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अपराजिता विशेष गुणकारी और प्रभावशाली होती है Aparajita is particularly powerful and effective.

अपराजिता विशेष गुणकारी और प्रभावशाली होती है Aparajita is particularly powerful and effective.
 
वैसे तो गुण  धर्म की दृष्टि से स्वेत और नीली दोनों कोयल प्राय: समान ही हैं दोनों शीत वीर्य  प्रधान तथा दोनों का स्वाद कडवा  होता है दोनों में स्निग्धता  हैकिन्तु तिक्त और कषायरस की प्रधानता होने से उनमे लघुता और रुक्षता भी देखी  जाती है वैसे नीली अपराजिता की अपेक्षा सफ़ेद अपराजिता विशेष गुणकारी और प्रभावशाली होती है .

 By the way, both white and blue cuckoos are generally the same in terms of virtue, both cold semen predominant and both have a bitter taste. Both of them have snigginess, but due to the predominance of Tikta and Kashayrus, they are also seen in their smallness and sickness. White Aparajita is more potent and effective than.

यह बहुवर्षीय जीवी बनस्पति होती है यह एक बेल है जिसमें पीले रंग के फूल लगते हैं इसके फूल का आकार गाय के कानों की तरह होता है इसलिए इसे  गौकर्णी भी कहते हैं जंगल में सामान्य रूप से प्राप्त हो जाती है जिसकी फूलो  से बीजों को निकालकर अवलेह बना दिया जाता है 

 It is a multi-year GV Banaspati. It is a vine that has yellow flowers, its flower is shaped like the ears of a cow, so it is also called Gokarni. It is normally obtained in the forest, whose seeds are removed from the flowers. Is made.

 तो यह पेचिश को मात्र 3 दिनों में ठीक कर देती हैइसका विशेष गुण है कि यह  शराब की मात्रा ज्यादा लेने से लीवर बढ़ गया हो और लीवर में सूजन आ गई हो तो एक-एक चम्मच 7 दिन लेने से लीवर की सूजन पूरी तरह समाप्त हो जाती है और उससे भी बड़ी बात यह है कि बढ़ा हुआ लीवर सिकु ड़कर वापिस  सही स्थिति में आ जाता हैइसके पत्तों को पीसकर मूत्र नली के ऊपर लगाने से रुका हुआ पेशाब बाहर निकल जाता है

 So it can cure dysentery in just 3 days. Its special quality is that it has increased the liver due to excessive intake of alcohol and if the liver has swollen, then taking one spoon of 7 days completely eliminates liver inflammation. And more than that, the enlarged lever comes back to the right position by shrinking its leaves and applying it on the urine tube after grinding leaves the blocked urine.

 यदि मूत्र नली में पथरी के टुकड़े हो तो मात्र 3 घंटे में यह दवा उस पथरी को समाप्त कर देती है इसकी जड़ को पीसकर फंकी की तरह लेने से नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है और चाहे कितने ही वर्षों से चश्मा पहना हो वह चश्मा उतर जाता है इसके अलावा इसके बीज यकृत प्लीहा जलोदर और पेट के कीड़े आमाशय में दाह कफ सूजन स्त्रियों के रोग क्षय आदि में तुरंत और आश्चर्यजनक फायदा पहुंचाता है 

 If there is a piece of stone in the urinary tube, then in 3 hours, this drug eliminates the stone, grinding its root like a funky increases the eyesight and irrespective of the number of years it has worn the glasses. Apart from this, its seeds provide immediate and amazing benefits in liver spleen ascites and stomach worms, inflammation in the stomach, decay of women, etc.

यदि कानों में दर्द हो और कानों के आसपास की ग्रंथियां सूज  गई हो तो इसके पत्तों के रस में सेंधा नमक मिलाकर गरम गरम लेप करने से यह रोग समाप्त हो जाता है इसकी छाल को दूध में पीसकर शहद मिलाकर पीने से गर्भपात रुक जाता है इसके बीजों को पीसकर लेप करने से अंडकोष की सूजन समाप्त हो जाती है

If there is a pain in the ears and the glands around the ears have swollen, applying hot salt mixed with rock salt in the juice of its leaves, this disease is eliminated by grinding its bark in milk mixed with honey and drinking it prevents abortion. Grinding and applying it ends swelling of the testicles.
  Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
  क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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