जामुन से विभिन्न रोगों में उपयोग Berries used in various diseases
1. रक्तातिसार: Blood Pressure:
- जामुन के पेड़ की छाल को दूध में पीसकर शहद के साथ पीना चाहिए या जामुन के पत्तों के रस में शहद, घी और दूध मिलाकर लेना चाहिए।
- The bark of jambule tree should be grinded with milk and drink with honey or mixed with honey, ghee and milk in the juice of jambule leaves.
- जामुन का रस गुलाब के रस में मिलाकर दिन में 2-3 बार पिलायें। इससे जल्द लाभ नज़र आयेगा।
- Mix juice of jambule with rose juice and drink it 2-3 times a day. It will soon show a profit.
2. गर्मी की फुंसियां: Summer pimples
जामुन की गुठली को घिसकर लगाना चाहिए।
Jam kernels should be rubbed.
3. बिच्छू के दंश पर:On a scorpion bite
जामुन के पत्तों का रस लगाना चाहिए। इससे बिच्छू का दंश ठीक हो जाता है।
The juice of the berries should be applied. It cures scorpion bites.
4. पित्त पर:On bile
10 मिलीलीटर जामुन के रस में 10 ग्राम गुड़ मिलाकर आग पर तपायें। तपाकर उसके भाप को पीना चाहिए।
Mix 10 grams jaggery in 10 ml juice of jambule and heat it on fire. Tap steam should be drunk.
5. गर्भवती स्त्री का दस्त:Pregnant woman diarrhea
ऐसे समय में जामुन खिलाना चाहिए या जामुन की छाल के काढ़े में धान और जौ का 10-10 ग्राम आटा डालकर चटाना चाहिए।
At this time, one should feed the berries or add 10-10 gram flour of paddy and barley to the decoction of the bark of the berries.
6. मुंह के रोग:Diseases of the mouth
- जामुन, बबूल, बेर और मौलसिरी में से किसी भी पेड़ की छाल का ठण्डा पानी निकालकर कुल्ला करना चाहिए और इसकी दातून से रोज दांतों को साफ करना चाहिए इससे दांत मजबूत होते हैं और मुंह के रोग भी ठीक हो जाते हैं।
- The bark of any tree from the berries, acacia, plum and moulsiri should be rinsed with cold water and the teeth should be cleaned daily with its teeth, it makes the teeth strong and cures diseases of the mouth.
- जामुन की गुठली को 1 ग्राम चूरन के पानी के साथ लेना चाहिए। चार-चार घंटे के बाद यह औषधि लेनी चाहिए। लगभग 3 दिन के बाद इसका असर दिखाई देने लगेगा।
- Jam kernels should be taken with 1 gram of churan water. This medicine should be taken after every four hours. After about 3 days, its effect will start to appear.
7. वमन (उल्टी):Vomiting (vomiting)
जामुन के पेड़ की छाल को आग में जलाकर उसकी राख को शहद के साथ खिलाने से खट्टी उल्टी आना बंद हो जाती है।
Burning the bark of the berries in a fire and feeding its ashes with honey stops sour vomiting.
8. विसूचिका (हैजा):Visucha (Cholera)
हैजा
से पीड़ित रोगी को 5 ग्राम जामुन के सिरके में चौगुना पानी डालकर 1-1 घण्टे
के अन्तर से देना चाहिए। पेट के दर्द में भी सुबह-शाम इस सिरके का उपयोग
करना चाहिए।
The patient suffering from cholera should give four grams of berries to 5 grams of berries at a time of 1-1 hours. This vinegar should be used in the morning and evening even in stomach pain.
9. मुंहासे:Acne
जामुन की गुठली घिसकर लगाना चाहिए। इससे मुंहासे नष्ट हो जाते हैं।
Jam kernels should be grinded. Acne is destroyed by this.Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
yourselfhealthtips.blogspot.com
आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
Comments
Post a Comment