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नींबू से विभिन्न रोगों में उपचार Treatment in various diseases with lemon

नींबू से विभिन्न रोगों में उपचार Treatment in various diseases with lemon
 
कान का बहना :Runny ears
  • सुबह उठने के बाद पानी में नींबू को निचोड़कर पीने से कान से मवाद बहना कम हो जाता है।
  • After waking in the morning, squeezing lemon in water and drinking it reduces pus in the ears.
 
  • बिजौरा नींबू के रस में थोड़ी-सी सज्जीखार मिलाकर कान में बूंदों के रूप में डालने से कान में से बहने वाला पीव बन्द होता है।
  •  Mixing a little salt in the juice of bijora lemon and pouring it in the form of drops in the ear stops the pus flowing through the ear.
 
  • नींबू के 200 मिलीलीटर रस में सरसों का या तिल का तेल मिलाकर अच्छी तरह उबाल लें। पकने पर छानकर बोतल में भरकर रख लें। उसमें से 2-2 बूंद कान में डालते रहने से कान में पीव, खुजली, दर्द और बहरेपन में लाभ पहुंचाता है।
  • Mix mustard or sesame oil in 200 ml lemon juice and boil it well. After cooking, filter and fill it in the bottle. Putting 2-2 drops in it provides relief in pus, itching, pain and deafness in the ear.
गर्भवती स्त्रियों की उल्टी :Vomiting of pregnant women
नींबू के रस को पानी में मिलाकर सुबह पिलाने से वमन (उल्टी) में आराम आता है और भोजन आसानी से पचता है।
Drinking lemon juice mixed with water in the morning provides relief in vomiting (vomiting) and food is easily digested.


डकार और जुलाब आने पर:Belching and laxatives
बिजौरे की जड़, अनार की जड़ और केशर पानी में घोटकर पिलाने से डकार और जुलाब की बीमारी में आराम होता है।
 Drinking bijoure root, pomegranate root and saffron in water provides relief in belching and laxative disease.
पथरी :Stones
  • बिजौरे नींबू के रस में सेंधानमक मिलाकर पिलाने से पथरी दूर होती है।
  •  Mixing rock salt in bijoure lemon juice and drinking it removes stones.
 
  • नींबू के रस में सेंधानमक मिलाकर कुछ दिनों तक नियमित पीने से पथरी गल जाती है।
  •  Mixing rock salt in lemon juice and drinking it regularly for a few days causes stones to melt.
खून की कमी या न बनना (रक्तक्षीणता) :Anemia or lack of blood (anemia)
  • नींबू और टमाटर का रस सेवन करने खून की कमी दूर होती है। यदि पाचन अंग कार्य नहीं करते, भोजन नहीं पचता, पेट में गैस बनती हो तो एक गिलास गर्म पानी में एक नींबू का रस मिलाकर बार-बार पीते रहने से पाचन अंगों की धुलाई हो जाती है तथा खून और शरीर के समस्त विषैले पदार्थ पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
  •  Taking lemon and tomato juice ends blood loss. If the digestive organs do not work, food is not digested, gas is produced in the stomach, then drinking a mixture of lemon juice in a glass of hot water and washing it again and again causes the digestive organs to wash and all the toxic substances of the blood and body of urine. Let's get out.
 
  • 2 चम्मच नीबू के रस में आधा कप टमाटर का रस मिलाकर प्रतिदिन सुबह और शाम 20 दिन तक पीने से रोग में लाभ मिलता है।
  •  Mixing half a cup of tomato juice in 2 teaspoons lemon juice and drinking it daily for 20 days in the morning and evening provides relief in the disease.
खून के बहने पर (रक्तस्राव) :Bleeding (bleeding)
  • 1 कप गर्म दूध में आधा नींबू को निचोड़कर दूध फटने से तुरन्त पहले पीने से खून का बहना बन्द हो जाता है। ध्यान रहे कि इस प्रयोग को 1 या 2 बार से अधिक न करें।
  •  Squeezing half a lemon in 1 cup of warm milk and drinking it immediately before bursting milk stops bleeding. Keep in mind that do not use this experiment more than 1 or 2 times.
 
  • फेफड़े, आमाशय, गुर्दे, गर्भाशय और मूत्राशय से खून के आने पर नींबू का रस ठंड़े पानी में मिलाकर दिन में 3 बार पीने से खून का बहना बन्द हो जाता है।
  • When blood comes from the lungs, stomach, kidneys, uterus and bladder, mixing lemon juice with cold water and drinking it thrice a day stops bleeding.
खून की शुद्धि के लिए :For blood purification
नींबू को गर्म पानी में मिलाकर रोजाना दिन में 3 बार पीना चाहिए। पानी को चाय की तरह गर्म करके खून की सफाई होती है।
Lemon should be mixed with warm water and drunk 3 times a day. Blood is cleansed by heating water like tea.

  Dr.Manoj Bhai Rathore 
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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