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अलसी से कमजोरी,नासूर,टांसिल,बालरोग,कंठमाला रोगों में उपयोगी Useful in linseed weakness, canker, tonsils, pediatric diseases, scrofula

अलसी से कमजोरी,नासूर,टांसिल,बालरोग,कंठमाला रोगों में उपयोगी Useful in linseed weakness, canker, tonsils, pediatric diseases, scrofula

 1. हृदय की निर्बलता (कमजोरी) :

 अलसी के पत्ते और सूखे धनिये का काढ़ा बनाकर पीने से हृदय की दुर्बलता मिट जाती है। अलसी के सूखे फूल पीसकर शहद के साथ खाने से दिल की कमजोरी मिट जाती है। अलसी के फूलों को छाया में सुखाकर उनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से 1 चम्मच चूर्ण शहद के साथ दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करने से हृदय को बल मिलता है।

1. Weakness of the heart (weakness): 

 Take a decoction of linseed leaves and dried coriander and drink it, it reduces the weakness of the heart. Grind dried flaxseed flowers and eat with honey, it ends heart weakness. Dry the flaxseeds in shade and make their powder. Taking one spoon of this powder with honey thrice a day regularly for a few days gives strength to the heart.

2. नासूर (पुराने घाव) : 

घोड़े के सुम को जलाकर और अलसी के तेल में मिलाकर नासूर पर लगाने से नासूर ठीक होता है।

2. Canker (old wounds): 

 Burning horse's syrup and mixing it with linseed oil and applying it on canker cures canker.

3. तुंडिका शोथ (टांसिल)

50 ग्राम अलसी के बीजों को 500 मिलीलीटर पानी में पीसकर मिला लें और उसके अंदर 1 चम्मच घी मिलाकर पुल्टिश (पोटली) बना लें और उस पुल्टिश (पोटली) को हल्का गर्म करके गले पर बांधने से टॉन्सिल, गले का दर्द, सूजन, आवाज का बैठ जाना आदि रोग ठीक हो जाते है। जरूरत के मुताबिक 5 से 7 दिन तक पुल्टिश (पोटली) को गले में बांध कर रखें। 

3. Tundica edema (tonsils): 

Grind 50 grams of linseed seeds in 500 ml of water and mix 1 teaspoon of ghee in it and make a poultice and by heating it on the poultice (tonsil) to tie the tonsils, Sore throat, swelling, loss of voice, etc. are cured. According to the need, keep the poultice in the neck for 5 to 7 days.

 4. हाथ-पैरों का फटना : 

50 मिलीलीटर अलसी का तेल गर्म करके इसमें 5 ग्राम देशी मोम और ढाई ग्राम कपूर डालकर फटे हुए हाथ और पैरों पर लगाने से आराम आता है।

4. Cracked hands and feet:  

Heat 50 ml flaxseed oil and put 5 grams of native wax and two and a half grams of camphor in it and apply on torn hands and feet, it provides relief.

5. बालरोग :

 बच्चे की छाती पर अलसी का लेप करने से बच्चे को सर्दी नहीं लगती है।

5. Child disease:

 Applying linseed on the chest of the child does not cause cold.

6. कंठमाला के लिए

5-5 ग्राम अलसी, सरसों, सन के बीज और मकोए को पीसकर पानी में मिलाकर थोड़ा गर्म करके लगाएं।

 6. For Kanthamala

Grind 5-5 grams of flaxseed, mustard, flax seeds and macao and mix it in water and heat it.


Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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