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नीम से दंतमंजन बनना और दांतों के रोग में उपचार Toothbrush with neem and treatment in dental diseases

नीम से दंतमंजन बनना और दांतों के रोग में उपचार Toothbrush with neem and treatment in dental diseases

दांतों के रोग :Dental diseases
  • नीम की दातुन करने से दांतों के रोगों में लाभ मिलता है।
  • Tooth neem provides relief in dental diseases.

  • नीम के फूलों से बने काढ़े से दिन में 3 बार गरारे करें और पतली टहनी को दांतों से चबा-चबाकर सुबह-शाम दातुन करते रहने से दांतों और मसूढ़ों के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  • Gargle 3 times a day with a decoction made of neem flowers and chewing a thin sprig with teeth and chewing it in the morning and evening provides relief from diseases of teeth and gums.
  • नीम की पत्तियों का रस मलने से दांतों के जीवाणु मिट जाते हैं।
  • By rubbing the juice of neem leaves, teeth bacteria disappear.
  • नीम की निंबौली की गुठली से प्राप्त किये तेल को दांतों में लगाने से दांतों के कीड़े खत्म होते है और दांतों में दर्द कम होता है।
  • By applying neem oil extracted from the seed of Nimbauli, teeth worms are eliminated and pain in the teeth is reduced.
  • नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर साफ कपड़े से छानकर कुल्ला करने से दांतों के जीवाणु नष्ट होते हैं और पायरिया में भी लाभ मिलता है।
  • Boil neem leaves in water and filter and rinse them with a clean cloth, it destroys teeth bacteria and also provides relief in pyorrhea.
  • नीम की जड़ की छाल का 50 ग्राम चूर्ण, सोनागेरू 50 ग्राम, सेंधानमक 10 ग्राम को पीसकर, नीम के पत्तों का रस मिलाकर सुखाकर शीशी में रख दें। इसका मंजन करने से दांतो में से खून का गिरना, पीव का आना, मुंह में छाले पड़ना, मुंह से दुर्गन्ध का आना, जी मिचलाना आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।
  • Grind 50 grams of powder of neem root bark, Sonageru 50 grams, 10 grams of rock salt, juice of neem leaves after mixing and dry it in a vial. By brushing it, blood falls from the teeth, pus, blisters in the mouth, odor from the mouth, nausea, etc., get rid of diseases.
  • 100 ग्राम नीम की जड़ को कूटकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब पानी 250 मिलीलीटर शेष रह जाये तो इस पानी से कुल्ला करते रहने से दांतों के रोग दूर होते हैं।
  • Boil 100 grams of neem root in 500 ml water. When the water remains 250 ml, rinse with this water cures the diseases of teeth.
  • सुबह उठते ही नीम की दातुन करने से और फूलों के काढ़े से कुल्ला करने से दांत और मसूढ़ों के रोग से मुक्त मिलती है और दांत मजबूत होते हैं।
  • By waking up neem and rinse with a decoction of flowers as soon as waking in the morning, the teeth and gums get rid of disease and teeth become strong.
दंतमंजन बनना :Dentinization
  • नीम की टहनी और पत्तियों को छाया में सुखाने के बाद जलाकर राख बना लें। इसे पीसकर मंजन बना लें। सुगन्ध  स्वाद के लिए इसमें लौंग, पिपरमेंट और नमक को मिला लें। इससे पायरिया ठीक हो जाता है और दांत मजबूत होते हैं।
  •  After drying the neem branch and leaves in the shade, burn and make ashes. Make a powder by grinding it. To taste the aroma, mix cloves, peppermint and salt. This cures pyorrhea and strengthens teeth.

  • नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ला करने से दांतों का दर्द मिटता है।
  •  Boiling rinse of neem seed in water is useful to end toothache.

  • नीम के सूखे फूलों का 3 ग्राम कपड़े में छना हुआ चूर्ण रोजाना रात को गर्म पानी के साथ लेना चाहिए।
  • 3 grams of dried neem flowers should be taken daily with hot water filtered in cloth.
                                                      Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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