गाजर से रोगों में उपचार और लाभ मिलेगा। Carrots will provide treatment and benefits in diseases.
आग से जलना:Burning with fire:
- कच्ची गाजर को पीसकर आग से जले हुए स्थान पर रखने से जलन नष्ट हो जाती है और पीब भी नहीं बनती है।
- Grinding raw carrots and keeping them on the burnt place of the fire destroys the burning sensation and does not produce pus.
- आग से जल जाने पर जले हुए स्थान पर गाजर का रस लगाने से जख्म नहीं बनता तथा जलन व पीड़ा दूर हो जाती है।
- Applying carrot juice to a burnt place on burning with fire does not cause injury and burns and pain is removed.
- शरीर के जले हुए भाग पर कच्ची गाजर का रस बार-बार लगाने से लाभ होता है।
- Applying raw carrot juice repeatedly on the burnt part of the body is beneficial.
- आग से जले हुए व्यक्ति की जलन और दर्द को दूर करने के लिए गाजर को पीसकर लगाना चाहिये।
- Carrot should be grinded to remove burning sensation and pain of a person burnt by fire.
पित्ताशय की पथरी:Gallstones:
- 250 मिलीलीटर गाजर का रस और सलाद के पत्तों का रस मिलाकर पीने से पथरी गलकर पेशाब के साथ बाहर निकल जाती है और रोगी को अधिक आराम मिलता है।
- Drinking 250 ml carrot juice and juice of lettuce leaves makes the stones go out with urine and gives more relief to the patient.
- गाजर का रस प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें। इससे पित्ताशय में होने वाली पथरी गलकर पेशाब के रास्ते बाहर हो जाएगी।
- Drink carrot juice every morning and evening. This will cause gallstones in the gall bladder to pass out through urine.
- गाजर का रस पीने से पित्ताशय की पथरी कट-कट बाहर निकल जाती है और इसके पत्तों का सलाद इस रोग को ठीक करने के लिए उपयोग में ले सकते हैं।
- By drinking carrot juice, gall bladder stones are cut out and its leaves can be used to cure this disease.
गुर्दे की पथरी:Kidney stone
- गुर्दे की पथरी तथा मूत्राशय की सूजन को ठीक करने के लिए तथा गुर्दो की सफाई के लिए 150 मिलीलीटर गाजर, चुकन्दर, ककड़ी या खीरे का रस मिलाकर पीने से लाभ मिलता है। गुर्दे और मूत्राशय की पथरी को गाजर का रस तोड़कर पेशाब के रास्ते बाहर निकाल देता है।
- Drinking 150 ml carrot, beet, cucumber or cucumber juice is beneficial to cure kidney stone and bladder inflammation and to cleanse the kidneys. Carrot juice breaks the kidney and bladder stones and passes them out through urine.
- गाजर का रस रोजाना 3-4 बार पीने से पथरी निकल जाती है। गाजर के बीजों को पीसकर फंकी लेने से भी पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।
- Drinking carrot juice 3-4 times daily removes stones. Grinding carrot seeds and taking funky also removes stones.
- मोटी मूली को खोखला करके इसमें गाजर और शलगम के 1-1 चम्मच बीजों को भर दें। मूली के मुंह को बंद करके आग में भून लें। मूली से बीजों को निकालकर प्रतिदिन सुबह-शाम पानी के साथ 1 महीने तक खाने से पथरी का रोग ठीक होने लगता है।
- Make thick radish hollow and fill 1-1 teaspoon seeds of carrot and turnip in it. Close the mouth of radish and fry it in a fire. Taking seeds out of radish and eating it with water every morning and evening for 1 month, cures stone disease.
- गाजर, मूली तथा शलगम का बीज 5-5 ग्राम को पीसकर चटनी बना लें। प्रतिदिन सुबह-शाम 3-3 ग्राम चटनी पानी के साथ 15 दिन तक लें। इससे पथरी गलकर निकल जाती है।
- Make a sauce by grinding 5-5 grams of carrot, radish and turnip seeds. Take 3 to 3 grams of chutney water daily for 15 days. This causes the stones to melt.
घी, तेल, चिकनी चीजों का न पचना:Digestion of ghee, oil, smooth things:
- 300 मिलीलीटर गाजर का रस और 150 मिलीलीटर पालक का रस मिलाकर सेवन करने से घी, तेल और चिकनी चीजें पचने लगेगी।
- Mixing 300 ml carrot juice and 150 ml spinach juice will cause ghee, oil and smooth things to be digested.
- बड़ी आंत की सूजन: बड़ी आंत में सूजन आ जाने पर रोग को ठीक करने के लिए 200 मिलीलीटर गाजर का रस, 150 मिलीलीटर चुकन्दर का रस और 150 मिलीलीटर खीरे का रस मिलाकर पीने से लाभ मिलेगा।
- Swelling of the large intestine: To cure the disease in the swelling of the large intestine, drinking 200 ml carrot juice, 150 ml beetroot juice and 150 ml cucumber juice will be beneficial.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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