अलसी से दमा,सूजन,दर्द,यकृत का बढ़ना,शीतपित्त,गिल्टी रोगों में उपयोगी Useful of flaxseed asthma, swelling, pain, enlargement of liver, hives, gout diseases
अलसी से दमा,सूजन,दर्द,यकृत का बढ़ना,शीतपित्त,गिल्टी रोगों में उपयोगी Useful of flaxseed asthma, swelling, pain, enlargement of liver, hives, gout diseases
1. दमा या श्वास का रोग :
भुनी हुई अलसी 5 ग्राम तथा 10 कालीमिर्च दोनों को पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण का सेवन शहद के साथ सुबह-शाम करने से श्वास रोग में लाभ मिलता है। श्वास (दमा) में भुनी अलसी 3 ग्राम तथा कालीमिर्च 9 ग्राम पीसकर 2 चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटने से दमा रोग नष्ट हो जाता है। अलसी और ईसबंद 20-20 ग्राम पीसकर 40 ग्राम शहद में मिलाकर 10 ग्राम खाने से दमा (श्वास) में लाभ मिलता है।
1. Asthma or breathing disease:
Grind 5 grams of roasted linseed and 10 black peppers and make powder. Taking this powder with honey in the morning and evening provides relief in breathing problems. Grind 3 grams roasted flaxseed and 9 grams black pepper in breathing (asthma) and mix with 2 spoons of honey and lick it twice a day, it cures asthma. Grind 20-20 grams flaxseed and brinjal and mix it in 40 grams of honey and eat 10 grams, it provides relief in asthma.
2. फेफड़ों की सूजन :
अलसी की पोटली को बनाकर सीने की सिंकाई करने से फेफड़ों की सूजन के दर्द में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
2. Inflammation of the lungs:
Fomenting the chest by making a bundle of flaxseed provides great benefit in the pain of swelling of the lungs.
3. सीने का दर्द :
सीने के दर्द में अलसी और इम्पद पीसकर दुगुने शहद में मिलाकर अवलेह (चटनी) सा बना लें। यह चटनी प्रतिदिन 10 ग्राम तक चाटना चाहिए।
3. Chest pain:
Grind flaxseed and impad in chest pain and mix in double honey and make it like a sauce. Lick up to 10 grams of this sauce daily.
4. बालों का झड़ना (गंजेपन का रोग) :
अलसी के तेल में बरगद (वटवृक्ष) के पत्तों को जला लें और इसे पीस और छानकर रख लें। इस तेल को सुबह शाम सिर में लगायें। इसी तरह इसे लगाते रहने से सिर पर फिर से बालों का उगना शुरू हो जाता है।
4. Hair loss (baldness):
Burn the leaves of banyan (vatavriksha) in linseed oil and grind and filter it. Apply this oil in the head in the morning and evening. Similarly, by applying it, hair starts growing again on the head.
5. यकृत का बढ़ना :
अलसी की पुल्टिस बांधने से लीवर के बढ़ जाने से होने वाले दर्द मिट जाते हैं।
5. Liver enlargement:
The pain caused due to enlargement of liver is removed by tying flaxseed.
6. शीतपित्त :
अलसी के तेल में कपूर डालकर किसी शीशी में मिलाकर इस तेल से मालिश करे जल्दी ही आराम आता है।
6. Hives:
Put camphor in linseed oil and mix it in a vial and massage it with this oil soon.
7. गिल्टी (ट्यूमर) :
अलसी का चूर्ण पानी या दूध में डालकर और थोड़ी सी पीसी हुई हल्दी मिलाकर आग पर अच्छी तरह पका लें। जब यह गाढ़ी सी हो जाये तो हल्का ठंडा करके गिल्टी पर लगाकर ऊपर से पान का पत्ता रखकर कपड़े से बांधने से लाभ होता है।
7. Guilt (Tumor):
Mix the powder of flaxseed in water or milk and mix a little PCM turmeric and cook it well on the fire. When it becomes thick, cool it and apply it on the gilt, keeping the betel leaf on top and tying it with a cloth is beneficial.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
1. दमा या श्वास का रोग :
भुनी हुई अलसी 5 ग्राम तथा 10 कालीमिर्च दोनों को पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण का सेवन शहद के साथ सुबह-शाम करने से श्वास रोग में लाभ मिलता है। श्वास (दमा) में भुनी अलसी 3 ग्राम तथा कालीमिर्च 9 ग्राम पीसकर 2 चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटने से दमा रोग नष्ट हो जाता है। अलसी और ईसबंद 20-20 ग्राम पीसकर 40 ग्राम शहद में मिलाकर 10 ग्राम खाने से दमा (श्वास) में लाभ मिलता है।
1. Asthma or breathing disease:
Grind 5 grams of roasted linseed and 10 black peppers and make powder. Taking this powder with honey in the morning and evening provides relief in breathing problems. Grind 3 grams roasted flaxseed and 9 grams black pepper in breathing (asthma) and mix with 2 spoons of honey and lick it twice a day, it cures asthma. Grind 20-20 grams flaxseed and brinjal and mix it in 40 grams of honey and eat 10 grams, it provides relief in asthma.
2. फेफड़ों की सूजन :
अलसी की पोटली को बनाकर सीने की सिंकाई करने से फेफड़ों की सूजन के दर्द में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
2. Inflammation of the lungs:
Fomenting the chest by making a bundle of flaxseed provides great benefit in the pain of swelling of the lungs.
3. सीने का दर्द :
सीने के दर्द में अलसी और इम्पद पीसकर दुगुने शहद में मिलाकर अवलेह (चटनी) सा बना लें। यह चटनी प्रतिदिन 10 ग्राम तक चाटना चाहिए।
3. Chest pain:
Grind flaxseed and impad in chest pain and mix in double honey and make it like a sauce. Lick up to 10 grams of this sauce daily.
4. बालों का झड़ना (गंजेपन का रोग) :
अलसी के तेल में बरगद (वटवृक्ष) के पत्तों को जला लें और इसे पीस और छानकर रख लें। इस तेल को सुबह शाम सिर में लगायें। इसी तरह इसे लगाते रहने से सिर पर फिर से बालों का उगना शुरू हो जाता है।
4. Hair loss (baldness):
Burn the leaves of banyan (vatavriksha) in linseed oil and grind and filter it. Apply this oil in the head in the morning and evening. Similarly, by applying it, hair starts growing again on the head.
5. यकृत का बढ़ना :
अलसी की पुल्टिस बांधने से लीवर के बढ़ जाने से होने वाले दर्द मिट जाते हैं।
5. Liver enlargement:
The pain caused due to enlargement of liver is removed by tying flaxseed.
6. शीतपित्त :
अलसी के तेल में कपूर डालकर किसी शीशी में मिलाकर इस तेल से मालिश करे जल्दी ही आराम आता है।
6. Hives:
Put camphor in linseed oil and mix it in a vial and massage it with this oil soon.
7. गिल्टी (ट्यूमर) :
अलसी का चूर्ण पानी या दूध में डालकर और थोड़ी सी पीसी हुई हल्दी मिलाकर आग पर अच्छी तरह पका लें। जब यह गाढ़ी सी हो जाये तो हल्का ठंडा करके गिल्टी पर लगाकर ऊपर से पान का पत्ता रखकर कपड़े से बांधने से लाभ होता है।
7. Guilt (Tumor):
Mix the powder of flaxseed in water or milk and mix a little PCM turmeric and cook it well on the fire. When it becomes thick, cool it and apply it on the gilt, keeping the betel leaf on top and tying it with a cloth is beneficial.
Dr.Manoj Bhai Rathore
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आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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