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निर्गुण्डी से बच्चों के दांत निकालने के लिए लाभ होता है Nirgundi is beneficial for removing teeth of children.

निर्गुण्डी से बच्चों के दांत निकालने के लिए लाभ होता है Nirgundi is beneficial for removing teeth of children.

बच्चों के दांत निकालने के लिए :To remove children's teeth
  • निर्गुण्डी की जड़ को बालक के गले में लटकाने से दांत जल्दी निकल जाते हैं।
  •  Hanging the root of Nirgundi in the neck of the child removes teeth quickly.
 
  • निर्गुण्डी (सम्भालु) की जड़ के छोटे-छोटे टुकड़े को काले या लाल धागे में माला बनाकर बच्चे के गले में बांध दें।
  •  Make a small piece of root of Nirgundi (Sambhalu) in black or red thread and tie it around the child's neck.
कफज्वर (बुखार) :Phlegm fever
  • निर्गुण्डी के पत्तों का रस या निर्गुण्डी के पत्तों का 10 मिलीलीटर काढ़ा, 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ मिलाकर देने से कफज्वर और फेफड़ों की सूजन कम होती है।
  •  Mixing juice of Nirgundi leaves or 10 ml decoction of Nirgundi leaves, mixed with 1 gram powder of Peepal powder reduces cough and swelling of lungs.
 
  • निर्गुण्डी के पत्तों के 30-40 मिलीलीटर काढ़े की एक मात्रा में लगभग आधा ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर पीने से कफ के बुखार में आराम होता है।
  •  Mixing about half a gram powder of black pepper in a quantity of decoction of 30-40 ml decoction of Nirgundi leaves is useful to cure phlegm fever.
 
  • निर्गुण्डी के तेल में अजवाइन और लहसुन की एक से दो कली डाल दें तथा तेल हल्का गुनगुना करके सर्दी के कारण होने वाले बुखार, न्यूमोनिया, छाती में जकड़न होने पर इस बने तेल की मालिश करने से लाभ होता है।
  •  Add one to two buds of celery and garlic to the oil of nirgundi, and massaging this oil in the warm, slightly warm, fever due to cold, pneumonia, chest tightness is beneficial.
  Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
  क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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आवश्यक दिशा निर्देश
1. हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।
2. अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3. औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान  (पथ्यापथ्य)  का पूरा ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4. रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5. शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7. प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर,  एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित, शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
8. आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9. रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना,  दूसरा-स्पर्श  (छूना)  और तीसरा- प्रश्न करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान,  त्वचा,  आंख,  जीभ, नाक इन  5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10. चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार  (रोगी की देखभाल करने वाला)  से रोगी की शारीरिक ताकत,  स्थिति,  प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही उसका इलाज करे।
11. चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या नहीं।
12. जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है, उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष अलग-अलग होते हैं।

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