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दशमूल से शोथ,सन्निपात,वात-पित्त रोगों में उपचार Treatment of inflammation from typhoid, typhus, gout diseases

दशमूल से शोथ,सन्निपात,वात-पित्त रोगों में उपचार Treatment of inflammation from typhoid, typhus, gout diseases
 
शोथ (सूजन) का ज्वर:

दशमूल और सोंठ का काढ़ा बनाकर पीने से सूजन के बुखार में लाभ होता है।शहद मिलाकर रोजाना सुबह-सुबह रोगी को पिलाने से सूजन के बुखार, प्रसूति बुखार, सन्निपात ज्वर और अनेक प्रकार के वात रोगों में लाभ होता है।

 Fever of inflammation

Drinking decoction of dashmool and dry ginger is beneficial in inflammation of fever. Mixing and drinking the patient in the morning every morning is beneficial in swelling fever, obstetric fever, typhoid fever and many types of rheumatic diseases.


सन्निपात ज्वर:Typhus fever-
  • दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) के काढ़े में छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से नींद (तन्द्रा यानी अनिद्रा), खाँसी, श्वास (दमा), कण्ठ अवरोध (गले की खराबी), हृदयावरोध (दिल का रोग), पसलियों का दर्द तथा वात, पित्त और कफ दूर होता है। साथ ही साथ सन्निपात बुखार नष्ट हो जाता है।
 
  • Mixing the powder of small peppers in decoction of Dashmul (Bel, Shionak, Khambhari, Paadhal, Aralu, Sarivan, Pithavan, Badi Kateri, Chhoti Kateri and Giloy), giving the patient a sleep (sleep), cough, breathing (asthma), Gut obstruction (sore throat), heartburn (heart disease), rib pain and vata, bile and phlegm are removed. At the same time, typhus fever is destroyed.
 
  • दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) के काढ़े में उतना ही अदरक का रस, कायफल, पोहकरमूल, सोंठ, कालीमिर्च, काकड़ासिंगी, पीपल, जवासा तथा अजवायन आदि को मिलाकर पिलाने से सन्निपात बुखार से पीडि़त मरीज को छुटकारा मिलता है।
 
  •  In the decoction of Dashmool (Bell, Shionak, Khambhari, Padhal, Arlu, Sarivan, Pithavan, Badi Kateri, Chhoti Kateri and Giloy) the same ginger juice, kayphal, pohkaramool, dry ginger, black pepper, kakadasingi, peepal, jawasa and parsley etc. Mixing and feeding provides relief to the patient suffering from typhoid fever.
 
  • दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरियवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) और कचूर, काकड़ासिंगी, पोहकरमूल, धमासा, भांरगी, कुड़े के बीज़, पटोल के पत्ते और कुटकी आदि को मिलाकर पकाकर काढ़ा बना लें। इस बने काढ़े को पीने से त्रिदोष बुखार, खाँसी, नींद व आना, प्रलाप, दाह (जलन) और अरुचि (भूख न लगना) के रोग समाप्त हो जाते हैं।
 
  • Decoction made by mixing Dashmool (Bell, Shionak, Khambhari, Paadhal, Arlu, Sarivan, Pithavan, Badi Kateri, Chhoti Kateri and Giloy) and Kachur, Kakadassingi, Pohakramool, Dhamasa, Bharingi, Kudki Bees, Patol leaves and Kutki etc. Take it. Drinking this decoction kills diseases of Tridosha fever, cough, sleep and sleepiness, delirium, burning sensation (burning sensation) and anorexia (loss of appetite).
 
  • दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय), त्रिकुटा, सोंठ, भारंगी और गिलोय को मिलाकर काढ़ा बना लें, इस बने काढ़े को सेवन करने से सन्निपात बुखार में लाभ होता है।
 
  • Make decoction by mixing Dashmul (Bell, Shionak, Khambhari, Paadhal, Arlu, Sarivan, Pithavan, Badi Kateri, Chhoti Kateri and Giloy), Trikuta, Sontha, Bharati and Giloy, taking this decoction will help in typhus fever. is.  
वात-पित्त का बुखार: 
 
बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) और अडू़से के काढ़े में शहद मिलाकर रोगी को पिलाने से कफ के बुखार में लाभ मिलता है।
 
Gout fever: 
 
Mixing honey in a decoction of vine, Shionak, Khambhari, Padhal, Arlu, Sarivan, Pithavan, Bada Kateri, Chhoti Kateri and Giloy) and Malabar nut provides relief in Kapha fever.

Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
  क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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