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तुलसी Basil

तुलसी Basil

तुलसी (ocimum sanctum):जगत पादप (Plantae) वर्ग ऍस्टरिड्स (Asterids) गण लैमिएल्स (Lamiales) कुल लैमिएसी (Lamiaceae) जाति ओसिमम (Ocimum) प्रजाति O. tenuiflorum (टेनूईफ्लोरम) द्विपद नाम ऑसीमम सैक्टम तुलसी परिचय प्रजातियाँ तुलसी का औषधीय महत्व तुलसी के गुण पौधे का परिचय बुवाई-विधि पौधशाला प्रंबधन उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती कटाई फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी में फायदा परिचय

 Basil (ocimum sanctum): Platae class Asterids, Lamiales, total Lamiaceae species Ocimum species O. tenuiflorum (Tenuiflorum) Binomial name Osimum sactum Basil Introduction Medicinal importance of basil Properties of the Plant Introduction Sowing-Method Nursery Management Production Technology Farming Harvesting and Value Additions Advantages in the disease caused by mosquito bites Introduction

तुलसी - (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं।

 Tulsi - (Ocimum sactum) is a dicotyledonous and herbaceous, medicinal plant. It grows as a bush and is 1 to 3 feet high. Its leaves are covered with light fur with a purple aura. The leaves are 1 to 2 inches long, fragrant and oval or oblong. The floral manjari is very soft and 4 inches long and with multicolored hues, which are covered in very small heart shaped floral circles with purple and pink aura.

 बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।

 The seeds are oval with small black markings of flat yellow. New plants grow mainly during the rainy season and thrive in winter. The plant normally remains green for two-three years. Then comes its old age. The leaves become shorter and smaller and the branches appear dry. At this time there seems to be a need to remove and plant a new plant.

पौधे की जानकारी
उपयोग :
Plant information
Use: 

तुलसी का उपयोग भारत मे व्यापक रूप से पूजा में किया जाता है।इसके उपयोग से त्वचा और बालों में सुधार होता हैं।यह रक्त शर्करा के स्तर को भी कम करती है और इसका चू्र्ण मुँह के छालों के लिए प्रयोग किया जाता है।इसकी पत्तियों के रस को बुखार, ब्रोकाइटिस, खांसी, पाचन संबंधी शिकायतों में देने से राहत मिलती है।कान के दर्द में भी तुलसी के तेल का उपयोग किया जाता है। 

 Tulsi is widely used in worship in India. It improves skin and hair. It also lowers blood sugar levels and is used for mouth ulcers. Its leaves. Juice is relieved by giving fever, brochitis, cough, digestive complaints. Basil oil is also used in ear pain.

यह मलेरिया और डेंगू बुखार को रोकने के लिए एक निरोधक के रूप में काम करता है।लोशन, शैम्पू, साबुन और इत्र में कास्मेटिक उघोग में तुलसी तेल का उपयोग किया जाता है।कुछ त्वचा के मलहम और मुँहासे के उपचार में भी इसका प्रयोग किया है।मधुमेह, मोटापा और तंत्रिका विकार के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है।यह पेट में ऐंठन, गुर्दे की स्थिति और रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देने में उपयोगी होता है।इसके बीज मूत्र की समस्याओं के इलाज में इस्तेमाल किये जाते है।

 It works as an inhibitor to prevent malaria and dengue fever. Tulsi oil is used in cosmetics, in ointment, shampoo, soap and perfumes. It is also used in the treatment of some skin ointments and acne. It is used in the treatment of diabetes, obesity and nervous disorders. It is useful in promoting stomach cramps, kidney conditions and blood circulation. Are used to treat urinary problems.

उपयोगी भाग :संपूर्ण भाग
Useful Parts:Entire part

  Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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