benefit from this.
पीलिया का रोग:
दशमूल काढ़े का एक कप रस लेकर उसमें आधा चम्मच सोंठ तथा 2 चम्मच शहद मिलाकर सुबह 8-10 दिन तक सेवन करने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।
Jaundice:
Jaundice is cured by taking half cup of dry ginger and 2 teaspoons of honey mixed with a cup of juice of Dashamool decoction and taking it for 8-10 days in the morning.
शरीर का सुन्न पड़ जाना:
दशमूल के काढ़े में पुष्कर की जड़ को मिलाकर पीने से शरीर का सुन्न होना दूर हो जाता है।
Numbness of the body:
Mixing the root of Pushkar in decoction of Dashmool, drinking it cures body numbness.
सिर का दर्द:
दशमूल के काढ़े में घी और सेंधानमक को मिलाकर सूंघने से सिर दर्द के अलावा आधासीसी (आधे सिर का दर्द) का दर्द भी खत्म हो जाता है।
Headache:
Smelling ghee and rock salt mixed with decoction of Dashmool ends headache and pain of migraines (half headache).
लिंगोद्रेक (लिंग उत्तेजित होने पर):
10 से 100 ग्राम दशमूल का रस दिन में 4 बार 6-6 घंटों पर सेवन करने से लिंग उत्तेजित होने का रोग दूर हो जाता है।
Lingodrek (when the penis is stimulated):
Taking 10 to 100 grams of Dashamool juice 4 to 6 hours a day for 6 to 6 hours cures the disease of the penis.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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