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भुई आंवला का सेवन बहुत ही लाभदायक होता है.Consuming Bhui Amla is very beneficial.

भुई आंवला का सेवन बहुत ही लाभदायक होता है Consuming Bhui Amla is very beneficial.
 
शरीर में पाए जाने वाले अवयव ( Compound Found in Body ) : 

 शरीर में ऐसे अनेक जहरीले अवयव पाए जाते है जो शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं. अगर आप चाहते हैं कि आपके शरीर में पाए जाने वाले विविध अवयव नष्ट हो जाएं तो आप भुई आंवला का सेवन करें.

Compound Found in Body: 

Many such toxic ingredients are found in the body, which are very harmful for the body. If you want that the various ingredients found in your body are destroyed, then you should take Bhai Amla.

मुंह के छाले ( Cold Sores ) :  

कई बार मुंह में छाले हो जाते हैं जिसके कारण खाना खाने में बहुत ही कठिनाई होती है. क्या आपके मुंह में भी छाले हो गये हैं जिसके कारण आप कुछ भी नहीं खा पाते तो मुंह के छालों को ठीक करने के लिए भुई आंवला के पत्तों को चबाएं. इसे चबाने से आपके मुंह के छाले ठीक हो जाएँगे और आपको किसी भी चीज को खाने में कठिनाई महसूस नहीं होगी.

Cold sores: 

Many times there are mouth sores due to which there is a lot of difficulty in eating food. If you have blisters in your mouth as well, due to which you are unable to eat anything, then to cure mouth ulcers, chew the leaves of Bhui Amla. Chewing it will cure your mouth blisters and you will not feel difficulty in eating anything.

मसूढ़े पकना ( Gum Rankle ) : 

मसूढ़ों के पक जाने पर भुई आंवला का सेवन बहुत ही लाभदायक होता है.

Gum Rankle: 

Consuming Bhuai Amla is very beneficial when the gums are cooked.

सीने में सूजन तथा गांठ ( Chest Swelling and Lumps ) : 

जिसके सीने में सूजन आ गई है या गांठ बन गई है उसे भुई आंवला के पत्तों को पीसकर इसका लेप लगाना चाहिए. इसके लेप से सीने की सूजन दूर हो जाती है.

Chest Swelling and Lumps: 

The one who has got chest swelling or has become a lump, he should grind the leaves of Bhui Amla and apply it. The swelling of the chest is removed by its application.

ज्वर ( Fever ) : 

अगर आपको बहुत दिनों से ज्वर है या भूख नहीं लगती तो थोड़ा भुई आंवला लें, मुलेठी लें, गिलोय लें, इन सभी को मिलाकर काढ़ा बना लें, रोजाना इस काढ़े का सेवन करें इससे आपका ज्वर ठीक हो जाएगा साथ ही आपको भूख भी लगने लगेगी.

Fever:

If you have fever for a long time or do not feel hungry, then take a little Indian gooseberry, take liquorice, Giloy, mix all these and make a decoction, consume this decoction daily, it will cure your fever as well. You will also feel hungry.

जलशोथ में लीवर का कार्य न करना ( Damaged Liver in Dropsy ) : 

कई लोगों की जलशोथ में लीवर अपना काम करना बंद कर देते हैं. ऐसी स्थिति में वे लोग जिनकी जलशोथ में लीवर ने काम करना बंद कर दिया है, 4 – 5 ग्राम भुई आंवला लें, 1/2 ग्राम कुटकी लें, 1 – 2 ग्राम सुखी हुई अदरक लें, इन सभी चीजों को मिलाकर काढ़ा बना लें, काढ़े को हर रोज सुबह – शाम पियें. इस काढ़े को पीने से आपके जलशोथ में लीवर अपना काम करना आरंभ कर देंगे.

Damaged Liver in Dropsy: 

In many people's liver, the liver stops functioning. In such a situation, in those whose liver has stopped working, take 4-5 grams Bhuai Amla, take 1/2 gram of Kutki, take 1-2 grams of dried ginger, mix all these things and make a decoction, Drink decoction every morning and evening. By drinking this decoction, the liver will start doing its work in your burns.

किडनी में सूजन तथा रोग संचार ( Kidney Inflammation and Infection ) : 

किडनी की सूजन तथा रोग संचार (infection) को दूर करने के लिए भुई आंवला का काढ़ा बनाकर पियें. इसे पीने से किडनी की सूजन तो दूर हो ही जाती है साथ ही इसका रोग संचार (infection) भी दूर हो जाता है.

Kidney Inflammation and Infection: 

To remove kidney inflammation and infection, drink brew of Indian gooseberry. By drinking this, the inflammation of the kidney not only disappears, as well as its infection also goes away.


Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
  क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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