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चिरायता के फायदे (Benefits of Swertia Chirata)

चिरायता के फायदे (Benefits of Swertia Chirata)

इन समस्याओं में फायदेमंद है चिरायता (Benefits of Swertia Chirata in Hindi)

नेत्र रोग (Eye Disease):- 

चिरायता को पानी में घिसकर आंखों पर लेप करने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है और आंखों के अनेक रोगों में आराम मिलता है।

Grinding salicylicus in water and applying it on the eyes increases the light of the eyes and provides relief in many diseases of the eyes.

बुखार (Fever):- 

एक गिलास पानी में 4 चम्मच चिरायता चूर्ण भिगोकर रात को रखें। सुबह उस पानी को छानकर आधा- आधा कप दिन में 3 से 4 बार पीने से बुखार उतर जाता है। इसके अलावा चिरायता के तेल से शरीर की मालिश करने से बुखार, पीलिया और कमजोरी दूर होती है।

 Soak 4 teaspoons of salty powder in a glass of water and keep it overnight. After filtering that water in the morning, drinking half and half cup 3 to 4 times a day, fever is relieved. Apart from this, massaging the body with salicylic oil ends fever, jaundice and weakness.

मलेरिया (Malaria):- 

 चिरायता के रस और संतरे के रस को मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से मलेरिया में आराम मिलता है।
Mixing salicylic juice and orange juice, giving the patient 3 times a day provides relief in malaria.

सूजन (Swelling):- 

चिरायता और सोंठ को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाएं और उस काढ़े को रोजाना एक- एक कप दिन में 3 बार पिएं। ऐसा करने से शरीर की सूजन खत्म होती है।

Make a decoction by taking equal quantity of saliva and dry ginger and drink that decoction once a day thrice a day. By doing this, the swelling of the body ends.

त्वचा सम्बंधी रोग (Skin Problems):- 

सोते समय चिरायते की पत्तियों को पानी में भिगोकर रखें और सुबह उठते ही इस पानी का सेवन करें। ऐसा करने से खून साफ होता है और त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं। खुजली, फोड़े फुन्सी जैसे रोगों में चिरायता का लेप लगाना चाहिए। इससे ये सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।

Soak the leaves of Chirayate at bedtime and keep this water in the morning. By doing this, the blood is cleaned and skin related diseases are removed. Salicylic paste should be applied in diseases like itching, boils and pimples. All these diseases are destroyed by this.

वात-कफ ज्वर (Vata-Kapha Fever):- 

चिरायता, सुगन्धबाला, गिलोय, नागरमोथा, कटाई, सरिवन, कटेली, गोखरू, सोंठ और पिठवन को लेकर हल्का- हल्का कूटकर काढ़ा बनाकर पीने से वात-कफ के बुखार से आराम मिलता है।

Make a little by brewing bitter gourd with sweetness, fragrance, giloy, nagarmotha, cuttings, sarivans, kateli, bunches, dry ginger and Pithavan to get relief from fever of phlegm.

सन्निपात ज्वर (Typhus Fever):- 

 चिरायता रस को पानी या दूध में मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से रुका हुआ बुखार (सन्निपात ज्वर) ठीक हो जाता है। इसके अलावा चिरायता सत्व का पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करने से भी लाभ होता है।

Mixing salicylic juice in water or milk and consuming it thrice a day cures the stalled fever (typhoid fever). Apart from this, consuming salicylic acid with water twice a day is also beneficial.

गर्भाशय की सूजन (Uterus Swelling):- 

चिरायते के पानी से योनि को धोकर पेडू़ और योनि पर चिरायता का लेप करें। ऐसा करने से गर्भाशय की सूजन कम होती है।

Wash the vagina with chirate water and apply saliva to the pelvis and vagina. By doing this, inflammation of the uterus is reduced.

पेचिश (Dysentery):-  

चिरायता, कुटकी, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, नागरमोथा और इन्द्रयव एक समान मात्रा (10 ग्राम), 20 ग्राम चित्रक और 1.60 ग्राम कुड़ा के साथ मिलाकर चूर्ण बनाकर गुड़ के शर्बत के साथ सेवन करें। ऐसा करने से संग्रहणी अतिसार और पेचिश जैसे रोग दूर हो जाते हैं।

Make the powder by mixing with equal quantity (10 grams), 20 grams of chitraka and 1.60 grams of garbage with jaggery syrup. By doing this, diseases like sprue diarrhea and dysentery are cured.

अग्निमान्द्यता या अपच (Indigestion):- 

चिरायता, त्रिकुट, मुस्तक, कुटकी, इन्द्रयव, करैया की छाल और चित्रक समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को 4 से पांच ग्राम की मात्रा में दही या मट्ठा के साथ दिन में दो बार सेवन करें। ऐसा करने से अपच और संग्रहणी जैसे रोगों से छुटकारा मिलता है।

Make the powder by taking equal amount of bark and chitrak, chirita, thrikut, mustak, kutki, indrive, karaiya. Take 4 to 5 grams of this powder with curd or whey twice a day. By doing this, you get rid of diseases like indigestion and sprue.

शीतपित्त (Urticaria):- 

चिरायता, पटोल, अडूसा, लाल चंदन, कुटकी, त्रिफला और नीम की छाल समान मात्रा में लेकर 2 कप पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े से शीतपित्त की समस्या में आराम मिलता है।

 Make a decoction by boiling the bark of chirita, patol, malabar nut, red sandalwood, kutki, triphala and neem in 2 cups of water. This decoction provides relief in the problem of hives.

पेट के कीड़े (Stomach Worms):- 

अक्सर बच्चों में पेट के कीड़े की शिकायत होती है। इस परेशानी को दूर करने के लिए चिरायता, तुलसी का रस, नीम की छाल के काढ़े में नीम का तेल मिलाकर सेवन करने से पेट के कीड़े दूर हो जाते हैं।

 Often, there are complaints of stomach worms in children. To get rid of this problem, taking saline, basil juice, neem bark decoction mixed with neem oil and taking it kills stomach worms.

अन्य रोग (Other Disease):- 

 गठिया, दमा, रक्तविकार, मूत्र संबंधी परेशानी, खांसी, कब्ज, अरुचि, कमजोर पाचनशक्ति, मधुमेह, श्वास नलिकाओं में सूजन, अम्लपित्त तथा दिल के रोगों में चिरायता बहुत ही लाभदायक होता है। आधा चम्मच चिरायता चूर्ण दिन में दो बार शहद या देशी घी के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के रोगों में लाभ मिलता है।

 Arthritis, asthma, blood disorders, urinary problems, cough, constipation, anorexia, weak digestive power, diabetes, inflammation of respiratory tract, acidity and heart diseases are very beneficial. Taking half a teaspoon of salicylic powder twice a day with honey or ghee is beneficial in all types of diseases.
  Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
  क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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