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एलोवेरा में छिपा है गुणों का खजाना-घृतकुमारी Aloe Vera is a treasure of virtues - Aloe vera

एलोवेरा में छिपा है गुणों का खजाना-घृतकुमारी Aloe Vera is a treasure of virtues - Aloe vera

  • घृतकुमारी  एक गूदेदार पौधा होता है।Aloe vera is a pulp plant.
  • घृतकुमारी की मोटी मोटी पत्तियों को काटने से एक प्रकार का गाढ़ा रस निकलता है, जिसे जेल कहा जा सकता है।Cutting thick thick leaves of aloe vera leaves a kind of thick juice, which can be called gel.
  • घृतकुमारी का अंग्रेजी नाम एलो वेरा (Aloe Vera) है।The English name of Ghritkumari is Aloe Vera.
  • घृतकुमारी को घीक्वार या ग्वारपाठा भी कहा जाता है।Ghritkumari is also known as Gheekwar or Guarpatha.
  • घृतकुमारी का आयुर्वेद में सर्वाधिक गुणगाण किया गया है।Ghritkumari has been praised most in Ayurveda.
  • अयुर्वेद ने घृतकुमारी (Aloe Vera) को एक चमत्कारी वनस्पति माना है।Aayurveda has considered Aloe Vera a miraculous plant.
  • घृतकुमारी को संजीवनी की संज्ञा प्रदान की गई है क्योंकि यह अनेक रोगों जैसे कि मधुमेह, बवासीर, पेट की खराबी तथा अल्सर, जोड़ों का दर्द आदि के उपचार में अत्यन्त लाभप्रद है।Aloe vera has been given the name of Sanjivani because it is very beneficial in the treatment of many diseases such as diabetes, hemorrhoids, stomach upset and ulcers, joint pain etc.
एलोवेरा एक ओषधीय पौधे के रूप में पूरे विश्व में विख्यात है. इसका उपयोग भारत में प्राचीन काल से ही होता आ रहा है. हमारे देश में एलोवेरा की 200 प्रजातियां पाई जाती है. जिसमे से 5 तरह के एलोवेरा का ही उपयोग ओषधि के रूप में होता है. वैसे पूरे विश्व में 500 प्रजातियां एलोवेरा की पाई जाती है.
 
 Aloe vera is famous all over the world as a medicinal plant. It has been used in India since ancient times. 200 species of aloe vera are found in our country. Of which only 5 types of aloe vera are used as medicine. By the way, 500 species of aloe vera are found all over the world.
 
 भारत में इसे घृतकुमारी या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है. एलोवेरा एक काँटेदार पौधा होने के बावजूद भी इसमे रोग निवारण गुण कूट-कूट के भरे है. इसे साइलेंट हिलर और चमत्कारी ओषधि कहाँ जाता है, जिस कारण ओषधि की दुनिया में इसे संजीवनी बूटी के नाम से भी जाना जाता है.
 
 In India, it is also known as Ghritkumari or Guarpatha. Aloe vera, despite being a prickly plant, has its disease prevention properties. Where is it known as Silent Hiller and Miraculous Medicine, due to which it is also known as Sanjeevani Booti in the world of medicine.
 
आयुर्वेदिक दवाओं के अलावा एलोवेरा का उपयोग एलोपेथिक दवाओं में भी होता है. एलोवेरा के नित्य सेवन से बवासीर, डायबिटीज, गर्भाशय के रोग, जोड़ों का दर्द, मुहाँसे, खून की कमी को दूर करने में, सौंदर्य में, रूखी त्वचा, रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में, पेट की खराबी आदि कई रोगों के इलाज़ में एलोवेरा का कोई जवाब नही. शरीर के किसी भी अंग के कटने-जलने या चोट लगने पर एलोवेरा के जैल या गुदा को लगाने से घाव जल्दी भरता है और खुजली भी नही आती है.
 
 Apart from Ayurvedic medicines, aloe vera is also used in allopathic medicines. Regular intake of aloe vera for treatment of piles, diabetes, uterine diseases, joint pain, pimples, blood loss, beauty, dry skin, immunity, stomach upset etc. There is no answer to Applying aloe vera gel or anus in the event of cuts or burns or injury to any part of the body, heals the wound quickly and does not cause itching.
 
एलोवेरा में 18 धातु, 15 एमीनो एसिड और 12 विटामिन पाये जाते है. प्राकृतिक रूप से यह ठंडी तासीर वाला पौधा है. हमारे शरीर को 21 अमीनो एसिड की जरूरत होती है जिनमें से 15 अमीनो एसिड केवल एलोवेरा में मिलते हैं। संक्षिप्त में इस पौधे के बारे में हम यह कह सकते है कि व्यक्ति को फिट रखने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. क्योकि इसके नित्य सेवन से शरीर में शक्ति व स्फूर्ति बनी रहती है.
 
 Aloe vera contains 18 metals, 15 amino acids and 12 vitamins. Naturally, it is a plant with cool effect. Our body needs 21 amino acids out of which 15 amino acids are found only in aloe vera. In short, we can say about this plant that it plays an important role in keeping a person fit. Because strength and energy remains in the body due to its regular consumption.
  Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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