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अलसी से कान,दूध की वृद्धि,दुर्बलता,जलन,कामोद्वीपन,सिर दर्द रोगों में उपयोगी Useful of flaxseed ear, milk growth, weakness, burning sensation, aphrodisiac, headache diseases

अलसी से कान,दूध की वृद्धि,दुर्बलता,जलन,कामोद्वीपन,सिर दर्द रोगों में उपयोगी Useful of flaxseed ear, milk growth, weakness, burning sensation, aphrodisiac, headache diseases
 
1. कान में सूजन और गांठ :

 अलसी को प्याज के रस में डालकर अच्छी तरह से पका लें। इस रस को कान में डालने से कान के अंदर की सूजन दूर हो जाती है। 

1. Swelling and lump in the ears:

 Put linseed in onion juice and cook it well. By putting this juice in the ear, swelling inside the ear disappears.

2. कान के रोग :

 कान का दर्द होने पर कान में अलसी का तेल डालने से आराम आता है।

2. Ear diseases

Applying linseed oil in the ear provides relief from ear pain.

3. स्तनों में दूध की वृद्धि :

 अलसी के बीज 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ निगलने से प्रसूता के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। 

3. Growth of milk in the breasts

Swallowing 1-1 teaspoon seeds of flaxseed with water in the morning and evening increases the milk in the maternal breasts.

4. शारीरिक दुर्बलता (कमजोरी) :

 1 गिलास दूध के साथ सुबह-शाम 1-1 चम्मच अलसी के बीजों का सेवन करने से शारीरिक दुर्बलता दूर होकर पुष्टता आती है।
 
4. Physical weakness (weakness)

Taking 1-1 teaspoon of flaxseed seeds in the morning and evening with 1 glass of milk removes physical weakness.

 5. पेशाब में जलन

अलसी के बीजों का काढ़ा 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पीने से मूत्रनली की जलन और मूत्र सम्बंधी कष्ट दूर होते हैं।

5. Urine burning sensation:

Drinking 1-1 teaspoon of linseed seeds 3 times a day ends urinary tract irritation and urinary problems.

6. कामोद्वीपन (संभोग शक्ति बढ़ाने) हेतु

50 ग्राम अलसी के बीजों में 10 ग्राम कालीमिर्च मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण में से एक-एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करें। 

6. For aphrodisiac (to increase sexual power)

Grind 10 grams of black pepper with 50 grams of flaxseed seeds. Take one spoon of this powder with honey in the morning and evening.

7. सिर दर्द :

इसके बीजों को शीतल पानी में पीसकर लेप करने से सूजन के कारण सिर का दर्द, मस्तक पीड़ा तथा सिर के घावों में लाभ होता है। 

7. Headache:

Grinding its seeds in cold water and applying it on the head provides relief in swelling, head pain and head wounds.

8. आंखों में जलन :

अलसी बीजों का लुआब आंखों में टपकाने से आंखों की जलन और लालिमा में लाभ होता है।

8. Eye irritation:

 Dripping linseed seeds in the eyes provides relief in eye irritation and redness.
 

Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
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1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
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4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
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6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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